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________________ अनेकान्त ..... . . [वर्ष 3, किरण 1 पाककी लकड़ीसे पकाया अन्न, दूध मिलाकर अग्निमें वायुकुमार, मेघकुमार, अग्निकुमार देवोंका आहुति देवे / (3) मंगलको खैरकी लकड़ीसे अाहाहन कर भूमि शुद्ध कर, नागकुमारको तृप्त भुने हुए गुड़ घी मिले हुए जौके सत्तसे और गूगल, करे / फिर द्वारपालदेवोंको पूजकर नागराजको सफेद धी, लाल इलायची, अगरुकी धूपसे बाहुति देवे। चूर्णसे, कुवेरको पीलेसे; हरितदेवको हरेसे, रक्त(४) बुद्धको अपामार्गकी लकड़ीसे भात बना कर प्रभदेवको लालसे, कृष्णप्रभदेवको काले चूर्णसे, दूध डाल राल घी से आहुति देवे / (5) बृहस्पतिको शत्रुओं के नाश के वास्ते स्थापन करे / फिर अर्हतपीपलकी लकड़ीसे बनी हुई खीर, घी, धूपसे आहुति की पूजाकर 16 विद्या देवियोंकी पूजा अाह्वाहनादि देवे। (6) शुक्रको ऊंबरकी लकड़ी फल्गुकी लकड़ीसे करके अलग 2 अष्टद्रव्यसे करे / फिर 24 जिनभुने हुए जौ, गुड़, घी, की आहुति देवे (7) शनिको माताओंकी पूजा अष्टद्रव्यसे , 32 इन्द्रोंकी समीकी लकड़ी, उड़द, तेल, चावल, राल, घी, पूजा. करे। फिर 24 यक्षदेवोंकी, फिर 24 यक्षीअगरकी श्राहति देवे / () राहको दबके ईधनसे देवियोंकी श्राहाहनादिके साथ अष्टद्रव्यसे करे। फिर पकाया हुअा गेहूँ आदिका चूर्ण, काजल, दूध, घी, द्वारपालोंकी, फिर चारदिशाओंके यक्षोंकी, फिर लाखकी आहुति देवे। (6) केतुको उड़द और कुलथीके अनावृत यक्षकी, फिर छत्रादि आठ मंगल द्रव्योंकी चूनको दर्भके ईधनसे पका कर धी. कच्ची बेल पूजा अष्टद्रव्य से करे, और फिर अ आयुध ( हथि-: मिला कर आहुति देवे / यार.) स्थापन करे / फिर आठ ध्वजा स्थापन करे / फिर परम ब्रह्म अर्हतदेवकी पूजा कर श्री आदि अब यहाँ, इस मौके पर, इन देवी देवताओंका देवियोंको प्रष्ट द्रव्य चढ़ावे, फिर गंगा आदि देवियोंको कुछ स्वरूप भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है बढ़ाये, फिर सीता नंदीके महाकुडके देवोंको : जो कि इनकी पूजा समय प्रतिष्ठाग्रन्थोंके अनचढ़ावे, फिर लतणादधि, कालोदधिके समुद्रोंके - सार वर्णन किया जाता है / वज्र, चक्र, तलवार, मुद्गर मागधनादि तीर्थ देवोंको, फिर सीता सीतोदानदियोंके और गदाअादि हथियारों को रुद्राणी, वैष्णवी, बाराही, मामधश्रादि तीर्थ. . देवताओंको फिर असंख्य ब्राह्माणी, लक्ष्मी, चामुंडा, कौमारी और इन्द्राणी धारण (अनगणित) समुद्रोंके देवोंको, फिर जिनको लोक किये होती हैं। ये देवियों कोई ऐरावत पर, कोई गरुड़ मानते हैं ऐसे तीर्थ देवोंको, जल आदि अष्टद्रव्य चढ़ावे। पर, कोई मोर पर, कोई जंगलीसूअर आदि पर सवार सब ही जल देवताओंको अष्ट द्रव्य पूजासे प्रसन्न कर होती हैं / ध्वजा भी जया, विजया, सुप्रभा, चन्द्रमाला, सरोवरमें घुसे और कलशोंको पानोसे भरकर उन मनोहरा, मेघमाला, पद्मा और प्रभावती नामकी देवियों कलशोंको चन्दन, पुष्पमाला, दूब, दर्भ, अक्षत और के हाथमें होती है। 16 विद्यादेवियोंके नाम रोहिणी सरसोंसे पूज कर सौभाग्यवती स्त्रियोंके हाथ मंडपमें प्राप्ति, वज्रशृंखला, वज्रांकुशा, जम्बुनदा, पुरुषदत्ता, लेजाकर जिनेन्द्रदेवकी पूजा करे। . काली, महाकाली, गौरी, गांधारी, ज्वालामालिनी, - अहंत आदिका : पूर्जनकर क्षेत्रपालकी मानवी, बैरोटी, अच्युता, मानसी, महामानसी नामकी पूजा अष्टद्रव्यसे करे / फिर वास्तुदेवकी पूजाकर,' हैं / इनमें से कोई घोड़े पर सवार होती है, कोई हाथी
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
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