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________________ अनेकान्त [मार्गशीर्ष, वीर निर्वाण सं०२४६६ बौद्धोंके चीन, जापान आदि पौर्वात्य राष्ट्र, ईसाइयोंके प्रारम्भ हुआ, वह उठ बैठा और उसे त्रेता युगके चिन्ह युरुप, अमेरिका आदि पाश्चात्य राष्ट्र और मुसलमानोंके दिखाई देने लगे और जहां उसने उद्योग प्रारम्भ किया सुर्कस्तान, काबुल आदि मध्य राष्ट्र उत्कर्षशाली हैं और और उसका सत्ययुग आ पहुँचा । इसलिये प्रयत्न हम कलिके मारे बेज़ार हैं ! यदि हमें फिर वर्धिष्णु और करो।" इस वेदाज्ञासे भो यहो सिद्ध होता है कि, जब जयिष्णु बनना है तो मनोदौर्बल्य उत्पन्न करने वाली हम सजग होकर अपना कर्तव्य पालन करन लगेंगे, कलिकल्पनाको हिमालय में भेज देना चाहिये । वास्तवमें तभी सत्ययुगका प्रवर्तन कर सकेंगे। यह हमें अपने किसी युगका प्रवर्तन करना राजशासको अथवा सामा- मनमें अच्छी तरह जमा लेना चाहिये और कलिका जिक नेताओं के हाथ है । ऐतरेय ब्राह्मणमें लिखा है:- काला मुँह कर देना चाहिये। यदि हम असावधान कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः। रहेंगे, तो निश्चयसे जान रखें कि, झब्बू लोग हमें उत्तिष्ठंस्त्रेता भवति कृतं सम्पद्यतेचरन्।।चरैवेति॥ अपने बुद्धिहत्याके कारखानेमें पकड़कर ले जायगे और "जहां मनुष्यको नींद आयी और उसका कलि अवतारवाद, भाग्यवाद, कलिकल्पनाकी टिकटीपर चढ़ा पाया जहाँ उसने पालसको हटाया और उसका द्वापर कर फाँसी लटका देंगे। साहित्य-परिचय और समालोचन (१) षट् खंडागम ('धवला' टीका और उसके बातोंका विस्तारके साथ वर्णन पृष्ठ ७२ तक किया गया हिन्दी अनुवाद सहित ) प्रथम खंडका सत्प्ररूपणा नामक है । इसीमें मूल सूत्रके अवतारकी वह सब कथा दी है प्रथम अंश-मूल लेखक, भगवान पुष्पदन्त भूतबलि ! जिसे पाठक 'अनेकान्त' के गत विशेषांक में 'धवलादि सम्पादक, प्रोफेसर हीरालालजी जैन एम.ए.,एल.एल. श्रुत परिचय' शीर्षक के नीचे पढ़ चुके हैं। उसके बाद बी, संस्कृताध्यापक किंग-एडवर्ड-कालेज अमरावती। जीवस्थानके कुछ प्रारंभिक सूत्रोंकी व्याख्या पृष्ठ १५४ प्रकाशक, श्रीमन्त सेठ लक्ष्मीचन्द शिताबराय, जैन- तक दी है, जिनमें १४ जीव समासों (गति आदि साहित्योद्धारक-फंड-कार्यालय अमरावती ( बरार )। मार्गणास्थानों) का उल्लेख किया गया है और फिर बड़ा साइज पृष्ठ संख्या, सब मिलाकर ५५६ । मूल्य, उनकी विशेष प्ररूपणाके लिये 'जीव स्थान' के सत्सजिल्द तथा शास्त्राकार प्रत्येकका १०) रु०। प्ररूपणादि अाठ अनुयोग द्वारोंके नाम सूत्र नं० ७ में 'धवल' नामसे प्रसिद्ध जिस ग्रंथके दर्शनोंके लिये दिये हैं । उसके बाद वे सूत्रसे सत् प्ररूपणाका श्रोद्य जनता अर्सेसे लालायित है उसके 'जीवस्थान' नामक और आदेशरूपसे विस्तारके साथ वर्णन ४१० पृष्ठ तक प्रथम खंडका यह ग्रन्थ प्रथम अंश है । इस अंशमें मूलके किया गया है। यह सब वर्णन अनेक अंशोंमें गोम्मटमंगलाचरण सहित कुल १७७ सूत्र हैं । मंगलाचरणका · सारके गुणस्थान, मार्गणा और सत्प्ररूपणाके वर्णनके सूत्र प्रसिद्ध णमोकारमंत्र है और उसकी व्याख्या तथा . साथ मिलता-जुलता है । टीकामें बहुतसी जगह 'उक्तंमंगल, निमित्त, हेतु, परिमाण, नाम और कर्तारूपसे छह -च' रूपसे जो २१४ पद्य दिये हैं उनमें ११० के करीब
SR No.527157
Book TitleAnekant 1939 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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