SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त [वर्ष ३, किरण १ खण्ड' के ही अधिकार हैं, जिनके क्रमशः कथनकी समाप्त करते हुए भी इतना ही लिखा है कि "एवमोग्रंथमें सूचना की गई है। गाहणप्पाबहुए सुवुत्ते बंधणिजं समत्तं होदि ।" ' (घ) चौथी बात है कुछ वर्गणासूत्रोंके उल्लेख की। दूसरे, 'वर्गणासूत्र' का अभिप्राय वर्गणाखंडकासूत्र नहीं सोनीजीने वेदनाखण्डके शुरूमें दिये हुए मंगलसूत्रोंकी किन्तु वर्गणाविषयक सूत्र है । वर्गणाका विषय अनेक व्याख्या मेंसे निम्न लिखित तीन वाक्योंको उद्धृत किया खंडों तथा अनुयोगद्वारोंमें आया है, 'वेदना' नामके है, जो वर्गणासूत्रों के उल्लेखको लिये हुए हैं- अनुयोगद्वारमें भी वह पाया जाता है-“वग्गणपरूवणा" "ओहिणाणावरणस्स असंखेजमेत्ताओ चेव नामका उसमें एक अवान्तरान्तर अधिकार है। उस पयडीओ त्ति वग्गणसुत्तादो।" अधिकारका कोई सूत्र यदि वर्गणासूत्रके नामसे कहीं "कालो चउराण उड्ढी कालो भजिवो खेत्तवुड्ढीए उल्लेखित हो तो क्या सोनीजी उस अधिकार अथवा वुड्ढीए दब्वपज्जय भजिदव्वो खेत्तकाला दु॥ वेदना अनुयोगद्वारको ही 'वर्गणाखंड' कहना उचित . एदम्हादो वग्गणसुत्तादो णव्वदे।" समझेंगे ? यदि नहीं तो फिर उक्त वर्गणासूत्रोंके प्रकृति "आहारवग्गणाए दव्वा थोवा, तेयावग्गणाए अादि अनुयोगद्वारोंमें पाये जाने मात्रसे उन अनुयोग दव्वा अणंतगुणा,भासावग्गणाए दव्या अणंतगुणा, द्वारोंको 'वर्गणाखंड' कहना कैसे उचित हो सकता है ? मण० दव्वा अणंतगुणा, कम्मइय अणंतगुणा त्ति कदापि नहीं । अतःसोनीजीका उक्त वर्गणासूत्रोंके उल्लेख वग्गणसुत्तादो णव्वदे।” परसे यह नतीजा निकालना कि “यही वर्गणाखंड हैये वाक्य यद्यपि धवलादि-सम्बन्धी मेरी उस नोट्स- इससे जुदा और कोई वर्गणाखंड नहीं है"ज़रा भी तर्कबुक में नोट किये हुए नहीं हैं जिसके आधारपर यह सब संगत मालूम नहीं होता। परिचय लिखा जा रहा है, और इससे मुझे इनकी यहाँ पर मैं इतना और भी बतला देना चाहता हूँ जाँचका और इनके पूर्वापर सम्बन्धको मालूम करके कि घटखडागमके उपलब्ध चारखंडोंमें सैकड़ों सूत्र ऐसे यथेष्ट विचार करनेका अवसर नहीं मिल सका; फिर भी हैं जो अनेक खंडों तथा एक खंडके अनेक अनुयोगसोनीजी इन वाक्योंमें उल्लेखित प्रथम दो वर्गणासूत्रोंका द्वारों में ज्योंके त्यों अथवा कुछ पाठभेदके साथ पाये 'प्रकृत' अनुयोगद्वार में और तीसरेका 'बन्धनीय' अधि- जाते हैं—जैसे कि 'गइ इंदिए च काए'० नामका कार में जो पाया जाना लिखते हैं उस पर मुझे सन्देह मार्गणासूत्र जीवट्ठाण, खुद्दाबंध और वेयणा नाम के करनेकी ज़रूरत नहीं है । परन्तु इस पाये जाने मात्रसे तीन खंडोंमें पाया जाता है । किसी सूत्रकी एकता ही 'प्रकृत' अनुयोगद्वार और 'बन्धनीय' अधिकार अथवा समानताके कारण जिस प्रकार इन खंडोंमेंसे वर्गणाखण्ड नहीं हो जाते । क्योंकि प्रथम तो ये अधि- एक खंडको दूसरा खंड तथा एक अनुयोगद्वारको दूसरा कार और इनके साथके फासादि अधिकार वर्गणाखण्ड- अनुयोगद्वार नहीं कह सकते उसी प्रकार वर्गणाखंडके के कोई अंग नहीं हैं, यह बात ऊपर स्पष्ट की जा चुकी कुछ सूत्र यदि इन खंडों अथवा अनुयोगद्वारोंमें पाये है इनमेंसे किसीके भी शुरू, मध्य या अन्तमें इन्हें जाते हों तो इतने परसे ही इन्हें वर्गणाखंड नहीं कहा वर्गणाखंड नहीं लिखा, अन्तके 'बन्धनीय' अधिकारको जा सकता । वर्गणाखंड कहनेके लिये तद्विषयक दुसरी
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy