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________________ कार्तिक, वीर निर्वाण सं०२४६६] वीतराग प्रतिमाओंकी अजीब प्रतिष्ठा विधि 106. आदिकी लीला करके ही उनको प्रतिष्ठित मानना कैसे बनाने के वास्ते उसके पास तीर तरकश, ढाल-तलवार ठीक बैठ सकता है ? यह तो उलटा उनको बिगाड़ना, और गदा आदि सब हथियार रखते हो तो क्या उस और अपने कारज के विरुद्ध बनाना है। वीतराग प्रतिमाकी जो पद्मासन लगाये, हाथ-पै-हाथ ___ कव्या हंसकी चाल चले या हंस कव्वेकी चाल चले रक्खे, आत्मध्यानमें मग्न दिखाई देरही है, जिसके दोनों ही सूरतोंमें नकल ठीक नहीं बैठा करती है; किन्तु सिरके केश नोचे हुए मालूम पड़ रहे हैं, पूर्ण परम बात हंसी मखौल के ही योग्य हो जाती है / यही हाल दिगम्बर अवस्था है, जिसकी परम वीतरागरूप छबि इस विषयमें हमारा हो रहा है / हम दूसरोंकी रीस करके बनाने के वास्ते कारीगरने अपनी सारी कारीगरी खर्च लीला तो करना चाहते हैं गर्भसे लेकर निर्वाण तककी करदी है और प्रतिष्ठा कराने वाले ने भी सबसे अधिक अवस्था की, परन्तु हमारे पास है केवल एक परम वीत- वीतराग छबि दिखानेवाली यह प्रतिमा कारीगरकी राग अवस्थाकी ही प्रतिमा / उसहीको प्रतिष्ठित करने के अनेक प्रतिमाओंमेंसे छाँटकर ली है। ऐसी प्रतिमाके बहानेसे हम यह सब लीला ..रचते हैं; परन्तु बहाना तो पास मनुष्योंकी हिंसाके करनेवाले युद्ध के हथियार रख * बहाना ही होता है / इसही कारण उस अपनी परम .. देनेसे क्या वह राजाकी मूर्ति बन जाली है / नहीं नहीं; वीतरागरूप प्रतिमाको ही गर्भ में रखकर गर्भका बहाना ऐसा करनेसे न तो वह राजाकी ही लीला, बनती है करते हैं, उस ही परमवैरागरूप प्रतिमाको पालने में ओंधी और न वीतरागकी ही; किन्तु बिल्कुल ही एक विलरखकर इस तरह झुलाते हैं जिस तरह छोटे छोटे बच्चों- क्षण लीला बनजाती है जो आजकलके जैनियोंकी को झुलाया करते हैं / यह झूला झुलानेकी लीला प्रतिष्ठा-: बुद्धिकी माप कराने वाली सर्वसाधारणके वास्ते प्रत्यक्ष की विधि करने वाले ही नहीं करते हैं; किन्तु सबही कसौटी होती है / .. . यात्री स्त्री-पुरुष अाकर एक-एक दो दो झोटे देते हैंइन सब बेसिर पैरकी अद्भुत लीलाओंके अलावा और रुपये चढ़ाते हैं / परन्तु इन सबही झोटा देनेवाले यह भी तो सोचनेकी बात है कि यदि वास्तवमें इन यात्रियोंसे ज़रा पूछो तो सही कि पालने में गोंधी पड़ी अद्भुत लीलाओंके करनेसे तीर्थंकर भगवान्के बालहुई जिस मूर्तिको तुमने झुलाया है वह बालक अवस्थाकी . पन, गृहस्थभोग, विवाह शादी, स्त्रीभोग, राजभोग और -मूर्ति नज़र आती थी या परम वीतराग अवस्थाकी 1. युद्धादि करनेका सब संस्कार उस वीतराग प्रतिमा जवाब यह. ही मिलेगा कि मूर्ति तो पालने में परम वीत- पर पड़ता है, जिसके साथ यह लीलाएँ की जाती हैं राग अवस्थाकी ही औंधी डाल रक्खी थी। तब तुमने जिसकी प्रतिष्ठाकी जाती है, तो उस प्रतिमा में यह सब बालकको झुलाया या भगवानकी परम वीतराग अवस्था- . संस्कार पड़ जानेसे वह परम वीतरागरूप कैसे रह की मूर्तिको; और वह भी औंधी डालकर / सोचो और सकती है ? परम वीतरागरूप तो वह तबतकही थी खूब सोचो कि यह लीला तुम किस तरह कर रहे हो ? जबतककी उसमें यह महारागरूप राजपाटके संस्कार यह जैनधर्मकी लीला कर रहे हो या उसका मखोल 1 नहीं डाले गये थे / उस परम वीतराग रूप भगवानकी इसही प्रकार जब इसही परम वीतरागरूप प्रतिमाको महावीतरागरूप प्रतिमाको यह सब लीलाएँ कराकर कंकण और अन्य आभूषण पहनाते हो औरराज अवस्था तो मानों परम वीतरागरूप भगवानको आपने फिरसे
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
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