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________________ गन्ध-वर्ण के रूप में है, वह ही अंगों व उपांगों के द्वारा, वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम से, शब्दों में परिणत हो जाते है तथा फिर श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा ग्रहण किये जाते हैं। ऐसा भी उल्लेख पाया जाता है। शब्द वर्गणा भी इन्हीं परिस्थितियों में ऊर्जा की सहायता से अल्प काल तक ही शब्दों में परिवर्तित होती है। किन्तु दोनों अवस्थाओं में शब्द धीरे-धीरे आकाश प्रदेश से अगले आकाश प्रदेश में गति करके स्थानान्तरित होते हुए, संघात को प्राप्त होकर उदासीन हो जाते हैं । प्रथम चारों इन्द्रियों के विषयों में यह अवस्था नहीं पायी जाती अर्थात् वे गुण बने रहते हैं। इसी कारण केवल इन्द्रियों के 20 विषय गिनाये गये, किन्तु विशेष परिस्थिति में इन्द्रियों के विषय 20 + 7 = 27 भी बताये गये हैं । भाषा - विज्ञान के आधार पर विवेचन किया जाये, तब उल्लेख आता है कि कोई भी प्राणी जन्म के समय कोई भाषा नहीं जानता, शिशु केवल ध्वनि अर्थात् अभाषात्मक ध्वनियों से अपने भावों की अभिव्यक्ति कर पाता है किन्तु अपने माता-पिता, दादा-दादी, भाई बहन आदि पारिवारिक या सामाजिक व्यक्तियों के सम्पर्क में निरन्तर रहते हुए, अभ्यास से अपने अंगों व उपांगों का उपयोग करना सीखता है तथा अपने भावों की निश्चित अभिव्यक्ति शब्दों द्वारा करने लगता है जो किसी निश्चित प्रयोजन व अर्थ के लिये होते हैं, इसी कारण शिशु की कोई जन्मजात भाषा नहीं होती, जैसी व जिन-जिन भाषाओं के सम्पर्क में पलता है, उसी का अभ्यास होने पर, उनका प्रयोग करता है अर्थात् शब्द भावों की अभ्यास के द्वारा निश्चित अभिव्यंजना करते हैं । , महान् वैयाकरण पाणिनि सहित अन्य दर्शनकारों का मत है कि ' शब्द' आकाश का विषय है किन्तु यह पहिले ही सिद्ध किया जा चुका है कि मूर्तिक शब्द, अमूर्तिक आकार का विषय नहीं हो सकता। शब्द मात्र मूर्तिक पुद्गल की ही पर्याय है। विज्ञान भी 'ध्वनि' को ऊर्जा का एक रूप सिद्ध करता है, जहाँ ऊर्जा का प्रवाहन ध्वनि या शब्द रूप होता है। यह भी सिद्ध किया जा चुका है कि ऊर्जा स्वयं अतिसूक्ष्म कणों का पुंज है किन्तु परस्पर संयुक्त होकर बड़ा कण बनने पर बन्धन ऊर्जा में परिवर्तित होने से, ऊर्जा कम हो जाती है किन्तु निहित उसी में है। इसी आधार पर स्थूल पदार्थ, विखण्डित होकर अतिसूक्ष्म कण बनाने पर वह संग्रहीत ऊर्जा, अपार ऊर्जा के रूप में मुक्त हो जाती है। आईस्टीन समीकरण E=mc2 से उसे जाना भी जा सकता है। जहाँ - E= मुक्त ऊर्जा (Energy released) m= द्रव्यमान क्षति (Mass defeet) c= प्रकाश का वेग (Velocity of light) ऊर्जा का एक ही रूप होने से, ध्वनि ऊर्जा को उपकरणों की सहायता से विद्युत ऊर्जा में परिणत कर संग्रह कर लिया जाता है तथा चिप्स या डिस्क से अन्य उपकरणों से फिर ध्वनि में परिवर्तित कर लिया जाता है। प्रत्येक वर्ण की अपनी निश्चित ऊर्जा होती है, जिसके कारण ही किसी भी श्रोता को, उच्चारित हुए शब्द, उसी प्रकार सुनायी देते हैं इस भिन्न-भिन्न ऊर्जा के आधार पर वैयाकरणों ने ब्राह्मी या देवनागरी या अन्य किसी भी भाषा के वर्ण स्वर व व्यंजनों में एक निश्चित क्रम से व्यवस्थित किये हैं । 34 सर्वप्रथम सभी वर्गों को 'अच' (स्वर) तथा 'हल्' (व्यंजन) में विभाजित किया। स्वरों में अ से अ: पर्यन्त ‘अस्पर्शी' ध्वनियाँ हैं। व्यंजन स्पर्श से प्रस्फुटित होने से 'स्पर्शी' कहलाती हैं। इन स्वरों व व्यंजनों की ध्वनि भेद (phonetic sounds) के आधार पर पुनः निश्चित क्रम से विभाजित किया है। अर्हत् वचन 23 (4), 2011 ,
SR No.526591
Book TitleArhat Vachan 2011 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2011
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size8 MB
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