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________________ के नीचे मध्य में चक्र है और चक्र के बीच में एक पुरुष खड़ा है जिसका बायां हाथ अभयमुद्रा में है । दायें हाथ के टूट जाने के कारण उसकी स्थिति स्पष्ट नहीं है। चक्र के दोनों ओर शंख है। इस चक्र पुरुष के दोनों ओर एक-एक पद्मासन मुद्रा में बैठे जिन प्रतिमाएं हैं। आसन के दोनों छोरों पर खड़े सीटों का अंकन है। शंख के अंकन के आधार पर इस प्रतिमा की पहचान नेमिनाथ या अरिष्टनेमि से की गई है क्योंकि शंख नेमिनाथ का लांछन है चक्र के बीच में खड़ी आकृति को आर.पी. चंदा ने राजकुमार अरिष्टनेमि या नेमिनाथ माना है किन्तु उमाकांत शाह इसकी पहचान 'चक्रपुरुष' से करते हैं। 21 यहाँ यह उल्लेखनीय है कि जिन लांछन शंख के साथ प्रदर्शित इसे प्राचीनतम मूर्ति कहा जा सकता है।22 इस प्रतिमा पर गुप्त लिपि में 'महराजाधिराज श्रीचन्द्र' लिखा हुआ है। यह चन्द्रगुप्त द्वितीय प्रतीत होता है। इस आधार पर इस प्रतिमा की तिथि गुप्तकालीन निर्धारित की गई है। अभिलेख के अतिरिक्त इस प्रतिमा के साथ अंकित चक्रपुरुष के कुन्तल केश एकावली आदि चिन्ह भी इसके गुप्तकालीन होने के संकेत करते हैं। इस मूर्ति के अतिरिक्त तीन अन्य मूर्तियों में जिन कायोत्सर्ग मुद्रा में निर्वस्व खड़े हैं। इनकी तिथि भी विद्वानों ने गुप्तकाल निर्धारित की है। राजगृह के मनियार मठ के उत्खनन से अनेक जैन मूर्तियां प्राप्त हुई थी। इनमें से कुछ नालन्दा के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। यहाँ आधुनिक जैन मंदिर के एक कमरे में सात खंडित मूर्तियां रखी हैं, जो मध्यकालीन प्रतीत होता है ये मूर्तियां ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर एवं जैन युगलों की हैं। भार पहाड़ी की सोनभंडार गुफाओं पर भी नवीं दसवीं शताब्दी ई. की कुछ जिन मूर्तियां मिली थी जिनमें एक चौमुखी प्रतिमा नालंदा संग्रहालय में है । I उदयगिरि पहाड़ी के आधुनिक जैन मंदिरों में लगभग नवीं-दसवीं शताब्दी ई. की एक पार्श्वनाथ की मूर्ति सुरक्षित है। सोनमण्डार की पूर्वी गुफा की जैन मूर्तियां उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि राजगृह के स्मारकों का निर्माण छठी-पाँचवी शताब्दी ई.पू. के पहले से ही प्रारंभ हो चुका था। यहाँ पर सुरक्षा प्राचीरों के अतिरिक्त अनेक आवासीय भवनों, मंदिरों, गुफाओं, कन्दराओं, विहारों, जलाशयों और वनों का निर्माण किया गया। इनका ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। गुप्तकाल के पश्चात् राजगृह में जैन धर्म और कला से संबंधित अन्य साक्ष्यों का अभाव है। ऐसा प्रतीत होता है कि इसके बाद एक बड़े अंतराल के बाद ही यहां आधुनिक काल में प्रायः सभी पहाड़ियों पर जैन मंदिरों का निर्माण कर उनमें प्राचीन एवं नवीन मूर्तियां स्थापित की गई हैं। इनमें से कुछ को सम्प्रति में भी देखा जा सकता है। अर्हत् वचन, 24 (1), 2012 37
SR No.526592
Book TitleArhat Vachan 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size3 MB
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