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________________ वर्ष ३, किरण ३ ] द्रव्यमन [२५३ है या नहीं ? अथवा मस्तिष्क स्वतन्त्र संवेदन जैनाचोर्योंने पांचों इद्रियोंके साथ मनको भी कर सकता है या कि नहीं ? तो ज्यादा अच्छा इन्द्रिय रूपमें स्वीकार किया है, किन्तु यह मनअन्य होगा। इन्द्रियोंकी तरह भीतर रहनेके कारण दृष्टिगोचर ___ मस्तिष्कका सम्बन्ध हृदय और फुप्फुस दोनों नहीं होता, इसलिये इसे अनिन्द्रिय अथवा अन्तःनाड़ियोंसे होता है । भयमें मस्तिष्कके हृदयकेन्द्रका करण कहो है । 'करण' का अर्थ इन्द्रिय, और दबाव हृदय परसे कम होता है, हृदय बड़ी तेजी- 'अन्तः'का अर्थ भीतर होता है । इसलिए भीतरकी से धड़कने लगता है, भयमें विचारनेकी शक्ति नहीं इन्द्रिय यह साफ अर्थ है। आचार्य पूज्यपादने रहती है। जिनके हृदयमें रोग होता है उनकी "अनिन्द्रियं मन: अंत:करण मित्यनर्थान्तरम्" धारणाशक्ति तथा विचारनेकी शक्ति बहुत कम हो ऐसा लिखा है । तथा कोई अनिन्द्रियका अर्थ जाती है। इसी प्रकार जब हृदयसे कमजोरीके ___ "इन्द्रिय का अभाव" न ले लें, इसीलिए आचार्य कारण ठीक समय पर रक्तको उचित मात्रा मस्तिष्क महोदयने अनुदरा कन्याका उदाहरण देकर यह में नहीं पहुंचती तो मस्तिष्कका वर्द्धन भी ठीक नहीं स्पष्ट कर दिया है कि यहां सद्भाव रूप ही अर्थ होता, और वह ठीक २ काम भी नहीं करसकता। लेना चाहिये।। पांचों इन्द्रियोंका कार्य पृथक् २ है, इनके द्वारा ____ मनका विषय अन्य इन्द्रियोंकी तरह निश्चित इन्द्रियसम्बन्धी ज्ञान मस्तिष्कमें होता है । स्पर्शन करदिया गया है । आचार्य पूज्यपादने स्पष्ट इन्द्रियसे ठंडा गरम आदिका बोध होता है, तथा कहा है किचक्षुसे रूपका, इसीप्रकार अन्य इन्द्रियोंसे संवेदन होता है। इन इन्द्रियोंके अलावा और भी तो बहुत ___ "गुणदोष विचार स्मरणादिव्यापारेषु से संवेदन होते हैं। वह किसका कार्य होगा? इन्द्रियानपेक्षत्वाच्चक्षुरादिवद्" अर्थात् गुणदोष पांचों इन्द्रियोंका विषयतो निश्चित तथा परिमित के विचारने में, स्मृति आदि व्यवसायमें इन्द्रियों है, उनके द्वारा अपने विषयको छोड़कर अन्य की अपेक्षा नहीं होती यह तो मनका ही विषय है। प्रकारके संवेदनकी संभावना ही नहीं है। भय, जिसप्रकार स्पर्शन इन्द्रियद्वारा ऊष्णताका हर्ष, सुख, दुख इत्यादिका संवेदन इन इन्द्रियोंके संवेदन नहीं होता, वह तो संवेदन करनेमें कारण द्वारा संभव नहीं है, परन्तु इनका संवेदन होता है (यह मैं पहिले बता चुका हूं कि किसप्रकार अवश्य है । साथमें यह भी निश्चित है कि मस्तिष्क संवेदन होता है ) इन्द्रियोंका कार्य खुद संवेदन स्वयं किसीका संवेदन नहीं करता, वह तो प्रेरणाके करनेका नहीं है। इसीप्रकार मन भी एक इन्द्रिय द्वारा ही संवेदन करता है। बिना स्पर्शन इन्द्रिय- है, वह स्वयं संवेदन न करके अपना सीधा काम की सहायताके गरमी-सर्दीका संवेदन स्वयं मस्तिष्कसे कराता है। मस्तिष्कसे सीधा काम मस्तिष्क कभी भी नहीं करसकता । इसी प्रकार कराते हुए भी वह कार्य मनका ही कहलाता है। भय-हर्ष आदिके विषयमें भी समझना चाहिये। जिस प्रकार रूपका अनुभव मस्तिष्क द्वारा ही
SR No.527158
Book TitleAnekant 1940 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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