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________________ अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर वर्ष - 24, अंक 1, जनवरी मार्च 2012, 57-60 - धार संग्रहालय की परमार कालीन जैन प्रतिमाएं ■ अरविन्द कुमार जैन एवं संगीता मेहता ** * सारांश म.प्र. राज्य का धार जिला पुरातात्विक सामग्री से समृद्ध है। इसी कारण लार्ड कर्जन की प्रेरणा से 1902 में धार संग्रहालय की स्थापना की गई थी। यही संग्रहालय वर्तमान में जिला पुरातत्व संग्रहालय धार के नाम से विख्यात है। यहाँ संग्रहीत 10 अभिलिखित परमारकालीन जैन प्रतिमाओं का विवरण प्रस्तुत आलेख में अंकित है। जिला पुरातत्व संग्रहालय धार वर्तमान मध्यप्रदेश का सबसे प्राचीन संग्रहालय है। प्राचीन धारा नगरी का पुरातत्वीय वैभव तो बहुत समय पूर्व से ही लोगों को ज्ञात था लेकिन इस नगरी में यहां के अवशेषों की खोज का इतिहास अधिक प्राचीन नहीं है। धार रियासत में महाराजा आनन्दराव पंवार तृतीय के शासन काल में इनके सद्प्रयत्नों से 1872 से ही धार स्टेट के पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक सामग्री की खोज संबंधी कार्यवाही प्रारम्भ की गई। इन्हीं के समय महल की खुदाई करते समय 1874 ईस्वी में कुछ कलाकृतियां एवं पुरातत्व अवशेष मिले थे। उन्हीं दिनों 1875 ईस्वी में मोपावर ऐजेंसी के पोलिटिकल एजेन्ट मेजर किकेड जब धार आये थे तब उनके द्वारा इन उपलब्धियों की खबर दी गई एवं उन्होंने स्वयं रुचि ली और अनेक कलाकृतियों को एक स्थान पर संग्रहीत किया गया। विद्वानों की ऐसी मान्यता है कि किकेड के समय किये गये संग्रह में भोजशाला की प्रसिद्ध सरस्वती प्रतिमा भी थी जिसे बाद में लंदन भेज दिया गया। मध्य भारत (सेन्ट्रल इंडिया) के तत्कालीन पोलिटिकल एजेंट केप्टन बार्नेट ने भी धार स्टेट की पुरातत्वीय एवं ऐतिहासिक सामग्री का अध्ययन एवं अनुक्रम रखने में विशेष रुचि ली और उनके सहयोग से धार रियासत के इतिहासकार राज्यरत्न पं. के.के. लेले ने कमाल मौला मस्जिद (भोजशाला) की शिलाओं पर अंकित अनेक शिलालेख खोज निकाले ।" पं. के.के. लेले की खोज तत्कालीन भारतीय पुरातत्व की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। डॉ. फ्यूरर बूलर, सर जे. ए. केम्पवेल, प्रो. पिशल व कीलहार्न, राय बहादुर हीरालाल ओझा, डॉ. डी. आर. भण्डारकर तथा हीरालाल जी आदि पुराविद् इस खोज से अत्यधिक प्रभावित हुए। ई. सन् 1874 में माऊ दाजी ने भगवान लाल इन्द्रजी को शिलालेख के छापे लेने के लिए धार भेजा। सन् 1875 में डॉ. व्यूलर मैनेजर डॉ. फ्यूरर भी धार आए। ई. सन् 1895 में सर जे. ए. कैम्पवेल ने अपने सहायक पेजुल्ला खां को लेकर पुरात्तवीय खोज को देखने के लिए इस नगरी की यात्रा की इस प्रकार 1872 में जिस पुरातत्वीय खोज का आरम्भ हुआ। वह सन् 1900 ई. तक पूर्णरूपेण चलती रही। पोलिटिकल एजेंट केप्टन बानेट ने (1900 1904) धार और माण्डू पर अध्ययन करके परिचय पुस्तिका तैयार की। लार्ड कर्जन को पुरातत्व में विशेष अभिरुचि थी। उनकी प्रेरणा से एकत्रित की गई सामग्री को सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से सितम्बर 1902 में धार नगर में धार रियासत द्वारा जागरूकता का प्रदर्शन कर पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना की गई और उसी वर्ष जब ** शोध छात्र एवं प्रबन्धक, कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, 584, महात्मा गांधी मार्ग, इन्दौर 452001 ** प्राध्यापक - संस्कृत, अटलबिहारी बजपेयी शास. कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, इन्दौर
SR No.526592
Book TitleArhat Vachan 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size3 MB
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