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________________ कुण्डलपुर महोत्सव पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि अहिंसा का यह मिशन विश्वव्यापी मिशन बनना चाहिये। इसलिये सभी को इसमें सहयोग प्रदान करना है। माताजी ने कहा कि परिवार में सौन्दर्य प्रसाधनों में लगने वाला पैसा भी यदि पशुओं को बचाने में प्रयुक्त किया जाता है, तो भी बहुत बड़ा कार्य हो सकता है। पूज्य माताजी ने कहा कि समाज में धनशक्ति और बुद्धि कौशल की कमी नहीं है, आवश्यकता है सही मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन देने की। कुण्डलपुर महोत्सव के अन्तर्गत अहिंसा एवं शाकाहार विषय पर विशेष सभा का संचालन प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाशजी जैन (फिरोजाबाद) एवं डॉ. अनुपम जैन (इन्दौर) ने किया। इस अवसर पर पं. खेमचन्द जैन (जबलपुर), पं. भागचन्द जैन 'इन्दु' (छतरपुर), डॉ. संजीव सराफ (सागर), पं. बाबूलाल 'फणीश' (ऊन-खरगोन), श्री अजीत पाटनी (कोलकाता) आदि अनेक वक्ताओं ने अहिंसा शाकाहार के सिद्धान्तों को अनुकरणीय बताया। डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर ने जम्बूद्वीप पुरस्कार - 2003 की प्रशस्ति का वाचन किया। डॉ. चीरंजीलाल बगड़ा ने अपने लिखित उदबोधन में देश में अहिंसा इन्स्टीट्यूट के न होने पर गहरा खेद व्यक्त करते हुई इसकी आवश्यकता पर जोर दिया एवं शीघ्रातिशीघ्र इस दिशा में कार्य प्रारम्भ करने के अपने संकल्प की घोषणा की एवं समाज से अधिकाधिक आर्थिक सहयोग प्रदान करने की अपील की, ताकि जानकारी के अभाव में अहिंसक समाज को हिंसा में अप्रत्यक्ष भागीदारी से बचाया जा सके। डॉ. बगड़ा का लिखित वक्तव्य अग्रांकित आर्यिका रत्नमती पुरस्कार - वर्ष 1999 से संस्थान द्वारा आर्यिका रत्नमती पुरस्कार प्रारम्भ किया गया है, इसके अन्तर्गत रु. 11000/- की राशि, शाल, श्रीफल एवं प्रशस्ति प्रदान किया जाता है। अब तक डॉ. नीलम जैन, गाजियाबाद (1999). टीकमचन्द जैन, आर्यिका रत्नमती पुरस्कार - 2002 से श्रीमती सुमन जैन को सम्मानित करते हुए कर्मयोगी दिल्ली , (2000), ब्र. रवीन्द्रकुमार जैन, श्रीमती कुमुदिनी जैन, अ. बीना जैन एवं श्री विजयकुमार जैन (पिंकू) डॉ. नन्दलाल जैन, रीवा (2001) को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। 2002 का पुरस्कार ऋषभदेशना के सफल सम्पादन एवं अ.भा. दि. जैन महिला संगठन के कुशल संचालन हेतु श्रीमती सुमन जैन, इन्दौर एवं 2003 का पुरस्कार भगवान महावीर ज्योति के प्रवर्तन तथा जैन धर्म के प्रचार - प्रसार में सहयोग देने हेतु श्री सुरेश जैन 'मारोरा', शिवपुरी को प्रदान किया गया। श्री मारोरा अस्वस्थता के कारण नहीं आ सके। उनके प्रतिनिधि रूप में डॉ. संजीव सराफ, सागर ने पुरस्कार ग्रहण किया। 106 अर्हत् वचन, 15 (4), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526560
Book TitleArhat Vachan 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size11 MB
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