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________________ and the divisor of course. The final result is same in either case. but the second method is shorter and simpler than the first, It may be remarked in passant, that since Umāsvāti has thus utilized to explain a metaphysical principle; it must have been very familiary to the intelligentsia of this time.16 तत्त्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य में भाग एवं गुणा की साधारण एवं खण्ड पद्धति की विधियाँ बतलाई गयी हैं । भाष्य की सिद्धसेन गणि द्वारा रचित टीका में वर्गमूल निकालने के 2-3 उदाहरण मिलते हैं। इनका संक्षिप्त विवरण डॉ. अग्रवाल ने दिया है ।17 ज्यामितीय सूत्र:-भाष्य की गणितीय दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण सामग्री उसमें निहित ज्यामितीय सूत्र हैं। ये सूत्र इस दृष्टि से और भी अधिक महत्वपूर्ण हैं कि ये किसी प्राचीन गणितीय ग्रंथ से उद्धृत हैं। इससे स्पष्ट है प्राचीन काल में कोई महत्वपूर्ण गणितीय ग्रंथ रहा होगा। तत्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य की भाषा में ये सूत्र निम्नवत् है: विष्कंभ कृतर्दशगुणाया मूलं वृत्तपरिक्षेपः। स विष्कम्भपादभ्यस्यो गणितम्। इन्छावगाहोनावगाहाभ्यस्तस्य विषकंभस्य चतुर्गुणं मूलं ज्या। ज्याविष्कं भयोर्वर्गविशेषमूलं विष्कं भाच्छोध्यं शेषार्धमिषु : । इषुवर्गस्य भाड्गुणस्य ज्यावर्गयुतस्य मूलं धनु:काष्ठम । ज्यावर्गचतुर्भागयुक्त मिषुवर्गमिषुविभक्तं तत् प्रकृति वृत्तविष्कंभ:। उदम्घनु : काष्ठाद् दक्षिण शोध्यं शे नम्नार्ध बाहुरिति। अनन कारणाम्युपायेन सर्वक्षेत्राणां सर्वपर्वतानामायामविष्कं भज्येषु धनु : काष्ठपरिमाणानि ज्ञातव्यानि "118 यहाँ पर 'वृत्त परिक्षेप' परिधि के लिये, 'ज्या' जीवा हेतु, इषु उत्क्रमज्या के लिये, धनु:काष्ठ चाप के लिये एवं बाहु त्रिज्या के लिये प्रयुक्त हुए हैं । यदि वृत्त की परिधि (Circumference) C = ABDEFX व्यास (Diameter) d = AF क्षेत्रफल (Area) चाप (अर्द्धवृत्त से कम) a= BDE जीवा (Chord) c=BE बाण (Height) h=DG तो उपरोक्त अंश में निहित सूत्रों को बीजीय रूप से निम्न प्रकार लिख सकते हैं । C= Viod h= [d-va-c] A==ca =vohi+c A . c=/4h(d-h) वृत्त की परिधि को दो समानान्तर रेखाओं के मध्य का भाग संगत चापों के अन्तर के आधे के बराबर होता है। यह विषय भी इस ग्रंथ में दिया है। 1 का जैन परम्परानुमोदित मान 10 ही इस ग्रंथ में भी प्रयुक्त हुआ है। 40 अर्हत् वचन, 23 (4), 2011
SR No.526591
Book TitleArhat Vachan 2011 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2011
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size8 MB
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