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वर्ष - ३
ॐ अर्हम्
अनेकान
नीति-विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार-वर्त्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥
सम्पादन-स्थान - वीर सेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा, जि० सहारनपुर प्रकाशन-स्थान – कनॉट सर्कस, पो० ब० नं० ४८, न्यू देहली मार्गशीर्ष पूर्णिमा, वीरनिर्वाण सं० २४६६, विक्रम सं० १९६६
कलंक-स्मरण
श्रीमद्भट्टा कलंकस्य पातु पुण्या सरस्वती । अनेकान्त मरुन्मार्गे चन्द्रलेखायितं यया ॥
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किरण २
- ज्ञानार्णवे, श्रीशुभचन्द्राचार्यः
श्रीसम्पन्न भट्ट - कलंकदेवकी वह पुण्या सरस्वती - पवित्र भारती - हमारी रक्षा करो - हमें मिथ्यात्वरूपी गर्त में पड़ने से बचाओ – जो अनेकान्तरूपी श्राकाशमें चन्द्रमाके समान देदीप्यमान है - सर्वोत्कृष्टरूपसे वर्तमान है । भावार्थ - श्री अकलंक देवकी मंगलमय वचनश्री पद पद पर अनेकान्तरूपी सन्मार्गको व्यक्त करती है और इस तरह अपने उपासकों एवं शरणागतोंको मिथ्या एकान्तरूप कुमार्ग पर लगने नहीं देती । अतः हम उस अकलंक -सरस्वतीकी शरण में प्राप्त होते हैं, वह अपने दिव्य तेज द्वारा कुमार्गसे हमारी रक्षा करो । जीयात्समन्तभद्रस्य देवागमनसंज्ञिनः । स्तोत्रस्य भाष्यं कृतवानकलंको महर्द्धिकः ॥
- नगर - ताल्लुक, शिमोगा-शि० लेख नं० ४६ स्वामी समन्तभद्र 'देवागम' नामक स्तोत्रका जिन्होंने भाष्य रचा है-उसपर 'अष्टशती' नामका विवरण लिखा है - वे महाऋद्धि के धारक कलंकदेव जयवन्त हों - अपने प्रभावसे सदा लोकहृदयोंमें व्याप्त होवें ।