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अर्हत्व कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर,
पंचम अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी ( प्रतापगढ़) में एक शोधार्थी से वैज्ञानिक राजमलजी जैन ने प्रश्न किया कि जो विषय विज्ञान में भी शोध नहीं हो पाया है लेकिन वह जैन धर्म में है, ऐसा विषय मुझे बतायें। शोधार्थी तो इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाया लेकिन वैज्ञानिक राजमल जैन की जिज्ञासा तथा शोधार्थियों / जनता / श्रोताओं की जिज्ञासा को देखकर मैंने कुछ संक्षिप्त में उसी समय उत्तर दिया था। इसके बाद वैज्ञानिक राजमलजी ने मुझसे ऐसे शोधपूर्ण वैज्ञानिक लेख व पुस्तक लिखने के लिये अनुरोध किया एवं इसरो जाकर रामसेतुं की फोटो व रिपोर्ट के साथ पत्र द्वारा (जो नासा अमेरिका से प्राप्त हुआ था ) पुनः अनुरोध किया कि हे गुरुदेव ! आपने संगोष्ठी में जिस विषय को कहा था उस विषय को आप लिखकर भेजें, हम उस पर रिसर्च करेंगे। इसी उद्देश्य से मैं यह शोधपूर्ण लेख लिख रहा हूँ और आगे जाकर विस्तृत रूप में इस विषय पर पुस्तक लिखने वाला हूँ, जिससे विश्व मानव विशेषत: प्रगतिशील, सत्यशोधक वैज्ञानिक एवं जिज्ञासु विद्यार्थी लाभान्वित होकर सत्य की खोज करें एवं विश्व को उपकृत करें। आधुनिक विज्ञान के साथ-साथ इतिहास, खगोल, भूगोल, राजनीति, न्याय, कानून आदि को भी जो विषय अविज्ञात हैं उसका भी दिग्दर्शन इस शोध लेख में कर रहा हूँ। विशेष जिज्ञासु मेरे द्वारा रचित एवं प्रकाशित 140 ग्रन्थों का अध्ययन करें।
टिप्पणी- 2
विज्ञान को भी अविज्ञात विषय
■ आचार्य कनकनन्दी*
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अकृत्रिम / शाश्वतिक एवं परिणमनशील है, इसका निर्णयात्मक सम्पूर्ण ज्ञान विज्ञान को नहीं है। विज्ञान में भौतिक तत्त्वों का तो कुछ शोध बोध हुआ है तथा किंचित रूप से जीवद्रव्य, आकाश, काल, गति माध्यम, स्थिति माध्यम का वर्णन पाया जाता है परन्तु जिस प्रकार सर्वांगीण रूप से गणितीय/ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जीव, भौतिक तत्त्व (पुद्गल), धर्म द्रव्य (गति माध्यम ), अधर्म द्रव्य ( स्थिति माध्यम), आकाश, काल का वर्णन है ऐसा वर्णन जैनधर्म को छोड़कर अन्य धर्म यहाँ तक कि विज्ञान में भी नहीं है। विश्व का आकार प्रकार, घनफल और विश्व में स्थित समस्त द्रव्यों की संख्या का वर्णन भी जैनधर्म में जैसे है वैसे अन्य धर्मों में नहीं है। वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने विश्व प्रतिविश्व की परिकल्पना तो की है परन्तु वे भी समग्र रूप से उसके क्षेत्रफल, घनफल, सीमा का निर्धारण नहीं कर पाये और यह निर्धारण अभी तक नहीं हो पाया है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में 23 भौतिक वर्गणाएँ एवं 5 सूक्ष्म स्थावर जीव ठसाठस भरे हुए हैं, इसका वर्णन भी अन्यत्र नहीं है।
प्रायः प्रत्येक धर्म व विज्ञान परिणमन को तो मानते हैं, परन्तु विश्व के प्रत्येक द्रव्य में उसके अनंतगुणी आदि षट्गुण हानि - वृद्धि रूप में जो परिणमन होता है उसका परिज्ञान उन्हें नहीं है। इस प्रकार काल परिवर्तन रूप उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी एवं षट्कालों का वर्णन विधिवत् नहीं पाया जाता है।
विज्ञान में यह सिद्ध नहीं हो पाया है कि विश्व कब से है, कब तक रहेगा, कब नष्ट होगा, जीव कब से है, उसके गुण, धर्म, स्वभाव क्या हैं? उसकी शुद्ध अवस्था क्या है ? जैन धर्म में सूक्ष्म निगोदिया जीव से लेकर पंचेन्द्रिय मनुष्य, पशु-पक्षी, नारकी, स्वर्ग के देव एवं पूर्ण शुद्धता को प्राप्त शुद्ध जीव ( सिद्ध परमात्मा) का वर्णन 14 गुणस्थानों,
अर्हत् वचन, 15 (3), 2003
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