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________________ 'कार्तिक, वीरनिर्वाण सं०२४६६] उस विश्ववंद्य विभूतिका धुंधला चित्रण 76 अनेक रूपोंमें आता है / कभी वह बाखलीलाके नामक किताब खिताबमें देनेका साहस हो सका। श्रावेगमें सर्पराजको रोंधते हैं, कभी नग्न साधुके वेशमें यह ध्रुव सत्य है कि यदि भगवान महावीर न होते कर्मोके खिलाफ जिहाद बोल देते हैं और कभी एक तो विश्व अपने कोने-कोनेमें कलकत्ताका कालीघाट उपदेशकके रूपमें निखिल विश्वको मंगलमय मार्गकी होता और पगपग पर पतित-पावन कही जानेवाली श्रोर इंगित करते हैं / किन्तु उन सब रूपोंमें एक ही गंगा और यमुनाकी जगह नरककी रक्तमयी वैतरणी झलक झलकती है, और वह यह कि तुम निडरता एवं इठलाती इतराती-सी नज़र आती। तब शायद हमारा सच्ची लगनसे सत्य और अहिंसापर कायम रहो. प्रात्म- और आपका भी जीवन किसी हवनका शाकल्य बना बलमें विश्वास रखो, फिर श्रागके धधकते शोले झक दिया जाता। झोर आँधीका अंधड़ और तूफानी बादल भी तुम्हारा पर यह उस विश्ववन्ध विभूतिके महान् जीवनकी कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे। बस, यही सफलताकी सच्ची अमर देन है, जो कि हम आज इस बर्बरता और कुंजी है / उस समय उनकी उच्चत्तम शिक्षाओंको अशान्तिके युगमें भी सत्य और अहिंसाके सहारे बाधाविश्वने हृदयसे माना और उनके अनुकूल आचरण भी प्रोंकी दुर्जय चट्टानोंको चीरकर अपने ध्येयकी ओर बढ़ किया / फलतः एकबार फिर विश्व-प्रेमकी लुप्त लहर रहे हैं। . लहरा उठी। वीरका जीवन आज भी हमें गाँधीके रूपमें अपनी परन्तु खेद है कि कुछ अर्से बाद फिर वही धार्मिक संस्कृति एवं सभ्यता पर स्थिर रहनेको 'गित कर कटुता और हत्याके नज़ारे भारतभू पर पनप उठे ! रहा है / अतः प्रायो, उनकी शासन-जयन्तीके जिनके प्रत्यक्ष सबूत कलकत्तेके कालीघाटके रूपमें पुनीत अवसर पर-श्रावणकृष्णप्रतिपदाके दिनअाज भी मौजूद हैं, जिसे यदि धार्मिक हत्या-सदन उनके दिव्यसंदेशको विश्वके कोने कोनेमें पहुँचानेकी (मज़हबी ज़िबहखाना-स्लाटर हाउस) भी कहा जाय योजनाकर अपने कर्तव्यका पालन करें, उनके ऋणसे तो अत्युक्ति न होगी। तथा इन्हींकी बदौलत ही उऋण होनेका यत्न करें और जीवित जौहरके जरिये मिस मेयो-सी गैरजिम्मेदार स्त्रीको भीभारतसे विज्ञान- जगतीमें जिन्दादिली भरदें, जिससे कि सारा विश्व तिलक, धर्मप्रधान देशको 'मदर आफ इंडिया' आज़ादी एवं अमनचैनसे रह सके / विविध-प्रश्न प्र०-इन कर्मो के क्षय होनेसे आत्मा कहाँ जाती है? लिये इसका पुनर्जन्म नहीं होता। उ०-अनंत और शाश्वत मोक्षमें। प्र०—केवलीके क्या लक्षण हैं ? प्र०—क्या इस आत्माकी कभी मोक्ष हुई है ? उ०–चार घनघाती कमों का क्षय करके और शेष उ०--नहीं। चार कर्मों को कृश करके जो पुरुष त्रयोदश गुणप्र०--क्यों? स्थानकवती होकर विहार करते हैं,वे केवली हैं / उ०—मोक्ष प्राप्त आत्मा कर्म मलसे रहित है, इस -राजचन्द्र
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
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