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________________ 'वन' एक ऐसा विस्तीर्ण भूभाग है जो वृक्षों से तथा उसमें उगने वाले वृक्षों से ढका हुआ रहता है और कभी-कभी चारागाह में मिला जुला भूभाग रहता है - यह परिभाषा ऑक्सफोर्ड अंग्रेजी शब्द कोश के आधार पर - लक्ष्मण इच्छाराम विरुद्ध डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर के मामले में नागपुर हाईकोर्ट ने (ए.आई. आर. 1953 नागपुर 51 ) दी है। 'वृक्ष' - भारतीय वन अधिनियम 1927 धारा 2 ( 7 ) के अनुसार वृक्ष में सम्मिलित हैं ताड़, बांस, ठूठ, झाड़ी, लकड़ी तथा बेंत प्रजाति । 'वृक्ष' म.प्र. वृक्षों का परिरक्षण (नगरीय क्षेत्र) अधिनियम 2007 (म. प्र. अधिनियम क्रमांक 20 सन् 2001 ) की धारा 2 (ख) के अनुसार वृक्ष से अभिप्रेत है कोई ऐसा काष्ठीय पौधा जिसकी शाखायें तने या काय से निकलती हैं तथा जो तने या काय पर आलंबित हो और जिसके तने या काय का व्यास भूमितल से 2 मीटर से कम न हो। जैन साहित्य में वनों एवं वृक्षों का वर्णन है। लेकिन जैन तीर्थंकरों ने जिस वन में दीक्षा ग्रहण की उसी दीक्षावन के विशिष्ट वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त किया है। तीर्थंकरों के समवशरण का जो मनोहारी वर्णन है उनकी अष्ट भूमियों में तीसरी, चौथी तथा छठवीं भूमि के वन तथा वृक्षों के महत्व को दर्शाया गया है। मंगलाष्टक में जम्बूवृक्ष, शाल्मली वृक्ष, चैत्यवृक्ष पर स्थित जिन चैत्यालय से मंगल कामना की गई है। ज्योतिर्व्यन्तर- भावनामरगृहे मेरौ कुलाद्रौ तथा जम्बू - शाल्मलि चैत्यशाखिषु तथा वक्षार रुप्यादिषु । इष्वाकारगिरौ च कुण्डलनगे द्वीपे च नन्दीश्वरे शैले ये मनुजोत्तरे जिनगृहाः कुर्वन्तु ते मङ्गलम् ॥17॥ इसी प्रकार दशलक्षणधर्म पूजा में अपनी सुगंध से उर्ध्वलोक को सुगन्धित करने वाले मन्दार, मौलिसिरी ( वकुल), कमल और पारिजात का वर्णन किया गया है। मन्दार-कुन्द बकुलोत्पल- पारिजातैः पुष्पैः सुगन्ध सुरभीकृतमूर्ध्वलोकैः । कल्पद्रुम (समवशरण ही कल्पद्रुम है) विधान में तीर्थंकरों के अंतरंग और बहिरंग वैभव के साथ समवशरण का मनोहारी वर्णन संयोजित है। इसमें अष्टभूमि पूजन, चैत्यवृक्ष, कल्पवृक्ष, सिद्धार्थवृक्ष, मानस्तम्भ तथा जिन स्तूप पूजन का समावेश है। अष्ट भूमियां हैं- 1. चैत्यप्रासाद भूमि, 2. खातिका भूमि, 3. लता भूमि, 4. उपवन भूमि, 5. ध्वजा भूमि, 6. कल्पवृक्ष भूमि, 7. भवन भूमि एवं 8. श्रीमंडप भूमि । भगवान तीर्थंकरों के समवशरण में अष्ट भूमियों में से तीसरी भूमि लता भूमि है जो विविध लताओं से शोभित है। चौथी भूमि उपवन भूमि है जिसमें चैत्यवृक्ष हैं। छठवीं भूमि कल्पवृक्ष भूमि है इसी भूमि में सिद्धार्थ वृक्ष है । उपवन भूमि कुन्द, 8 - उत्तर दिशा चैत्यवृक्ष जिन प्रतिमा युक्त हैं पूर्व दिशा दक्षिण दिशा Jain Education International पूर्व दिशा दक्षिण दिशा पश्चिम दिशा नन्दनवन, अशोकवन सप्तच्छदवन चंपकवन आम्रवन अशोक चैत्य तरु सप्तच्छद चैत्य तरु For Private & Personal Use Only अर्हत् वचन, 19 (3), 2007 www.jainelibrary.org
SR No.526575
Book TitleArhat Vachan 2007 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2007
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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