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कुण्डलपुर महोत्सव
आपने देखा होगा कैसे सीमित संसाधनों एवं प्रतिकूलताओं के बावजूद, देश के सबसे बड़े मांस निर्यातक समूह से टक्कर ली, एक सौ करोड़ रूपये निवेश वाले देश के सबसे बड़े, दस हजार पशु प्रतिदिन काटने वाले बूचड़खाने को छ: वर्ष तक कार्य प्रारंभ करने से रोके रखा, कैसे हमनें दसवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत खुलने वाले छप्पन हजार बूचड़खानों की योजना को अकेले अपने स्तर पर लड़कर दो हजार करोड़ रूपये स्वीकृत धन राशि को भी योजना आयोग से निरस्त करवा पाने में सफलता प्राप्त की तथा अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के बारह जिलों को रोगमुक्त बनाकर मांस निर्यात क्षेत्र बनाने की सरकारी योजना को सर्वोच्च न्यायालय में केस लगाकर उस पर स्टे लगा पाने में हमने सफलता प्राप्त की है। देश से सम्पूर्ण मांस निर्यात व्यापार पर रोक लगाने हेतु भी हम पूर्ण सक्रिय है। ये सब बेहद व्ययसाध्य कार्य हैं। अहिंसा का कार्य करने वाली सम्पूर्ण देश की करीब चार सौ संस्थाओं को नि:शुल्क सदस्य बनाकर हमने उन्हें जोड़ा है। उन्हें भी संसाधन उपलब्ध कराने हैं तथा उनके बीच जानकारियों का प्रचार-प्रसार करना है, सम्पर्क बढ़ाना है एवं गोष्ठियों का आयोजन करना है।।
बंधओं, हमें आप से सम्मान की नहीं सहयोग की अपेक्षा है। आपके द्वारा प्रदत्त इस सम्मान राशि में, मैं अपनी तरफ से भी एक तुच्छ राशि और मिलाकर, इसे अहिंसा के कार्यों के लिए अहिंसा - शाकाहार संस्थान को देने की घोषणा करता हूँ। आपसे निवेदन है कि अहिंसा के व्यापक कार्यों के लिए कृपया अधिक से अधिक सहयोग देवें, दिलावें एवम् हमारे हाथ मजबूत करें, ताकि हम भगवान महावीर के मार्ग का अनुसरण कर मूक प्राणियों के अभयदान की दिशा में कुछ सार्थक कार्य कर सकें।
भगवान महावीर से सम्बन्धित त्रिवेणी तीर्थ राजगीर, पावापुर एवं कुण्डलपुर की इस पावन धरा पर आदरणीय पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के सान्निध्य में कुण्डलपुर महोत्सव का भव्य त्रिदिवसीय आयोजन सफलता के साथ सम्पन्न हो रहा है। तीर्थकरों की जन्मभूमियां, जो विस्मृत सी हो गई थी, आज पुनः हम सबकी आस्था एवं श्रद्धा का केन्द्र बन रही है, यह पूज्य माताजी की प्रेरणा एवं आशीर्वाद का ही फल है।।
पूज्य माताजी के 70 वें जन्म दिवस एवम् 51 वें दीक्षा दिवस के शरद पूर्णिमा के इस पावन दिन, मैं उनके श्रीचरणों में वंदना करते हुए माताजी के दीर्घायु होने की कामना करता हूँ। माताजी इसी प्रकार वर्षों तक हमें प्रेरणा एवं आशीर्वाद देती रहें ताकि हम भगवान महावीर की अंतिम दिव्य देशना के ये अंतिम शब्द "अहिंसा की आराधना को त्रिकाल में भी न भूलें' को सदैव स्मरण रख सकें।
महावीर के उपदेशों से, पशुओं को जीवन दान मिला। अंधश्रद्धा के गढ़ हो गये ध्वस्त, जब वीतराग विज्ञान मिला। हिंसा की ज्वालामखी फटी. धरती माता हो उठी अधीर। तब करूणा की शीतल गगरी, छलकाते आये महावीर।। जय महावीर! जय अहिंसा!! जय शाकाहार !!!
सम्पर्क : सम्पादक - दिशाबोध 46, स्ट्राण्ड रोड़, तीसरा तल्ला,
कोलकाता- 700007
अर्हत् वचन, 15 (4), 2003
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