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________________ वर्ष ३. किरण २ ] ( पता - नं ०११२ वृन्दावनचरणमल्लिकलेन कलकत्ता) श्रपका अध्ययन भी बहुत गंभीर है, जैनधर्मसे श्रपका बहुत अनुराग है । आपके लिखित निबंध ये हैं बंगीय विद्वानोंकी जैन साहित्य में प्रगति Mimansa theories of the self relation to knowledge. प्र० जैन सिं०भास्कर भाग ६, कि० १ ७ डा० विमलचरणलाह M. A. BL. PH.D.( पता - नं ० ४३ कैलास बोस स्ट्रीट, कलकत्ता) आप कलकत्ते के सुप्रसिद्ध जमींदार, पत्रसम्पादक एवं साहित्यिक विद्वान हैं। भारतीय प्राचीन संस्कृतिके ३. The Status of women in Jain अन्वेषण में आपकी बड़ी दिलचस्पी है । बौद्ध एवं Religion. . The doctrine of Relativity in Jain Metaphysics. जैनसाहित्य से आपका बहुत प्रेम है । आपसे मैं दो बार मिला था और आपके लिखित जैनसाहित्य-सम्बंधी लेखोंकी सूची मांगी थी और श्रापने कुछ समय बाद `५. सभापति भाषण — इंडियन कलचर कान्फरेन्स; जैन देनेकी स्वीकृति भी दी थी पर दो तीन बार फिरसे सूचना और बौद्ध विभाग देने पर भी साहित्य कार्यों में विशेष व्यस्त होनेसे श्रापसे सूची नहीं मिल सकी अतः मुझे ज्ञात निबन्धोंकी सूची देकर ही संतोष मानना पड़ता है । १. श्रनेकान्तवाद - प्र० विश्वकोष द्वि० श्रावृत्ति २. जैनधर्मेनारीर स्थान - प्र० रुपनंदा (श्रमहायनपौष १३४४) ६. प्रो० हरिमोहन भट्टाचार्य प्रो० श्रासुतोष कालेज ( पता:- नं० ३ तारारोड़ कालीघाट कलकत्ता ) के लिखे हुए निबन्ध ये हैं: ?. The Jain conception of Truth and reality (Proceedings of Indian Philosophical Congress. 1925 ) २. The Jain Theory of knowledge & errors. 1** ( प्र ० जैन सिद्धान्तभास्कर १६३८ जून ) ३. The Jain Theory of Existence & Evolution ( प्र० इण्डियन कलचर १६३८ एप्रिल ) ४. Studies in Philosophy ( प्र० मोतीलाल बनारसीदास लाहौर) इस ग्रंथ में जैनदर्शन सम्बन्धमें कई बातें लिखी हैं । ५. स्यादवाद -- प्र० साहित्यपरिषदपत्रिका भा० ३०, पृ० १४३ भा० ३१ पृ० १ ढ़. Jain critique of the Sankhya & the १. Mahavira ( His Life and Teachings Page 113, प्रकाशक Lunac & Co; 46, G. Russel Street London W. C. I. 1939. स्व० बाबू पूर्णचंद नाहरको समर्पित । प्रस्तुत ग्रन्थ दो विभागों में विभक्त है -१ महावीरकी जीवनी २ उनके उपदेश । जैन संस्कृतिका तथाविध ज्ञान न होनेसे इस ग्रंथ में कई भूल भ्रान्तियें रह गई हैं, तो भी श्रापका परिश्रम सराहनीय है । २. Distinguished Menarar (?) women in Jainism - प्र० इंडियन कलचर V. II 669 V. III 89. 343. ३. The Kalpa Sutra प्र० जैनसिद्धान्त भास्कर भा० ३, किरण ३-४ Y. Studies in the Vividha-Tirtha Kalpa (प्र० जैनसिद्धान्त भास्कर भा०४ कि०४पृ०१०६)
SR No.527157
Book TitleAnekant 1939 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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