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________________ परिशिष्ट-प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जैन अभिनन्दन समारोह प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाश जैन का अभिनंदन समारोह संपन्न विद्या, विनय, विवेक के जीवंत व्यक्तित्व, जैन दर्शन के उद्भट विद्वान एवं जैन गजट के यशस्वी संपादक प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाशजी जैन का अभिनंदन समारोह अत्यंत भव्यता के साथ कोलकाता के कलामंदिर प्रेक्षागृह में 25 दिसम्बर 2003 को सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर देशभर के हजारों लोगों ने उपस्थित होकर समारोह को गरिमामय बनाया। श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन (धर्मसंरक्षिणी) महासभा (पश्चिम बंगाल शाखा) के तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय अभिनंदन समारोह (24-26 दिसबर 03) के मुख्य अतिथि कोलकाता के मेयर श्री सुब्रतो मुकर्जी थे। कार्यक्रम का उद्घाटन श्री धर्मचंद पाटनी ने किया। समारोह की अध्यक्षता वयोवृद्ध समाजसेवी, श्री हरकचंद सरावगी ने की। मुख्य अतिथि ने अपने उद्बोधन में विद्वानों के प्रति पूर्ण समर्पण की बात कही। आपने कहा कि राजाओं का सम्मान सिर्फ उनके राज्य में ही होता है किन्तु विद्वानों का सम्मान सर्वत्र होता है। बंगला भाषा में अपने उद्बोधन में आपने कहा कि हमारा देश सिर्फ विद्वानों के दम पर ही चल रहा है। आपने जैन धर्म के सिद्धांतों को आत्मसात करने की बात कही तथा इस क्षेत्र में शिक्षा का कार्य करने हेतु कोलकाता में कोई भी समुचित भूमि देने की घोषणा की। श्री नीरज जैन (सतना) ने कहा कि प्राचार्यजी के पिताश्री ने यह अवश्य बाय दिगम्बरन ( कहा होगा कि मेरा बेटा भले शान-कालका ही प्रतिष्ठाचार्य न बन पाए लेकिन उसकी प्रतिष्ठा किसी भी प्रतिष्ठाचार्य से अधिक ही होगी। तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ के पूर्व अध्यक्ष, प्राचार्यजी के अत्यन्त करीबी, देश के मूर्धन्य विद्वान, पं. शिवचरनलाल जैन, मुख्य समारोह में प्राचार्यजी के साथ डॉ. चीरंजीलाल बगड़ा (प्रबन्ध सम्पादक) एवं मैनपुरी ने उन्हें ग्राम जटौआ डॉ. अनुपम जैन (सदस्य - संपादक मंडल) का जाट निरूपित करते हुए जैन समाज के प्रति उनके समर्पण पर प्रकाश डाला। तीर्थकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ के संस्थापक महामंत्री एवं अभिनंदन ग्रंथ मनीषा संपादक मंडल के सदस्य डॉ. अनुपम जैन (इन्दौर) ने कहा कि संपूर्ण देश के विद्वानों के लिए प्राचार्यजी आदर्श हैं, इनके सम्मान से हमारा गौरव बढ़ा है। इनमें अभूतपूर्व संगठन शक्ति है। आपने कहा कि यह सत्य है कि आपने कोई महाकाव्य एवं उपन्यास नहीं लिखा किन्तु आपके संपादकीय एवं अन्य आलेखों के संकलन 'समय के शिलालेख' एवं 'चिंतन प्रवाह' शीर्षक पुस्तकें समाज को दिशा देने वाली है। मेरा निवेदन है कि इनके शेष संपादकीय अर्हत् वचन, 15 (4), 2003 125 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526560
Book TitleArhat Vachan 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size11 MB
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