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________________ वर्ग कवर्ग स्वर - ह्रस्व - अ इ उ ऋ लु दीर्घ -आ ई ऊ ऋ लु मिश्रित - ए ऐ ओ औ व्यंजनध्वनि आघात व्यंजन अनुनासिक कण्ठीय वर्ग क् ख् ग् घ् तालव्य वर्ग चवर्ग च् छ ज झ् मूर्धन्य वर्ग टवर्ग ट् इद दन्तय वर्ग तवर्ग त् थ् द् ध् ओष्ठ्य वर्ग पवर्ग प्फ ब्भ आंशिक स्पर्श वर्ग अन्तस्थ य र ल व् कण्ठ से घर्षण युक्त उष्म श् ष स ह उदाहरण के लिये 'पवर्ग' के पाँचों वर्गों का उच्चारण ओष्ठों को स्पर्श किये विना हो ही नहीं सकता। तीनों श, ष, स, उष्मा के उच्चारण भी ऊर्जा व उपांगों के सम्यक् उपयोग से शुद्ध बनता है। इसी कारण वैयाकरण'श' को तालव्य, 'स' को दन्त्य, 'ष' को मूर्घन्य तथा 'ह' को अर्थस्पर्शी अर्थात् आंशिक स्पर्श व आंशिक कण्ठ से कुछ उष्मा उत्पन्न होने से निर्मित वर्ण कहते है। अर्थात् इन चारों वर्गों के उच्चारण में, कण्ठ से स्पर्श तथा घर्षण से गतिज ऊर्जा उत्पन्न होती है जिससे कुछ ताप भी उत्पन्न होता है, इसी कारण 'उष्म' कहलाते हैं । विज्ञान का सिद्धान्त भी है कि घर्षण व गतिज ऊर्जा , पृथक्-पृथक परमताप के समानुपाती होते हैं । सभी तथ्यों के अवलोकन से सिद्ध होता है कि अंगों व उपांगों की सहायता से , वीर्यान्तराय कर्मादि के क्षयोपशम से 'शब्द वर्गणा' अभ्यास से ऊर्जा लेकर, शब्दों में अस्थायी रूप से परिवर्तित होती है तथा कुछ समय उपरान्त अपना प्रभाव दिखाकर , पुद्गल की ही एक पर्याय होने से टकराकर अपना शब्दरूप प्रभाव खो देते हैं तथा स्थिर 'उदासीन शब्द - वर्गणा ' में परिवर्तित हो जाते हैं। इसी कारण आचार्यों ने स्थायी रूप से इसकी गणना इन्द्रिय विषयों में स्थायी रूप से नहीं की। षट्खण्डागम की उत्पत्ति में भी आचार्य धरसेन द्वारा मुनिद्वय को बुलाकर तथा परीक्षा करने के लिये मन्त्र दिये, जिन्हें शुद्ध करने पर प्रकट देवी ने आचार्य पुष्पदन्त की क्षत-विक्षत दन्तावली को सुरूप बना दिया था। अन्यथा आगमोक्त वचनों का शुद्ध उच्चारण न हो पाता, उपांग ठीक न होने से । श्रुत के पठन-पाठन, उच्चारण आदि में दोष नहीं होना चाहिए। यह घटना भी इसी सत्य, तथ्य को सिद्ध करती है कि अंग व उपांग से ही शुद्ध शब्दों का निर्माण होता है। यदि सभी वर्गों की ध्वनि को वक्र (graph) में अंकित किया जाये, तब प्रत्येक वर्ण की रचना व आवृत्ति (frequency) में अन्तर स्पष्ट दिखायी देता है। इन सभी में अभी और गवेषणा व खोज की जा सकती है जो वैज्ञानिकों और विद्वाना का विषय है। सन्दर्भित ग्रन्थ 1. षट्खण्डागम , आ.पुष्पदन्त व भूतबलि, आ.वीरसेन कृत धवला टीका, पुस्तक 1.13.14 जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर 2. स्वतंत्रता के सूत्र-मोक्षशास्त्र टीका, वैज्ञानिक धर्माचार्य कनकनन्दी, दर्शन दर्शन, विज्ञान शोध संस्थान, बड़ौत नईदिल्ली अर्हत् वचन, 23 (4), 2011 35
SR No.526591
Book TitleArhat Vachan 2011 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2011
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size8 MB
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