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________________ अनेकान्त [वर्ष 3, किरण 1 अतः भाइयो ! अब इस प्रकार काम नहीं पड़े तो जहाँ मन्दिरोंमें अच्छी आमदनी हो वहाँचलेगा / अब भी सोचो, जैनधर्मके प्रचार और के धनसे कोष पुरा करो। साथ ही, वीरशासनके _ दिन ऐसे सन्दर, ससम्पादित-प्रकाशित ग्रन्थों प्रसारका मार्ग अभी भी खुला हुआ है,सिर्फ आव ' पुस्तकों तथा ट्रेक्टोंका अधिकाधिक संख्या प्रचार श्यकता है एक बार अपनी हालतका सिंहावलोकन करो। ये सब ऐसी आवश्यक क्रियाएँ हैं, जो वीरकरने और अपने कर्तव्य तथा उत्तरदायित्वको शासनके सम्बन्धमें हमारे उत्तरदायित्वको परा. समझनेकी / ईसाई अपने मिशनरियों और अपनी करा सकती हैं और जिनका चीरशासन-दिवस लिटरेचर सोसाइटियों-द्वारा, आर्यसमाज अपने मनाते समय हर जगह रिवाज पड़ जाना चाहिये। स्नातकों, सन्यासियों, तथा ब्रह्मचारियोंके द्वारा, जिस तरह अब भारतवर्षमें एक छोरसे दूसरे छोर तक महावीर-जयन्ती सार्वजनिकरूपसे और मुसलमान अपने बिरादराना सलूक व मनाई जाने लगी है और उसके निमित्तसे अजैन बाहमी हमदर्दीके द्वारा आज जो अपने अपने लोग जानने लगे हैं कि जैनधर्म क्या चीज़ है,उसी धर्मप्रचारका कार्य कर रहे हैं, वह दूसरा नहीं कर तरह वीर-शासन दिवसके दिन जैनग्रन्थों, रहा है / भगवान महावीरके शासनमें रहते और पुस्तकों तथा ट्रेक्टोंके सुसम्पादन, लेखन तथा उसके अनुयायी कहते और उसके अनयायी कह- प्रकाशनके लिये खासतौर पर योजनाएँ की जानी . चाहियें, धन एकत्र किया जाना चाहिये और उस लाते तुम्हारा यह कर्तव्य हो जाता है कि तुम वीर एकत्रित धनसे प्रकाशित साहित्यको जैन-जैनेतर शासन-दिवसको सार्थक बनानेके लिये वीरभग- संसारमें सम्यकज्ञानको जाग्रत करने के लिये खब वानकी शिक्षाओं पर यथाशक्ति अमल करनेके प्रचारित करना चाहिये / उस दिन प्रातःकाल संकल्पके साथ साथ जैनधर्मके अलौकिक ज्ञानके पूजन विधानादि हो तो दूसरे समयोंमें कमसे कम प्रसारार्थ पैसा दान करो और कराओ, एक बडी वीर भगवानके महान् ज्ञानको प्रकाशमें लानेका समिति ग्रन्थ-प्रकाशनके लिये योग्य विद्वानोंकी क्रियात्मक उद्योग अवश्य होना चाहिये, तभी हम अपने उत्तर दायित्वको कुछ निभा सकेंगे / अन्यथा क़ायम करो, ताकि वह तुलनात्मक पद्धति, इति- हमें एक विद्वानके शब्दोंमें किंचित् परिवर्तनके हास और पुरातत्वके आधारपर जैनधर्मके महत्व साथ कहना पड़ेगा कि- . पूर्णग्रन्थोंका नये ढंगसे उत्तम संपादन एवं प्रकाशन "न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ जिनधर्मके भक्तो ! कराए और धर्मके एक एक तत्त्व-उसके एक- तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में // " एक पहलू पर छोटे छोटे किन्तु सुन्दर और अल्प आशा है वीर भगवान और उनके शासनके मूल्य पर बेचेजानेवाले सरल और सीधे शब्दोंमें भक्त मेरे इस निवेदन और सामयिक सूचन पर ट्रेक्ट तथा पुस्तकें पुरस्कार दे देकर लिखाए और अवश्य ध्यान देनेकी कृपा करेंगे और आने वाले उन्हें लाखोंकी तादादमें छपानेमें स्वतंत्र रहे / उसे वीर जयन्तीके पुण्य-दिवस (श्रावणकृष्णाप्रतिपदा) धनकी कमी न रहना चाहिये / चन्देसे पर्वोमें. पर शासन-सम्बन्धमें अपने उपयुक्त कर्तव्य तथा जन्म, मरण, शादी और अन्य संस्कारोंमें योग्य , उत्तरदायित्वको पूरा करने के लिये अभीसे उसकी तय्यारी करेंगे। दान देकर उसका कोष बढ़ाओ और आवश्यकता
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
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