SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ [मार्गशीर्ष, वीर निर्वाण सं०२५१५ के पाप जनरल-एडीटर हैं, इस ग्रन्धमालासे १० दिग- १०. प्राचार्य जिनसेन (बंगला)-प्र.भारतवर्ष । म्बर ग्रंथ अंग्रेजी अनुवाद सहित प्रकाशित हो चुके हैं। ११. द्वादशानुप्रेक्षा (बंगला)—प्र. जिनवाणी। जिनमें द्रव्यसंग्रह आपके द्वारा अनुवादित भी है। ४ प्रो० अमूल्यचरण विद्याभूषण, प्रो० विद्या आपके मुख्य कार्य-कलापकी, जोकि जैनदर्शनके सम्बन्ध- सागर कॉलेज कलकत्तामें किया है, सूची नीचे दी जाती है । दि० साधुओंके (पता:-० ५ जदुभित्रलेन, कलकत्ता) नगरों में विहार-प्रतिबन्धक आन्दोलनके समयतो अापने आप बहुत वर्षों से "बंगीय महाकोष" के सम्पादन एक महत्वपूर्ण लेख लिखकर दिगम्बरत्वके औचित्यकी में लगे हुए हैं । इस कोषमें जैनदर्शनके अनेक शब्दों ओर ध्यान आकर्षित किया है, जिसके फलस्वरूप वह पर विस्तृत विवेचन किया गया है । कोषके अतिरिक्त प्रतिबन्ध उठा दिया गया है। स्वतंत्र प्रकाशित जैनदर्शन सम्बन्धी लेखोंमें कतिपय अनुवादित ग्रन्थ १. Jain Jatakas-प्र. मोतीलाल बनारसीदास १. द्रव्यसंग्रह-सटीक, अंग्रेजीमें अनुवादित-प्र० लाहौर, उपर्युक्त ग्रन्थमालाका प्रथम पुष्प प्रकाशन- २. Culture, Origin of Jainism. सन् १९१७, मूल्य ५॥) ३. Queen, The History of the Jain २. परीक्षामुख-दि० न्याय ग्रन्थ, प्र. जैनगजट Sects, Parsvanath & Mahavir.. ३. प्रमाण मीमांसा-अंग्रेजी अनुवाद, प्र० जैनगज़ट ४. National Council of Education. १९१५ Lecture on Syadwad. ४. प्रश्नव्याकरण-, , प्र० ,, १६१५ ५. जैनधर्म-प्र.नव्यभारत। ५. बृहद्रतिदत्तकथा-अंग्रेजी अनुवाद, प्र० जैन गज़ट ६. विजयधर्मसूरि-प्र० वानी १३१७ बंगला। १६१५ श्रापकी इच्छा है कि अपने कोषमें जैनदर्शनके ६. The Digambar Saints of India. सभी मुख्य एवं रूढ़ शब्दों पर विस्तारसे विवेचन हो ७. Abuse of Jainism in non-Jain पर यह कार्य बिना जैनविद्वानोंके सहयोगके नहीं हो Literature. सकता । आपने हमसे यहाँ तक कहा था कि यदिबंगला Published in Jain Gazette 1917 या अँग्रेज़ी भाषाविद् जैनविद्वान् शब्द-विवेचन लिख Vol. XIII P. 144. भेजें या हम उन्हें लिख भेजें वे उसको पढ़कर शुद्धि८. Gommata Sara. Published in वृद्धि कर भेजें ताकि हमारे कोषमें अपूर्णता एवं भूल Digambar Jain. भ्रन्ति न रहने पावे | आशा है योग्य विद्वान उन्हें ६. The Rules of ascetics in Jainism. सहयोग देंगे। (Jain Sidhant Bhaskar. वर्ष २, ५ प्रो० सातकोडी मुखर्जी, प्रो० कलकत्ता किरण ४) युनीवरसिटी
SR No.527157
Book TitleAnekant 1939 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy