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रजत जयन्ती वर्ष में पाठकों के लाभ हेतु अर्हत् वचन के पुराने अंक उपलब्धता के आधार पर रुपये 50.00 प्रति अंक की दर से उपलब्ध कराये जा रहे हैं। सजिल्द फाइलें 250.00 रुपये प्रतिवर्ष (वाल्यूम) की दर से उपलब्ध हैं। आशा है कि हमारे प्रबुद्ध पाठक एवं शोध संस्थानों
के निदेशक, पुस्तकालयों के प्रबंधक इस योजना का लाभ लेंगे। जम्बूद्वीप के विकास के मसीहा थे क्ष. मोतीसागर
पूज्य पीठाधीश क्षु. मोतीसागर जी के समाधिमरण (हस्तिनापुर 10.11.11) से पूज्य क्षुल्लक जी की चिरसंचित अभिलाषा की पूर्ति जरूर हो गई किन्तु दि. जैन समाज ने एक समर्पित तीर्थभक्त एवं निस्पृही संत खो दिया। अष्टान्हिका पर्व, शिक्षा गुरु गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का ससंघ सान्निध्य, जम्बूद्वीप हस्तिनापुर की पुण्य भूमि, सिद्धचक्र विधान की समापन बेला, सबकुछ समाधि की दृष्टि से अनुकूलता थी। सतत सावधानी, लगोटी एवं चादर के परिग्रह त्याग की सांकेतिक भावना, आत्मा एवं शरीर की भिन्नता के प्रति सजगता बरतते हुए 10 नवम्बर को मध्यान्ह 1.05 पर आपने इस नश्वर शरीर का जम्बूद्वीप हस्तिनापुर में त्याग कर दिया। जम्बूद्वीप हेतु भूमि क्रय से लेकर अब तक की विकास यात्रा के वे पथिक है। गणिनी ज्ञानमती माताजी के स्वप्न को साकार करने में जिन त्रिरत्नों - 1. ब्र. मोतीचन्द जैन सर्राफ (पीठाधीश क्षु. मोतीसागरजी) 2. कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्रकुमार जैन (स्वस्तिश्री पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति जी महाराज) 3. ब्र. (कु.) माधुरी शास्त्री (प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी)
का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा। उनमें पीठाधीश क्षु. मोतीसागर जी का नाम सर्वोपरि है। उनकी समाधि के उपरान्त गणिनी ज्ञानमती शोधपीठ, जम्बूद्वीप, हस्तिनापुर में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में ऐलाचार्य वसुनन्दि जी (ससंघ), गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी (ससंघ), आर्यिका श्री अभयमती माताजी (ससंघ), कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्र कुमारजी (वर्तमान स्वस्तिश्री पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी) ज्योतिषाचार्य पं. धनराजजी (अमीनगर सराय) प्राचीन दि. जैन बड़ा मन्दिर हस्तिनापुर के पदाधिकारी, जम्बूद्वीप संस्थान के पदाधिकारी-कर्मचारी, दिल्ली, बम्बई,धूलियान, औरंगाबाद, पैठण, पटना, सनावद, भोपाल, इन्दौर, लखनऊ, अवधप्रान्त, प्रयाग, कुण्डलपुर, मांगीतुंगी के भक्तगण उपस्थित रहे।
जम्बूद्वीप के कण-कण में उनका स्पन्दन है। जीवन के अंतिम वर्षों में वे क्षुल्लक की चर्या के निर्वाह के साथ ही छोटी से छोटी चीज पर भी नजर रखते थे।
जम्बूद्वीप परिसर में अनेक मंदिरों के निर्माण के प्रति उनकी अभिरुचि तो जग जाहिर है। किन्तु पाठकों को यह जानकर खुशी होगी कि वे पुस्तकों/पत्रिकाओं को बहुत रुचिपूर्वक पढ़ते थे। मैं जब भी हस्तिनापुर जाता तो वे पूछते मेरे लिए क्या लाये हो? और जब मैं उन्हें कोई नई पुस्तक या पत्रिका देता तो बहुत खुश होकर आशीर्वाद देते थे। जम्बूद्वीप पुस्तकालय के विकास में उनकी इस साहित्यिक अभिरुचि का बड़ा योगदान है।
कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ इन्दौर एवं अन्य अनेक संस्थाओं के प्रतिनिधि के रूप में मुझे भी उनके अंतिम दर्शन एवं श्रद्धांजलि समर्पण का अवसर प्राप्त हुआ। ऐसे अनन्य गुरु भक्त, तीर्थ भक्त, विकास पुरुष एवं सजग संत के चरणों में शत्-शत् नमन।
वर्ष 2012 से हमने अर्हत् वचन के सम्पादक मण्डल के स्वरूप में भी परिवर्तन किया है। इससे हम अधिक विद्वानों का मार्गदर्शन पा सकेगें। हमारे सभी ट्रस्टियों का तो सतत् सहयोग हमें मिलता ही है। 2010 एवं 2011 की अवधि में सम्पादक मण्डल के सदस्य रहे सभी साथियों के प्रति सादर आभार एवं आगामी वर्षों में भी सहयोग के अनुरोध सहित।
- डॉ. अनुपम जैन
अर्हत् वचन, 24 (1), 2012