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________________ भाष्य नियुक्तियों पर और कुछ भाष्य मूलसूत्रों पर लिखे गए है । भाष्यकारों में जिनभद्रगणी (67 ईस्वी शताब्दी) और संघदासगणी (6-7 ईस्वी शताब्दी) ये दो प्रमुख माने जाते हैं ।वसुदेवहिण्डी के रचनाकार संघदासगणी (6 ईस्वी शताब्दी) भाष्यकार संघदासगणी दोनों अलग-अलग है। भाष्य प्राकृत एवं संस्कृत दोनों भाषाओं में लिखे गये है। 3. चूर्णि - शुद्ध प्राकृत और संस्कृत मिश्रित प्राकृत व्याखाओं की रचना चूर्णि साहित्य के नाम से जानी जाती है। ये भी सभी आगमों पर नहीं लिखी गई। चूर्णि साहित्य के रचनाकारों में जिनदासगणी महत्तर (6-7 वीं शताब्दी) का मूर्धन्य स्थान है। 4. टीका - संस्कृतभाषा में रचित जिस साहित्य में आगमों का दार्शनिक दृष्टि से विश्लेषण है वह टीका साहित्य है। इस युग में आगमों पर तो टीकाएं लिखी गई परन्तु साथ ही नियुक्ति भाष्य और टीकाओं पर भी टीकाएं रची गई। टीकाओं के लिए आचार्यों ने विविध नामों का प्रयोग किया है , यथा- टीका , वृत्ति, विवृत्ति, विवरण, विवेचन, व्याख्या, वार्तिक, दीपिका, अवचूर्णि, पंजिका, टिप्पण, टिप्पणक, पर्याय, स्तबक, पीठिका, अक्षरार्थ । 5.लोकभाषाओं में रचित व्याख्याएं - संस्कृत प्राकृत भाषाओं से अनभिज्ञ जनसाधारण के लिए आगमों के शब्दार्थ करने वाली लोकभाषाओं में संक्षिप्त सरल और सुबोध शैली में टीकाएं लिखी गई। जिसकी भाषा राजस्थानी मिश्रित प्राचीन गुजराती है। पार्श्वचन्द्रगणि ( 16 ईस्वी शताब्दी ) और धर्मासिंहमुनि (18 ईस्वी शताब्दी) लोकभाषाओं में रचित व्याख्याकारो में प्रमुख है। इस लेख में तिथि निर्णय में प्रमुख रूप से निम्न ग्रंथों का उपयोग किया है। 1. Hiralal Rasiklal Kapadia, History of Canonical literature of Jainas.' 2. जिन रत्न कोश 3. मोहनलाल मेहता, जैन साहित्य का वृहद् इतिहास आगमिक व्याख्यायें, भाग-34 4. जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास 5. देवेन्द्र मुनि - जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा किन्तु जो आगमिक व्याख्या हमें उपलब्ध तथा प्रकाशित है उन्हें ही अधिकतम लिया गया है और श्वेताब्बर और दिगम्बर (षट्खण्डागम एवं कषायपाहुड) दोनों के व्याख्या साहित्य तथा उनके टीकाकारों का ईस्वीं शताब्दी में समय दिया है। मैं यह निश्चित रूप से तो नहीं कह सकती कि इसमें सम्पूर्ण आगमिक व्याख्या साहित्य तथा उनके ग्रन्थकारों का समावेश हो गया अथवा किया गया। फिर भी उपर्युक्त ग्रंथों के आधार पर ज्यादा से ज्यादा संकलन करने का प्रयास किया गया। एक ध्यान देने योग्य बात यही है कि इसमें तिथि निर्णय में मेरा निर्णय ही अन्तिम है ऐसा नहीं समझना चाहिए। यद्यपि सर्वमान्य तिथियों का ही बहुतायत में उपयोग किया गया है। विद्वानों को इसे जांचना परखना चाहिए और अन्तिम निर्णय पर आने का प्रयास किया जाना चाहिए। जैन आगमिक व्याख्या साहित्य का कालक्रम से विकास निम्न चार्ट के माध्यम से प्रस्तुत है। अर्हत् वचन, 23 (4),2011
SR No.526591
Book TitleArhat Vachan 2011 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2011
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size8 MB
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