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________________ अर्हत् वच कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर, दिनांक 16 से 22 अक्टूबर 2003 तक आयोजित चतुर्थ जैन ज्योतिष प्रशिक्षण शिविर का आयोजन श्री सोनागिर सिद्धक्षेत्र की पावन धरा पर सराकोद्धारक उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज के पावन सान्निध्य में हुआ। दीप प्रज्ज्वलन डॉ. विजेन्द्रजी गोयल (देवबन्द) के करकमलों द्वारा हुआ। मंच संचालन पं. श्री जयन्तजी जैन (सीकर) ने किया। मंगलाचरण श्री जिनेन्द्र शास्त्री ने किया। ज्योतिष शिविर में पढ़ाने वाले प्रो. श्री कुलभूषणजी (देवबन्द), श्री गजेन्द्रकुमारजी ( फरूखनगर) को सम्मानित किया गया। आख्या चतुर्थ जैन ज्योतिष प्रशिक्षण शिविर सोनागिर 1622 अक्टूबर 2003 ■ मुकेश कुमार जैन प्रो. कुलभूषणजी ने ज्योतिष विद्या का महत्व बताते हुए कहा कि समय पर किया गया कार्य अपना प्रभाव डालता है। कभी कभी जीवन में ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं जिनसे व्यक्ति को आघात पहुँचता है उन दुर्घटनाओं से व्यक्ति बच सकता है अगर वह सावधानी रखे तो इस हेतु ज्योतिष विद्या निमित्त बनती है। मुख्यता पुण्य पाप के उदय की रहती है फिर भी पुरुषार्थ के बल पर व्यक्ति अपना भाग्य बदल सकता है। पूज्य श्री की महती कृपा है कि उस ज्योतिष विद्या का पठन-पाठन छात्रों को कराया जा रहा है। अगर इन छात्रों में से 2-4 छात्र भी इस विद्या में निष्णात हो जायेंगे तो यह शिविर सफल / सार्थक हो जायेगा। पं. गजेन्द्रजी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ज्योतिष यह विद्या है, जिसके द्वारा काल का ज्ञान होता है। आप सभी बड़ी तत्परता, लगन तथा अनुशासन के साथ इस विद्या का अर्जन करें। डॉ. रमाजी ने इस कड़ी में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मुझे इन छात्रों को देखकर बड़ी प्रसन्नता हो रही है, जो इस शिविर में ज्योतिष विद्या का ज्ञान प्राप्त करेंगे, यह सारी की सारी कृपा पूज्यश्री की है, जो इन जिनवाणी के लालों को संस्कार दिलाने में माध्यम बन रहे हैं। तत्पश्चात पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज ने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि जिनवाणी बहुत अगाध है, जिसमें सभी तरह की विधाओं की चर्चा आती है। समय का महत्व समझने वाले वास्तव में एक दिन समयसार को प्राप्त कर लेते हैं। आज जब भी कोई कार्य आप शुरु करते हैं तो समय अच्छा है या नहीं, यह देखकर करते हैं, उसका समीचीन ज्ञान हो सके, इस हेतु ही बराबर 4 वर्षों से जैन ज्योतिष विद्या का शिविर चल रहा है भाग्य और पुरुषार्थ की परस्पर मैत्री है, अकेला भाग्य ही सब कुछ हो ऐसा भी नहीं है, अकेला पुरुषार्थ ही सब कुछ हो ऐसा भी नहीं है। व्यक्ति को कभी भी आलसी बनकर भाग्य के सहारे नहीं बैठना चाहिये, पुरुषार्थ के बल पर आपको विश्वास रखना चाहिये, चूंकि आज का पुरुषार्थ ही कल का भाग्य बन जाता है, अतः आप जैसा चाहें वैसा भाग्य बना सकते हैं, हाँ इतना अवश्य है कि पुरुषार्थ करने के बाद भी जब सफलता नहीं मिलती तब भाग्य का सहारा लेकर संतोष करना चाहिये। " ज्योतिष एक दर्पण के समान है, वह आपको सजग करता है, सावधान करता है। शुभ समय पर किये गये कार्यों में सफलता मिले ही यह भी एकान्त नहीं है, चूंकि तीव्र अशुभ कर्म के उदय में पुरुषार्थ सफल नहीं हो पाता है, अतः जैन ज्योतिष के हार्द्र को समझकर हमें अपने आपको समझने का प्रयास करना चाहिये तभी इस शिविर की सार्थकता होगी। अर्हत् वचन, 15 ( 4 ), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only * श्रुत संबर्द्धन संस्थान 247, प्रथम तल, दिल्ली रोड़, मेरठ 250002 - 101 www.jainelibrary.org
SR No.526560
Book TitleArhat Vachan 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size11 MB
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