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________________ वर्ष ३. किरण २ ] बनी रहेगी और दिन दिन अधर्म, अनीति, अन्याय,. असत्य, हिंसा, अत्याचार अनाचार आदिका बाजार गरम रहेगा। बेचारोंने यह भी सोचनेके कट नहीं उठाये कि जब हमारे देखते हुए १०-१२ वर्षोंमें ही पूर्व - परिस्थिति बदल जाती है, तब लाखों वर्षोंतक वह एकसी कैसे बनी रह सकती है ? ऊनकी दृष्टिमें कलिका प्रताप अनिवार्य है, वह होकर ही रहेगा । नया राज्य, नयी संस्थाएँ, नये विचार, नये सुधार. जो रेलों मोटरोंको बन्द वे नया देखते हैं, सब कलिका प्रताप है । कोई नारी हरण करे, बलात् गोमांस खिला दे, अपमान करे, मूर्तियों को तोड़ फोड़ दे, राज पाट छीन ले, गलेमें डोरी बाँधकर बन्दरकी तरह नाच नचावे, - सब कलिकी महिमा है । कुछ प्रश्न यह उठता है कि, कलि भारतवर्ष के ही पीछे क्यों पड़ा है ? विदेशों में वह अपना प्रभाव क्यों नहीं दिखाता ? क्या ख़ैबरघाटीके पार करने अथवा समुद्रके लाँघनेकी उसमें सामर्थ्य नहीं है या उन देशोंमें उसे कोई पूछता ही नहीं ? हमारे पडौसी जापान, रूस तथा तुर्किस्तानने अपने यहाँ सुधयुग प्रस्थापित कर दिया है और युद्धमें पराजित जर्मनी समराङ्गणमें ताल ठोककर फिर खड़ा हो गया है । इङ्गलैण्ड, अमेरिका, फ्रान्स, इटली श्रादि देशों में कलिकी दाल नहीं गलती । कदा • चित वहाँके स्वाभिमानी कर्मवीरों और उनकी जलस्थल- नभोमण्डल में मण्डित सुसज्जित युद्ध-सामग्रीको देखकर वह डर जाता हो। इसमे तो यही अर्थ निकलता है कि, दुर्बल राष्ट्रोंको ही कलि सताता है, I t • सबलों के पास भी नहीं फटकता । विचार करने की बात है कि, आज बालक बालिको जो शिक्षा दी जाती है वह बन्द कर यदि उन्हें निरक्षर रक्खा जायगा, चायके बदले तुलसीके बुद्धि हत्याका कारखाना १६६ काढका प्रचार किया जायगा, पतलूनके बदले लोगलुङ्गी पहनना प्रारम्भ कर देंगे, साड़ीके बदले पाँच पाँच सौ कल्लियोंके पुरानी चालके लहँगे स्त्रियाँ पहनने लगेंगीं, पण्डित लोग कलाईमें घड़ी बांधने के बदले गलेमें जलघड़ी, धूपघड़ी या बालूकी घड़ी या घण्टा लटकावेंगे, चीनीके प्याले चम्मच के बदले लोग धर्धाश्राचमनी पञ्चपात्रका उपयोग करने लगेंगे, फ्रेन्चकटकर्जनकद- प्रालबर्टकटके बदले जटा-दाढ़ी बढ़ा लेंगे और कर बैलगाड़ियाँ - भैंसा गाड़ियाँ चलायी जाने लगेंगीं, तो क्या काल तुरन्त भाग जायेगा 4 hagra कलिके गालसे बचने के कुछ उपाय भी बताये हैं । जो कुछ मिल जाय, उससे सन्तुष्ट रहो, सत्यनारायण; ललनछट: यदि व्रतोत्सव कृपणता छोड़कर मनाया करो, दान-दक्षिणा में झब्बुनोंको हाथी-घोड़े, धन-रत्न, धान्य- वस्त्र, मिष्टान - पकवान, बहू-बेटी आदि अर्पण कर सन्तुष्ट किया करो, किसी प्रकारका प्रतीकार न कर जो कुछ होता जाय, उसे देखा करो - सहा करो और हाथ पर हाथ रखकर बैठे बैठे राम नाम जपा करो । यदि कोई हाथ पैर हिलनेका उपदेश करे । तो उसे धर्महीन, पतित, बेदनिन्दक जानकर कलिवप्रकरण और प्रायश्चित्तके कुछ संस्कृत श्लोक सुना दो । कलिवर्ज्य - प्रकरण में पुरुषार्थनाशकी कोई बात नहीं छूटी है । बस, चार लाख बत्तीस हज़ार वर्षो तक इसी तरह चुप्पी साधे बैठ रहनेसे बेड़ा पार है । फिर ब्रह्मसाक्षात्कार या मोत बहुत दूर नहीं रह जायेगा । ↑ कलि-सन्तरणका यह कैसा अच्छा उपाय है; बुद्धिहत्याका कितना उसम यंत्र है ! इस यंत्र के श्रागे सिर झुका देनेसे ही भारतकी सब ओजस्विता मारी गयी है । बौद्धों, ईसाइयों श्रथवा मुसलमानोंने अपने धर्म या समाजमें कालिको नहीं घुसने दिया । इसीसे
SR No.527157
Book TitleAnekant 1939 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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