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________________ वर्ष ३, किरण ३ ] अर्थ तत्रस्थ आत्मासे ही है । इसीप्रकार मन:पर्याय ज्ञानभीद्रव्यमनके आत्मप्रदेशों में होता है। ऐसाही समझना चाहिये । अतः यह शंका नहीं हो सकती कि मन:पर्ययज्ञानका संवेदन मनमें होता है या मन इन्द्रिय उसमें काम करती है । अतः मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय ज्ञान मनमें नहीं होते किन्तु मन केवल निमित्त कारण ही है । वृहद् द्रव्यसंग्रह में " द्रव्यमनस्तदाधारेण शिक्षाला पोपदेशादि ग्राहकं" इस तृतीयान्तपदसे द्रव्य-मन ही अर्थ निकलता है। यदि टीकाकारको " मनमें" यह अर्थ अभीष्ट होता तो सप्तमीका पंद दिया जासकता था । यहां यहभी शंका नहीं करना चाहिये कि जैनाचार्यों ने हृदयका मुख्यकार्य रक्तसंचालनका वर्णन नहीं किया । क्योंकि सिद्धान्त ग्रन्थोंमें सिद्धान्तका ही वर्णन किया जायगा, शरीरशास्त्र की यहां अपेक्षा नहीं है । नाकका काम सुगन्धज्ञानके अलावा श्वास आदि कार्य भी है। जिह्वा का रसज्ञानके साथ शब्दोच्चारण आदि कार्य हैं, परन्तु सभीके वर्णनकी सब जगह अपेक्षा नहीं होती । हां, वैद्यक शास्त्रोंमें इसका वर्णन किया गया है । [२५५ इन्द्रपर भी असर पड़ता है। तेज सुगन्धिसे दिमाराके साथ नाक भी झनझना जाती है । किसी पदार्थको बहुत देर तक देखते रहने से आखें दर्द करने लगती हैं। उसी प्रकार किसी तरह के भयानक विचारों से अथवा भयसे हृदयकी गतिपर असर पड़ता है, हृदय धकधकाने लगता है, इससे मालूम पड़ता है ये सब गुण हृदयके हैं । अन्यथा हृदय पर असर नहीं पड़ना चाहिए था । जिस प्रकार सुगन्धि घ्राणका कार्य मानाजाता है, क्योंकि उस का असर घ्राण पर पड़ता है । उसी प्रकार भय आदिका असर हृदयपर पड़ता है, इसलिए ये सब हृदय कार्य माने जाने चाहिएँ । जिस इन्द्रियका जो कार्य होता है, उस कार्य की अधिकता या तेजीसे मस्तिष्क के साथ साथ 1 डा० त्रिलोकीनाथवर्मा शरीरविज्ञानके प्रामाणिक लेखक माने जाते हैं । आपने "स्वास्थ्य और रोग" नामक एक सुन्दर पुस्तक लिखी है, इसी पुस्तकके ७८१ वें पृष्ठ पर आपने लिखा है कि "मन सम्बन्धी जितनी बातें हैं वे सब मस्तिष्कके द्वारा होती हैं। विचार अनुभव, निरीक्षण, ध्यान, स्मृति, बुद्धि, ज्ञान, तर्क या विवेक ये सब मनके गुण हैं। "" sro त्रिलोकीनाथ के इस कथन से हमारी और भी पुष्टि हो जाती है । इसलिये जैन सिद्धान्तमें माने हुए मनके लक्षण में किसी तरह विरोध नहीं आता ।
SR No.527158
Book TitleAnekant 1940 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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