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2011 - 'पांडुलिपियों का सुरक्षात्मक संरक्षण एवं जनजागरण कार्यशाला' 7-11 मार्च 2011
'भारत में गणितीय पांडुलिपियां' राष्ट्रीय सेमिनार 26-28 मार्च 2011 फ्लोरिडा अंतर्राष्ट्रीय वि.वि. मियामी के डॉ. बिटनी बउमान द्वारा कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ व्याख्यान ।
राष्ट्रीय पाडुलिपि मिशन के तहत 45000 पांडुलिपियों का सूचीकरण । 25 वर्षों की विकास यात्रा की यह झलक ज्ञानपीठ की प्रगति की कहानी कहने में सक्षम है। जहां इसमें सातत्य है वहीं विविधता भी है। प्रतिवर्ष कुछ न कुछ जुड़ते-जुड़ते यह आज इतनी विस्तृत हो गई है कि यह जैन विद्याओं के अध्ययन / अनुसंधान का राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय जीवन्त केन्द्र बन गया है एवं अनेक विद्वानों का यह अभिमत है कि जैन धर्म / दर्शन की किसी भी विधा पर किया गया शोधकार्य इस केन्द्र के अवलोकन बिना अधूरा ही है। जैन विद्याओं के अध्ययन/अनुसंधान के क्षेत्र में इस संस्था के योगदान पर M.Phil/M.A. लघुशोध प्रबन्ध भी देवी अहिल्या वि.वि. को प्रस्तुत किये जा चुके हैं। ___32000 पुस्तकों , 1850 पांडुलिपियों , सहस्राधिक शोध पत्रिकाओं को समेटे विशाल सन्दर्भ ग्रंथालय, 92 अंकों के पड़ाव तक पहुंच चुकी अर्हत् वचन की प्रकाशन श्रृंखला, संस्था के 40 इतर प्रकाशन, 17 राष्ट्रीय जैन विद्या संगोष्ठियाँ, 01 अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन,01 समर स्कूल, 30 से अधिक व्याख्यान, 01 प्राकृत शिक्षण शिविर, 01 राष्ट्रीय सेमिनार, 02 वर्कशाप के आयोजन प्रकाशित जैन साहित्य एवं जैन शास्त्र भंडारों में संग्रहीत लक्षाधिक पांडुलिपियों के विश्लेषित आंकड़ों, 7 हजार पांडुलिपियों की स्केन्ड इमेजेस (D.V.D.S.) का संकलन, संस्कृति बोध कला वीथिका की अभिनव सोच एवं उसको साकार रूप देने हेतु बढ़ते कदम। इन सबको मिलाकर इसका स्वरूप इतना विशाल एवं विविधता पूर्ण हो गया है कि अब हमें इसके मूलाधार आधारभूत सुविधाओं एवं मानवीय संसाधनों के सुदृढ़ीकरण पर जोर देना होगा। उपर्युक्त उपलब्धियों के साथ निरन्तरता के कारण संस्था की साख बढ़ी है। फलतः देश की कई अन्य संस्थाएं, मार्गदर्शन सहयोग हेतु ज्ञानपीठ की ओर आशा भरी दृष्टि से देखती हैं। सामाजिक दायित्व के तहत हमें उनको भी सहयोग देना होगा। इससे उन्हें तो लाभ होगा ही संस्था का भी यश बढ़ेगा । IGNOU के जैन स्टडी सेन्टर तथा देवी अहिल्या वि.वि. इन्दौर में स्वायत्त जैन अध्ययन संस्थान अथवा जैन चेयर की स्थापना में सहयोग आगामी योजनाओं में शरीक है। यदि मानवीय संसाधनों की गुणवत्ता एवं कार्यों का विकेन्द्रीकरण नहीं हुआ तो इस विकासमान श्रृंखला को बनाये रखना कठिन होगा। कहने को तो इन्दौर नगर में 5 और जैन विद्या के शोध संस्थान हैं किन्तु कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ काका सा. देवकुमार सिंह कासलीवाल के सपनों का शोध संस्थान है। अन्य शोध संस्थानों को देश या प्रदेश क्या पड़ोसी भी नहीं जानता। लोगों ने बड़े विश्वास से अपने दुर्लभ ग्रंथ, पांडुलिपियां हमें सहेजने को सौंपी है । उनको नमी, दीपक, फंगस, कीटों एवं अन्य क्षति पहुचाने वाले कारकों से बचाना हमारा परम कर्तव्य है ।
पूजन, मण्डल विधान करने/कराने एवं अनुमोदना करने वाले को असीम पुण्यबंध तत्काल होता है। भक्ति करने वाले आमजन के चेहरे पर संतुष्टि का भाव देखकर स्वयं के मन को भी शांति
अर्हत् वचन, 23 (4), 2011