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________________ जैसे | पदार्थ पदार्थ ध्वनि का वेग m/sec. ध्वनि का वेग m/sec. एल्युमिनियम (AI) निकिल (Ni) पीतल (Brass) समुद्री जल (Marine water) 6420 6040 4700 शुद्ध जल (Pure Water) हाइड्रोजन गैस (H) वायु (Air) ऑक्सीजन (0) 1498 1339 344 330 1531 यदि मार्ग में कोई अवरोध आ जाये या कोई अन्य कारण बने तब ध्वनि का वेग कम या अधिक हो सकता हैं। इसे भी विज्ञानानुसार ये द्रव्य ही है तथा आगे बढ़ने पर वेग कम होते जाने से ध्वनि क्षीण होती जाती है। इन्हीं वैज्ञानिक तथ्यों की जैनागम बहुत पहिले ही व्याख्या कर चुका है। ये शब्द पुद्गल अपने उत्पत्ति प्रदेश से उछलकर दसों दिशाओं अनन्तान्त पुद्गल अवस्थित रहते थें तथा ये आकाश के एक-एक प्रदेश में व्यापाक होती हुई इस प्रकार आगे बढ़ती हैं कि परिवर्तित कुल भाषा वर्गणाओं का अनन्तवाँ भाग उदासीन होकर रुक जाता है तथा इसी क्रम से बढ़ते हुए ध्वनि बढ़ती है तथा क्षीण हो जाती है। इस प्रकार आगमोक्त वचनों की विज्ञान द्वारा भी सिद्धि भी हो जाती है। इन सभी तथ्यों से एक महत्वपूर्ण पक्ष-इन्द्रियों के विषय की संख्या का मापन करने से प्रकट होता है। आचार्य अमितगति कृत 'योगसार प्राभृत' में मूर्तिक व अमूर्तिक की व्यवस्था का उल्लेख निम्न प्रकार से हैं "अमूर्ता निष्क्रिया : सर्वे मूर्तिमन्त्रोऽत्र पुद्गला:।। रूप-गन्ध- रस -स्पर्श- व्यवस्था मूर्तिरूच्यते ॥3॥ सभी अजीवों में पुद्गल मूर्तिक है, शेष अमूर्तिक - मूर्तिरहित (अरूपी) और निष्कियक्रिया विहीन हैं । रूप (वर्ण), रस-गन्ध-स्पर्श की व्यवस्था को मूर्तिक कहते हैं अर्थात् पुद्गल को छोड़कर शेष धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल ये चारों अजीव द्रव्य तथा निष्क्रिय हैं तथा पुद्गल द्रव्य को छोड़कर शेष धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल - ये चारों द्रव्य अजीव तथा निष्क्रिय हैं जबकि पुद्गल द्रव्य को छोड़कर शेष धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल ये चारों द्रव्य अजीव तथा निष्क्रिय हैं। जबकि पुद्गल द्रव्य केवल मूर्तिक व सक्रिय है। मूर्तिक का लक्षण भी दिखाते हुए अपने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श की व्यवस्था बनाये रखता है। पुद्गल के भेदात्मक स्वरूप को समझाने के लिए आ. कुन्दकुन्द स्वामी का वचन है। "उवभोज्जमिंदिएहिं ये इंदिय काया य कम्माणि । जं हवदि मुत्तंमण्णं तं सव्वं पुग्गल जाणे ।।82।। जो स्पर्शनादिक इन्द्रियों से भोगा जाने वाला-स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण तथा शब्दरूप परिणत विषय, (औदारिक, वैक्रियिक आहार, तैजस तथा कार्माण रूप पाँच प्रकार के ) शरीर, द्रव्यमन, द्रव्यकर्म-नोकर्म रूप कर्म और अन्य जो कोई भी मूर्तिक पदार्थ हैं - वे सब पुद्गल हैं। वर्ण के पाँच -रक्त, पीत, कृष्ण, नील व शुक्ल ; गन्ध के दो - सुगन्ध व दुर्गन्ध ; रस के पाँचतिक्त(चर्परा), कटु, अम्ल, मधुर व कसैला; और स्पर्श के आठ-कोमल (मृदु), कठोर, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध व रुक्ष- ये मूल गुण हैं । पुद्गल के इन बीस गुणों से किसी मूर्तिक में कोई एक 32 अर्हत् वचन, 23 (4), 2011
SR No.526591
Book TitleArhat Vachan 2011 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2011
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size8 MB
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