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________________ अनेकान्त (वर्ष 3, किरण 1 प आवाजें उसके कानोंसे टकराकर अनन्तमें व्याप्त हो रहीं करने में अपना अहोभाग्य मानती थी / बर्फीली, नुकीली हों तब वह रंगरेलियों में मस्त रहे ? यदि विषय-भोग एवं तवा-सी तपी दरदरी चट्टानें उनको आसन थीं। मानवको संतुष्ट और मुक्तकर सकते तो भरत जैसे भारते. पर यह सब प्रायोजन अपनी मुक्ति तथा संसारके श्वर क्योंकर भव्य भाण्डारोंको ठुकराकर वनकी राह उद्धारके लिये था, न कि महादेवकी तरह पार्वतीको लेते? रिझानेके लिये अथवा अर्जुनकी तरह शत्रु-संहारके .. वीरके इस प्रकारके एक एक करके सभी शब्द वास्ते / प्रागके धधकते शोले थे, जिन्होंने मांकी ममताका अन्तमें बारह वर्षकी कड़ी तपस्याके बाद उन्हें जनाज़ा जला डाला / और तब राजमाताने दीक्षाकी सफलता-देवीने अपनाया और वे केवल ज्ञानको प्राप्त आज्ञा देदी। कर विश्वोद्धारको निकल पड़े। उन्होंने संसारको सत्य ____ वीर भी दुनियाँकी ऐशो-इशरतको ठुकराकर वनके और अहिंसाका पूर्ण सारगर्भित मार्मिक उपदेश दिया उस शान्त प्रदेशको चले गये जहाँ प्रकृति अपनी विश्वको भाईचारेका सफल पाठ पढ़ाया और मानवोंकी अनुपम छटा दिखला रही थी / वनके उस हरियाले दिमाग़ी गुलामीको दूर कर उन्हें पूर्णस्वाधीनता वैभवमें वे भी अपनी सदियों से बिछुड़ी निधिको खोजने- (मुकम्मिल श्राज़ादी) प्राप्त करने का मार्ग सुझाया, जिसे में व्यस्त हो गये ! आज भी पराधीन भारतकी कोटि कोटि जनता एकंकण्ठसे __ अब उनका जीवन एक तपस्वी जीवन था / वह पुकार रही है। बाल सुलभ-चंचलता विलीन हो चुकी थी / वहाँ न इस प्रकार अपना और लोकका हितसाधन करके राग था, न रंग और न द्वेष तथा दम्भ / कर्मों पर वीर भगवान् 72 वर्षकी उम्र में मुक्तिको प्राप्त हुए और . विजय हासिल करके आत्म विकास करना उनकी एक. लोकके अग्रभागमें जा विराजे / मात्र साधना थी, जिसके लिये वे कठोरसे कठोर यह है उनके विशाल-जीवनकी नन्हीं-सी कहानी, यातना भी सहनेको कटिबद्ध थे / अतः उन्होंने अपनी जो कि उनके जीवन-पटपर धुंधलासा प्रकाश फेंक सारी शक्तियाँ इसी मोर्चे पर लगादीं। सकती है / वास्तवमें वीरका जीवन एक ऐसा महान् ___ कंकरीली, नुकीली, ऊबड़-खाबड़ जमीन उनका ग्रन्थ है जिसके प्रत्येक पत्रके प्रत्येक पृष्ठकी प्रत्येक बिस्तर थी और खुला आसमान था चादर ! इस पंक्तिमें 'अहिंसा महान् धर्म है' 'ब्रह्मचर्य ही जीवन है" सेजके सहारे सर्दी की बर्फीली रातें और गर्मी के आग-से 'सत्य कहीं नहीं हारता' 'सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, दिन यों ही बिता देते थे। सम्यक् चरित्र ही मोक्षमार्ग है'-जैसे मुक्तिपथ-प्रदर्शक समाधि उनकी साधनाका साधन थी कोमल सेज तथा सूत्र भरे पड़े हैं। सोचो-यदि भगवान् महावीरका मुलायम गलीचों पर आराम करने वाला उनका सुकु- जीवन-ग्रन्थ न होता तो फिर हम जैसे अल्पज्ञ मार शरीर काफी कठिन एवं कृश हो चुका था / वर्षाकी - इन विस्मृत महान् सूत्ररत्नोंकी झांकी, कहाँ, कैसे और वज्रभेदी बौछारें उन्हें नहला जाती, गर्मीकी सनसनाती किससे पाते ? आपटें तपा जातीं और सर्दीकी ठंडी हवा उनसे किल्लोले 72 वर्षके लम्बे चित्रणमें वीरका जीवन क्रमसे
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
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