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________________ गिनती द्वारा वस्तु का मान ज्ञात करना वस्तु का गणितमान कहलाता है। जैसे बकरियों आदि के झुण्ड का प्रमाण गिनती द्वारा ही ज्ञान किया जा सकता है । अत: यह गणितमान कहलाता है। तोला, माशा, रत्ती द्वारा जो प्रमाण ज्ञात किया जाता है उसे प्रतिमान कहते हैं । दूसरी ओर पहलवानों के शरीर की शक्ति को जानवरों के शरीर की अपेक्षा से किसी वस्तु का प्रमाण ज्ञात करना भी प्रतिमान कहलाता है। जैसे यदि किसी बोझ को दो बैल खींच सकते हैं तो उसे दो बैलों का बोझ कहेंगे। घोड़े आदि का मूल्य अन्य वस्तुओं से आंका जाता है तो उसे तत्प्रतिमान कहते हैं, दूसरी प्रकार से इसे इस प्रकार बतलाया गया है कि जवाहरात आदि का मूल्य उसकी चमक द्वारा दिया जाता है, जितनी दूर तक उसकी चमक पहुँचेगी उतनी दूर तक स्वर्ण पुंज उसका मूल्य होगा। इसी प्रकार घोड़े आदि का मूल्य उसकी ऊँचाई से आंका जाता है। अनुयोगद्वार सूत्र में भी प्रमाण की विस्तृत चर्चा मिलती है। वहाँ अवमान हेतु रैखिक माप तथा प्रतिमान हेतु सुवर्ण भार माप शब्द आया है। यहाँ पर एक भाग भी अधिक है । 12 अंक स्थान : तत्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य'3 में अंक स्थान क्रम की चर्चा की गई है। इसमें वर्णित स्थानों के नाम निम्न प्रकार हैं। 1. अयुत 2. कमल 3. नलिन 4. कुमुद 5. तुडय 6.अडड 7. अवव 8. हाहा 9.हूहू यहाँ दृष्टव्य है कि अंक स्थानों की यह सूची अन्य आगम ग्रंथों में उपलब्ध अंक स्थानों की सूची, यतिवृषभ कृत तिलोयपण्णत्ती, गणितसारसंग्रह एवं जम्बूदीवपण्णतिसंगहो की सूची से भिन्न है। आगम ग्रंथों की इस सूची से भिन्नता का उल्लेख सिद्धसेन गणि ने भी भाष्य पर रचित अपनी टीका में किया है ।14 उन्होंने लिखा है कि 1. यह उस क्रम में नहीं है जिस क्रम में आगम ग्रंथों में है। 2. इसमें कुछ स्थानों की ही चर्चा है , जबकि पूर्ण सूची निम्न प्रकार है। 01. तुठ्यांग 02. तुटित 03. अडडांग 04. अडड 05. अववांग 06. अवव 07 हुहुवांग 08.हूहू 09. उत्पलांग 10 उत्पल 11. पद्मांग 12. पद्म 13. नलिनांग 14. नलिन 15. अर्थ मयूरांग 16. अर्थ मयूर 17 चूलिकांग 18. चूलिका 19. शीर्ष प्रहेलिकांग 20. शीर्ष प्रहेलिका किन्तु उपरोक्त सूची भी अपूर्ण है। चूलिकांग से ठीक पूर्व अयुतांग, अयुत, नियुतांग , नियुत, प्रयुतांग, प्रयुत यह छ: नाम और होने चाहिये। संभवत : पाण्डुलिपिकार की असावधानी से छूट गये हैं अथवा टीकाकार ने ही भूल की है। इस विषय की ओर डॉ. कापडिया ने भी सिद्धसेनीय टीका सहित तत्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य की व्याख्या में ध्यान आकृष्ट किया है। भिन्नों का अपवर्तन :- तत्वार्थाधिगमसूत्राभाष्य के द्वितीय खण्ड के अध्याय 2 में दार्शनिक विषयों की व्याख्या के अंतर्गत उदाहरण रूप में भिन्नों के अपवर्तन की चर्चा है ।15 डॉ. कापडिया के शब्दों में This points out that he is familiar with the method of multiplication and that of division as well as by factors, in the oridinory method, operation are carried on the other method operation in the successive stage by factors one after another of the multiplier अर्हत् वचन, 23 (4), 2011 39
SR No.526591
Book TitleArhat Vachan 2011 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2011
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size8 MB
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