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________________ कुछ लाल व भूरे पत्थरों की भी हैं। कृष्ण के जीवन से सम्बन्धित प्रमुख जैन अंकन प्रसिद्ध पार्श्वनाथ मंदिर की भित्तियों पर देखे जा सकते है । पार्श्वनाथ मंदिर में अंकित एक शिल्प की पहचान यमलार्जुन उद्धार से की गई है। शिल्प में कृष्ण को द्विभुज दिखाया गया है जो दोनों हाथों से वृक्षों को उखाड़ रहे हैं। मूर्ति में कृष्ण कौस्तुभमणि, किरीट मुकुट, कुण्डल, हार, यज्ञोपवीत, नुपूर और कटि के नीचे वस्त्र पहने हैं। इसी मंदिर में एक अन्य मूर्ति गर्भगृह की दक्षिणी जंघा के पीछे वाले प्रवेश द्वार की बाह्य भित्ति पर बनी है। द्विभुज मूर्ति के बायें हाथ में शंख और दाहिना हाथ अभयमुद्रा में है। मूर्ति की पहचान कृष्ण से की जा सकती इसके अतिरिक्त पिलानी, राजस्थान से नेमिनाथ की एक ताम्र प्रतिमा 12वीं शताब्दी प्राप्त हुई है। यहाँ इन्हें स्थानक दिखाया गया है।15 (चित्र संख्या 2) जैन शिल्प के अवलोकन के पश्चात् मन की यह चित्र संख्या 2 धारणा बलवती हो जाती है कि कृष्ण बलराम चरित्र का वर्णन केवल हिन्दू साहित्य एवं शिल्प तक ही नहीं सीमित है बल्कि जैन धर्म में भी अपना स्थान बनाये हुए हैं । तीर्थंकर अरिष्टनेमि के चचेरे भाई और प्रमुख उपासक होने के कारण कृष्ण, बलराम को महापुरुष के रूप में जैन परम्परा स्वीकार करती है। हिन्दू धर्म में कृष्ण एवं बलराम को अवतार स्वरूप माना गया है जबकि जैन धर्म अवतार की धारणा को नहीं मानता। जैन मान्यता है कि सामान्य मनुष्य त्याग, संयम और तपस्या से श्रेष्ठ पुरुष बन सकता है किसी की कृपा से कोई महापुरुष नहीं बनता। प्रत्येक जीव सर्वोच्च पद प्राप्त कर सकता है। जैन साहित्यकारों ने कृष्ण, बलराम के चरित्र को उनके बलशाली कार्यों एवं तीर्थंकर अरिष्टनेमि के उपदेश से प्रभावित होने के कारण अपने साहित्य में महत्व दिया है।17 उपर्युक्त तथ्यों पर विचार करने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि इन धर्मों में जो अंतर है वह दार्शनिक विचारधारा के कारण है। शिल्पकला के साक्ष्यों से यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि प्रथम-द्वितीय शताब्दी ई. तक जैन मान्यता में कृष्ण, बलराम कथा बद्धमूल हो चुकी थी। इसी काल में नेमिनाथ की मूर्ति के पार्श्व में कृष्ण एवं बलराम का अंकन प्रारम्भ हो जाता है। नेमिनाथ के साथ इस प्रकार का अंकन पूर्व मध्यकाल के कुछ अंकनों में भी उपलब्ध है। आबू के लूणवसही एवं विमलवसही तथा कुंभारिया के मन्दिरों में नेमिनाथ के जीवन से संबंधित कथा के साथ-साथ कृष्ण, बलराम कथा को भी उत्कीर्ण किया गया है। इस प्रकार जैन परम्परा में कृष्ण, बलराम का स्थान भगवान अरिष्टनेमि के उपासक रूप में विशेष मान्य है। अर्हत् वचन, 24 (1), 2012
SR No.526592
Book TitleArhat Vachan 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size3 MB
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