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________________ कार्तिक वीर निर्वाण सं०२४६६] यापनीय साहित्यकी खोज 67 चंकि अपराजितसरिने दशवैकालिककी टीका लिखी थी, अर्ककीर्ति मुनिको मान्यपुर ( मैसूर राज्यके नेल मंगल शायद इसीलिए वे 'श्रारातीय-चूडामणि' कहलाते हों / ताल्लुकेका मौने नामक ग्राम ) के शिलाग्राम जिनेन्द्रदिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार दशवैकालिकादि अंगबाह्य भवनको एक गाँव भेंट किया गया है। उसमें स्पष्टतासे श्रुत तो हैं; परन्तु उसकी दृष्टि में वे छिन्न होगये हैं और "श्रीयापनीय-नन्दिसंघ-'नागवृत्तमूलगण" लिखा हुआ जो उपलब्ध हैं वे अप्रमाण हैं / अतएव दिगम्बर है। इस नन्दिसंघके अन्तर्गत उसकी शाखारूप पूनागसम्प्रदायका कोई भी श्राचार्य इस पदवीका धारक * वृक्षमूल नामका गण था / जिस तरह मूलसंघके नहीं है। अन्तर्गत, देशीय काणूर श्रादि गणं हैं, उसी तरह यापयापनीयों का नन्दिसंघ नीयनन्दिसंघमें यह भी था। रायबाग के शिलालेखमें गंगवंशी पृथ्वीकोङ्गणि महाराजका शक 168 (वि० जो ई०स० 1020 का लिखा हुआ है, यापनीयसंघ. सं०८३३) का एक दानपत्र' मिला है जो श्रीपुर पुन्नागवक्षमूलगणके कुमारकीर्तिदेवको कुछ दान (शिरूर) के लोकतिलक नामक जैनमन्दिरको दिया गया है / इसी तरह कोल्हापुरके 'मंगलवारबस्ति' 'पोन्नल्लि' नामक ग्रामके रूपमें दिया गया था / उसमें नामक जैनमन्दिरकी एक प्रतिमाके नीचे एक शिलालेख जो गुरुपरम्परा दी है वह इस प्रकार है-श्रीचन्द्रनन्दि है जिससे मालूम होता है कि पुन्नागवृक्षमूलगण गुरु, उनके शिष्य कुमारनन्दि, उनके कीर्तिनन्दि और यापनीयसंघके विजयकीर्ति पण्डितके शिष्य और उनके विमलचन्द्राचार्य / इन्हें श्रीमूल २मूलगणाभि- रवियएणके भाई वोमियण्णने उसकी प्रतिष्ठा कराई थी। नन्दित नंदिसंघ, एरे गित्तूर नामक गण और मूलिकल इन दो लेखोंमें यापनीयसंघ : पुन्नागवृक्षमूलगणका गच्छका बतलाया है / हमारा खयाल है कि जिस तरह उल्लेख तो है परन्तु नन्दिसंघका नहीं है, फिर भी यह मूलसंघके अन्तर्गत एक नन्दिसंघ है, उसी तरह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि नन्दिसंघ यापनीयों यापनीय संघके अन्तर्गत भी एक नन्दि संघ था। इसके में भी था और उसके अन्तर्गतपुन्नागवृक्ष मूलगण था / प्रमाणमें हम राष्ट्रकूटनरेश द्वि० प्रभूतवर्ष के एक दानपत्रको पेश कर सकते हैं, जिसमें शक 735 (वि० सं० द्रविड़ संघमें भी नन्दिसंघ 870) को यापनीय नन्दिसंघके विजयकीर्तिके शिष्य यापनीय संघ ही नहीं द्रविड़ या प्रमिल संघमें भी नन्दिसंघ नामका संघ था जिसका उल्लेख, कई - इण्डियन एण्टिक्वेरी 2-156-56 श्रीमूलमूलशरणाभिनन्दित-नन्दिसंघान्वयएरेगित्तर नाम्नि १-जर्नल आफ बाम्बे हिस्टारिकल सुसाइटी जिल्द गणेमूलिकल्गच्छे स्वच्छतरगुणकिरणप्रततिप्रह्लादितसकललोकश्चन्द्र इवापरश्चन्द्रनन्दिनाम गुरुरासीत् / / पृ० 112-200... .. . ____२-'श्रीमूलमूलशरणाभिनन्दित' पाठ शायद ठीक २-प्रो० के. जी. कुंडनगरने कनड़ी मासिक पत्र नहीं है। सम्भव है पढ़नेवालेने 'गण' को 'शरण' 'जिनविजय' (सन् 1932) में यह और यापनीयोंके पढ़ लिया है। अन्य लेख प्रकाशित किये थे / इनका उल्लेख प्रो उपा__३-इं०ए० जिल्द 12 पृ०१३-१६...श्रीयापनीय- ध्यायने अपने 'यापनीय संघ' शीर्षक लेख में किया है। नन्दिसंघपुंनागवृक्षमूलगणे श्रीकीर्त्याचार्यान्वये / देखो जैनदर्शन वर्ष 4 अंक 7 / . ..
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
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