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वर्ष - 19, अंक - 3, जुलाई-सितम्बर 2007, 3-6 अहेत वचन
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- संहितासूरि पं. नाथूलाल जैन शास्त्री: कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
विनम्र श्रद्धांजलि
- अनुपम जैन* बीसवीं शताब्दी में जैन साहित्य एवं संस्कृति की सेवा करने वाले विद्वानों में गुरु गोपालदास बरैया, पं. सुखलाल संघवी, डॉ. हीरालाल जैन, डॉ. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, पं. मक्खनलाल शास्त्री, पं. महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य, पं. फूलचन्द जैन शास्त्री, पं. वंशीधर जैन व्याकरणाचार्य, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ज्योतिषाचार्य, डॉ. दरबारीलाल कोठिया न्यायाचार्य, डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन, डॉ. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य, पं. मोतीलाल कोठारी, पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री, डॉ. कस्तूरचन्द्र कासलीवाल आदि का नाम अत्यन्त आदरपूर्वक लिया जाता है। विद्वानों की इस पीढ़ी के अन्तिम नक्षत्र थे संहितासूरि पं. नाथूलाल जैन शास्त्री। इस पीढ़ी के विद्वानों ने अभावों में रहकर भी कभी भी सिद्धान्तों से समझौता नहीं किया। उन्होंने अपने ज्ञान का सदुपयोग पूर्वाचार्यों द्वारा प्रणीत ग्रंथों के संरक्षण, स्वाध्याय, मनन, चिन्तन, अनुवाद एवं आलोचनात्मक अध्ययन में किया। इसी का यह सुफल है कि बीसवीं शताब्दी में अनेक प्राचीन ग्रंथ हिन्दी/अंग्रेजी अनुवाद एवं समालोचनात्मक अध्ययन सहित प्रकाश में आ सके । संहितासूरि पं. नाथूलाल जैन शास्त्री ने जैन संस्कृत, ज्योतिष एवं पंचकल्याणक प्रतिष्ठा विधि का सूक्ष्म अध्ययन कर समाज के व्यापक हित में इसका उपयोग किया। देश के अधिकांश जैन साधु संघ एवं समाजजन विभिन्न धार्मिक/मांगलिक कार्यों हेतु शुभ मुहूर्त के चयन में आपका मार्गदर्शन प्राप्त करते रहे । अष्टान्हिक/दशलक्षण/दीपावली आदि पर्यों की तिथियों के निर्धारण में उनका निर्णय ही प्रमाणिक माना जाता रहा। इसी वर्ष वर्षायोग स्थापना की तिथि के निर्धारण में आपका निर्णय ही सर्वत्र मान्य किया गया। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ कार्य परिषद् के उपाध्यक्ष तथा इसके अन्तर्गत संचालित कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ परीक्षा संस्थान के आप संस्थापक एवं जीवन पर्यन्त निदेशक रहे हैं। ऐसे मनीषी के दिनांक 9.9.2007 को हमारे बीच से चले जाने से समाज की अपूरणीय क्षति हुई है।
आपका जन्म राजस्थान प्रान्त के अन्तर्गत सवाई माधोपुर जिले के ग्राम सुरली (पो. ईसरदा) में हुआ था। आपका बचपन सुखद नहीं रहा। क्योंकि माता गेंदीबाईजी जन्म के समय ही साथ छोड़ गई तथा पिता श्री सुन्दरलाल जी बज का भी 1919 में ही निधन हो गया था। पिता के साथ 1917 में आपका इन्दौर आना हुआ एवं आप मल्हारगंज में रहने लगे। सर सेठ हुकुमचन्द छात्रावास में रहकर अपनी शिक्षा को गति देते हुए इस प्रतिभावान बालक ने दिगम्बर जैन कांच मन्दिर में पुस्तकालयाध्यक्ष तथा धार्मिक पाठशाला के शिक्षक का कार्यभार ग्रहण किया। 1933 से 1957 तक सर हुकुमचन्द संस्कृत महाविद्यालय में आपने शिक्षक तथा 1957 से 1994 तक प्राचार्य के पद पर सेवायें प्रदान की। 62 वर्ष की दीर्धावधि तक एक महाविद्यालय को सतत सेवायें देना स्वयं में एक रिकार्ड एवं आपके समर्पण का प्रतीक है।
आपका विवाह 1.12.1933 को मल्हारगंज के श्री सुन्दरलालजी पाटनी की सुपुत्री श्रीमती सुशीलाबाई जी से हुआ। जो स्वयं विशारद तक की शिक्षा प्राप्त थीं एवं सेवा निवृत्ति तक अध्यापिका के रूप में अपनी सेवायें देती रही। इस दम्पत्ति को 1 पुत्र तथा 6 पुत्रियों का भरा पूरा परिवार प्राप्त हुआ। * मानद सचिव, कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ,584 महात्मा गाँधी मार्ग, तुकोगंज, इन्दौर - 452001
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