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ॐ अहम्
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TIMUR
नीति-विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार-वर्तकः सम्यक् ।
परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ सम्पादन-स्थान-वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा, जि. सहारनपुर
प्रकाशन-स्थान-कनॉट सर्कस, पो० बो० नं० ४८, न्यू देहली फाल्गुन-पूर्णिमा, वीरनिर्वाण सं० २४६६, विक्रम सं०१६६६
वप'३
किरण ५
अभिभूय निजविपक्षं निखिलमतोद्योतनो गुणाम्भोधिः । सविता जयतु जिनेन्द्रः शुभप्रबन्धः प्रभाचन्द्रः ॥-न्यायकुमुदचन्द्र-प्रशस्तिः
अपने विपक्षम-महको पराजित करके जो समस्त मतोंके यथार्थ स्वरूपको प्रकाशित करनेवाले हैं वे गणसमुद्र, जितेन्द्रियों में अग्रगण्य और शुभप्रबन्ध-न्यायकुमुदचन्द्र जैसे पुण्य-प्रबन्धोंके विधाता-प्रभाचन्द्राचार्य नामके सूर्य जयवन्त हों-अपने वचन-तेज से लौकिकजनोंके हृदयान्धकारको दूर करनेमें समर्थ होवें !
चन्द्रांशुशुभ्रयशसं प्रभाचन्द्रकवि
कत्वा चन्द्रोदयं येन शश्वदाल्हादितं जगत ॥-श्रादिपुराणे. जिनसेनाचार्य: जिन्होंने चन्द्रका उदय करके-'न्यायकुमुदचन्द्र' ग्रंथकी रचना करके--जगतको सदाके लिये श्रानन्दित किया है उन चन्द्र-किरण-समान उज्जवल यश के धारक विचारक मुनि प्रभाचन्द्रकी मैं स्तुति करता हूँ।
माणिक्यनन्दी जिनराज वाणी-प्राणाधिनाथः परवादि-मर्दी । चित्रं प्रभाचन्द्र इह दमायां मातण्ड-वृद्धौ नितरां व्यदीपीत् ।। सुखिने न्यायकुमुदचन्द्रोदयकृते नमः।
शाकटायन कृत्सूत्र न्यासकर्त्रे व्रती(प्रभेन्दवे ।।-शिमोगा-नगरतालुक-शिलालेख नं०४६ जो माणिक्य (प्राचार्य ) को आनन्दित करनेवाले--उनके परीक्षासुख ग्रंथपर प्रमेयकमलमार्तण्ड नामका महाभाष्य लिखकर उनकी प्रसन्नता सम्पादन करनेवाले–थे, जिनराजकी वाणीके प्राणाधार थे--जिन्हें पाकर एक बार जिनवाणी सनाथ हुई थी और जो परवादि पोंका मानमर्दन करनेवाले थे, वे प्रभाचन्द्र आश्चर्य है कि इस पृथ्वीपर निरन्तर ही मार्तण्डकी वृद्धि में प्रदीप्त रहे हैं ! अर्थात् प्रभापूर्ण चंद्रमा यद्यपि मार्तण्ड (सर्य) की तेजोवद्धि में कोई सहायक नहीं होता-उलटा उसके तेजके सामने हतप्रभ हो जाता है, परन्तु ये प्रभाचन्द्र मार्तण्ड (प्रमेयकमलमार्तण्ड) की तेजोवृद्धि में निरन्तर ही अव्याहतशक्ति रहे हैं एक विचित्रता है ।
जो न्यायकुमुदचन्द्रके उदयकारक-जन्मदाता हुए हैं और जिन्होंने शाकटायनके सत्र-व्याकरणशास्त्रपर न्यास रचा है, उन प्रभाचन्द्र मुनिको नमस्कार है।