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________________ मिलती है । साधर्मी वात्सल्य भोज एवं रोगी जनों को औषधालय या अन्य माध्यमों से औषधि देने से उपकृत व्यक्ति तत्काल या 2-4 दिनों में ही कृतज्ञता को व्यक्त करते हैं। इससे भी मन को शांति मिलती है। स्वास्थ्य परीक्षण या निदान शिविर, नेत्र परीक्षण एवं चश्मा वितरण के कार्य कोई भी श्रेष्ठी धन व्यय कर आयोजित कर सकता है। इस हेतु भावना एवं धन जरूरी है एवं ऐसे कार्य किए भी जाने चाहिये क्योंकि इससे हमारे देश के उपेक्षित आम आदमी को लाभ पहुंचता है। किन्तु आगम की रक्षा, तीर्थों की रक्षा, इतिहास की सुरक्षा उसके अध्ययन का काम भी किसी न किसी को तो करना ही होगा। क्योंकि इनके आधार पर ही हम 1. सम्मेद शिखर, गिरनारजी, केशरिया जी एवं अंतरिक्ष पार्श्वनाथ की रक्षा कर पायेंगे। 2. इनके माध्यम से ही हम अपनी मूल पहचान, अस्तित्व एवं संस्कृति को बचा पाएंगे। 3. अहिंसा, अपरिग्रह एवं अनेकान्त जैसे सिद्धान्तों को बताने वाले शास्त्र एवं उनके पढ़ने समझाने वालों को भी बचाना होगा हमारे प्रमाद एवं इस क्षेत्र में उपेक्षा के करण ही आज अ) हम गंधहस्तिभाष्य को नहीं ढूंढ पा रहे है। ब) सम्मेद शिखरजी में पार्श्वनाथ टोंक पर विराजमान मूर्ति के चित्र एवं वहां मूर्ति की पूजा होने के प्रमाण को नहीं ढूंढ पा रहे है। ___स) आचार्य कुन्दकुन्द, यतिवृषभ, वीरसेन एवं अन्य आचार्यों द्वारा प्रणीत दर्जनों ग्रंथों से वंचित है। द) हमारे कई तीर्थ आज लुप्त हो गये है। जो ज्ञात है उनमें विधर्मियों द्वारा झगड़े खड़े किये जा रहे हैं। हमें प्रमाण ढूढने में तकलीफ आ रही है। आगे अधिक नुकसान न हो इसके लिए नामधारी शोध संस्थानों की अपेक्षा वास्तविक शोध संस्थानों को चलाना होगा। शोध संस्थान के नाम पर दुकान चलाने वाले तथाकथित महानुभावों से हमें बचना होगा। कोई कितना भी धन क्यों न खर्च कर दे रातोंरात शोध संस्थान नहीं खड़ा किया जा सकता। यह एक प्रक्रिया के तहत बनते है। जिसमें समय, श्रम, धन, धैर्य सब लगता है। और इस सबसे ज्यादा दूरदृष्टि एवं समर्पण । शरीरशिथिल होने से पूर्व तक काका सा. प्रतिदिन ज्ञानपीठ आते थे व्यापारिक कार्यों को देखने हेतु हवेली (कार्यालय) जाने से पहले ज्ञानपीठ आते थे यह थी प्राथमिकता। इनको चलाने में बहुत समस्याएं आती है, जिनकी चर्चा अर्हत् वचन 13(1) एवं 13 (2) वर्ष 2001 में हमने की है। प्राथमिकता को स्पष्ट रखना, लक्ष्य को स्थिर रखना, अनुभव का सम्मान करना, कार्यों का समीचीन विभाजन करना एवं गतिशील रहना ही सफलता की कुंजी रजत जयंती वर्ष में नवीन लक्ष्यों की प्राप्ति की ओर अग्रसर होने की मंगल कामनाए। प्रस्तुत अंक 23 (4) अक्टूबर-दिसम्बर 11, समयावधि में प्रकाशित करते हुए हमें प्रसन्नता है। वस्तुतः यह हमारे माननीय सम्पादक मण्डल (2010 एवं 2011), प्रबुद्ध लेखकों के सहयोग से संभव हो सका है। सभी के प्रति आभार । - डॉ. अनुपम जैन I अर्हत् वचन, 23 (4), 2011
SR No.526591
Book TitleArhat Vachan 2011 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2011
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size8 MB
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