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________________ ... 84 अनेकान्त [वर्ष 3, किरण 1 AAAAAAAAAAAAAAAEEEEEED हाथी, घोड़ा, बैल, सिंह, बकरा, बकरी आदि अचेतन जगह न देख प्रजापति रोने लगा, प्रजापतिकी अांखोंसे और चेतन जगत्की रचना की / इस रचनाके बाद अश्रु-विन्दु टपककर समुद्र के जल-पटल पर गिर कर खुदाने सोचा कि मेरी एक प्रतिमूर्ति भी होना चाहिये, पृथ्वीमें तब्दील हो गये / बादमें प्रजापतिने भूभागको इच्छा होनेकी देरी थी कि खुदाकी एक दूसरी प्रतिमूर्ति साफ़ किया, जिससे वायुमण्डल और श्राकाशकी तैयार होगई, खुदाने उसे अचेतन देख उसमें चेतन उत्पत्ति हुई। शक्ति का संचार किया / इतना विपुल कार्य करनेके बाद दूसरी जगह लिखा है कि प्रजापतिने एकसे. अनेक खुदा श्रान्त होगया, उसने अपनी प्रतिमूर्ति हज़रत होने के लिये तपस्या की, तपस्यासे वेद और जलकी आदमके सामने अपनी सम्पर्ण रचना रखदी और उसे उत्पत्ति हुई / प्रजापतिने त्रयीविद्याको लेकर जल में उन समस्त पदार्थों का नामकरण करनेका आदेश दे प्रवेश किया, इससे अण्डा उत्पन्न हुआ, प्रजापतिने ७वें दिन रविवारको विश्राम करने चला गया / हज़रत अण्डेको स्पर्श किया, जिससे अग्नि, वाष्प, मिट्टी आदि श्रादमने सबका यथोचित नाम-निर्देश किया / पैदा हुई / उपनिषदोंमें भी सृष्टि -रचना और ईश्वरके कतिपय समालोचक एकमात्र ईश्वरसे ही समस्त विषयमें अनेक प्रकारकी मान्यताएँ पायई जाती हैं / जगत्का निर्माण बताने वाले दर्शनको प्रमाण मानते हुए वृहदारण्यक उपनिषदमें एक स्थल पर असत्भी मुसलमान व ईसाई दार्शनिकोंकी इस जगत-रचना मृत्यु और क्षुधाको अभिन्न बताकर मृत्युसे जीवन, शैलीकी खिल्ली उड़ाते हैं। खुदाके इस रचनाक्रमको जल, अग्नि, लोक अादिकी उत्पत्ति बतलाई है। दूसरे बाज़ीगरका खेल बताकर खूब उपहास करते हैं; परन्तु स्थान पर आत्मासे सृष्टि का उत्पत्तिक्रम मानकर कहा ऐसा करते हुए वे अपने मन्तव्यकी ओर ज़रा भी विचार गया है कि जिस समय अात्मामें संवेदनशक्तिका प्राविनहीं करते / वेदान्त, न्याय और वैशेषिक दर्शन ईश्वर- र्भाव हुआ, उस वक्त अात्मा निजको अकेला देखकर को अखिल विश्वका सर्जक मानते हैं / इन दर्शनोंके भयभीत हुआ / अात्मा पुरुष और स्त्रीमें विभक्त होगया। आविष्कर्ताोंने भी ईश्वर और जगतके विषयमें अनेक स्त्रीने सोचा कि पुरुष मेरा उत्पादक तथा प्रणयी है, मनोरञ्जक कल्पनाएँ स्थापित की हैं; उदाहरणार्थ कुछ- इसलिये उसने गायका रूप धारण कर लिया, पुरुष भी का निर्देश करना यहाँ उपयुक्त होगा बैल बन गया / गायने बकरीके रूपमें तब्दीली करली, - तैत्तरीय ब्राह्मणका अभिमत है कि सृष्टि रचनाके बैल भी बकरा बन गया / इसी तरह सिंह-सिंहनी आदि पहले पृथ्वी, आकाश आदि किसी भी पदार्थका युगलोंका प्रादुर्भाव हुआ। एक जगह ब्रह्मसे लोकका अस्तित्व नहीं था / प्रजापतिको एकसे अनेक होने की सृजन मानकर लिखा है कि ब्रह्मने अपने में पर्ण-शक्तिइच्छा हुई,एतदर्थ उसने घोर तपश्चरण किया,तपश्चरण- का अभाव देख ब्राह्मणादि चारों वर्णोका निर्माण के प्रभावसे धूप, अग्नि, प्रकाश, ज्वाला, किरणें और किया / छान्दोपनिषद्में असत्को अण्डा बताकर वाष्प उत्पन्न हुए / उत्पन्न होने के बाद ये पदार्थ जम अण्डे के फटनेसे पृथिवी, आकाश आदि समस्त संसारकी कर अत्यन्त कठिन होगये, इससे प्रजापतिका लिंग फट उत्पत्ति बतलाई है। गया और उससे समुद्र बह निकला / अपने ठहरनेको इस उपर्युक्त निर्देश में जहाँ ईश्वर ब्रह्मा या
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
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