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________________ कार्तिक, वीरनिर्वाण सं०२४६६] वीतराग प्रतिमाओंकी अजीब प्रतिष्ठा विधि 115 पर, कोई मोर पर, कोई मग पर, कोई अष्टापद पर, नम्रा, दुरिता, पुरुषदत्ता, मोहनी, काली, ज्वालामालिनी, कोई गोह पर, कोई कछुए पर, कोई भैंसे पर, कोई मशकाली, चामुंडा, गौरी, विद्युतमालिनी, बैरोटी, विज़ंसूअर पर, कोई सिंह पर, कोई साँप पर और कोई भणी, मानसी, कंदर्पा, गांधारिणी, काली, मनजात, हंस पर, इनमेंसे अनेकोंके चार चार हाथ हैं और बहुरूपिणी, कुसुमालिनी, कुष्मांडिनी; पद्मावती, और किसी किसी के आठ आठ भी। हाथों में तलवार. चक्र भद्रासना है। इनमेंसे भी कोई हँस पर, कोई हाथी-पर, खड्ग, वज्रकी सांकल, अंकुश, भाला, वज्र, मूसल, कोई घोड़े पर, कोई बैल पर, कोई भैंसेपर, कोई कछुए . धनुष, बाण, त्रिशूल, और फल कमल श्रादि होते हैं। पर, कोई सूअर पर, कोई हिरण पर, कोई मगरमच्छ पर, इसी रूपमें इनका आह्वाहन कर अलग 2 अष्टद्रव्य कोई अजगर पर, कोई बाघ पर, कोई मोर पर, कोई से इनकी पूजा की जाती है / अष्टापद पर, कोई काले साँप पर, कोई कुक्कुट सर्प पर ___ धर्मात्माओंके बैरियोंका नाश करनेवाले 24 यक्ष चढ़कर पूजा करनेको आती हैं। इनके भी किसीके जिनकी श्राहाहनकर पूजा की जाती है। वे जिस रूपमें चार हाथ किसीके आठ और किसीके उससे भी ज्यादा पूजे जाते हैं, उसका वर्णन इस प्रकार है / नाम इनका हाथ होते हैं / हाथोंमें वज्र, चक्र परशु, तलवार, नागगोमुख, महायक्ष, त्रिमुख, यक्षेश्वर, तुंबर, पुष्प, मातंग, * पाश, त्रिशूल, धनुष, बाण, ढाल, मुग्दर, मूसल, अंकुश, श्याम, अजित, ब्रह्म, ईश्वर, कुमार, चतुर्मुख, पाताल, मच्छली, साँप, हिरण, वृक्षकी टहनी और वृक्ष और किन्नर, गरूड़, गंधर्व, खेन्द्र, कुवेर, वरुण, भृकुटी, फल आदि होते हैं। गोमेध, धरण और मातंग है / इनमेंसे किसीके तीन दिक्पालोंकों उनके आयुध, बाहन स्त्री और परिवार मुख हैं, किसीके चार / किसीका गायकासा मुख है। सहित श्राहाहन आदि द्वारा बुलाकर पूजाकी जाती है किसीके तीन आँख, किसीका काल कुटिल मुख, किसीके और बलि दीजाती है / नाम उनके इन्द्र, अग्नि, यम नागफणके तीन सिर तीन मुख, किसीका तिर्खामुख, नैऋत्यु वरुण, वायु, कुवेर, ईशान, धरणेन्द्र और चंद्र किसीकी देहमें सांपोंका जनेऊ / कोई बैल पर सवार, हैं / इनमें कोई ऐरावत पर, कोई मेंढ़ेपर, कोई भैसेपर, कोई हाथी पर, कोई सूअर पर, कोई गरूड़ पर, कोई कोई हाथी पर, कोई घोड़े पर,कोई बैल पर, कोई कार, हिरण पर, कोई सिंह पर, कोई कबूतर पर, कोई कछुए- पर, कोई सिंह पर सवार होकर. अाता है, इनके भी' पर, कोई सिंह पर, और कोई मोर पर, कोई मगरमच्छ हाथोंमें बन, अग्नि ज्वाला; शक्ति, दंड, मुग्दर, नागपर और कोई मच्छलीपर / हाथोंमें फरसा, चक्र, त्रिशूल, पाश, वृक्ष, त्रिशूल, भाला और अन्य वस्तुएं होती हैं। अंकुश, तलवार, दंड, धनुष, बाण, सांप, भाला, शक्ति, किसीके सर्पाकृति भूषण, किसीके अांखसे अग्निकी गदा, चाबुक, हल, मुग्द्र, नागपाश और फल आदि ज्वाला निकले, कोई नाग देवोंसे युक्त, फण पर मणि लिये हुए, किसीके चार हाथ, किसीके अाठ और किसी- सूर्यके समान चमके, अष्ट दिव्यसे इनकी पूजा करनेके के इससे भी ज्यादा। . . बाद जौ, गेहूँ, मूंग, शाली, उड़द आदि सात प्रकारके ___ 24 यक्षीदेवियोंकी पूजा, जिस रूपमें की जाती है, अनाजकी सात सात मुट्ठीकी आहुति इन दिकपालोंके वह इस प्रकार है / नाम इनका चक्रेश्वरी अजिता, वास्ते जल कुंडमें दी जावे / श्राहाहन इनका परिवार
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
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