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________________ बढ़ जाती है। इनसे अतिनिद्रा का रोग हो जाता है और शरीर थका-थका सा रहता है। इनसे मनुष्य निर्दयी तथा हिंसक बन जाता है। मांस की भाँति, अण्डों से शरीर में अनपेक्षित मौन-विचार उत्पन्न होते हैं और मन में विक्षेप और क्रोध का आविर्भाव होता है। शाकाहारी अण्डे - एक मिथ्या भ्रम जिन अण्डों से बच्चे नहीं निकलते, उन्हें पॉल्ट्री फार्मिंग वाले शाकाहारी अण्डे (Vegetarian Eggs) कहकर समाज में एक मिथ्या भ्रम पैदा करते हैं। अण्डे कभी किसी पेड़ पर नहीं लगते. अत: वे शाकाहारी नहीं हो सकते। तथाकथित शाकाहारी अण्डे क्या हैं? किसी प्राणी के देह में चार प्रकार के पदार्थ बनते हैं - (अ) वे जो उसके शरीर का वास्तविक अंग हैं। वे जो मल के रूप में और विभिन्न मार्गों से मल-मूत्र के रूप में निकलते हैं। (इ) वे जो शरीर में रसोली (Tumour) आदि रोग बनने का कारण बनते हैं। वे जो माता के शरीर में सन्तान का शरीर निर्माण करते हैं जैसे गर्भ का अण्डा। निर्जीव अण्डा पहली कोटि में इसलिये नहीं आ सकता, क्योंकि निर्जीव होने से तथा पिता से उत्पन्न न होने के कारण सन्तान का शरीर नहीं है। अब, या तो वह मुर्गी के शरीर का मल है या रोग का अंश है। वस्तुत: जिसे एक शाकाहारी अण्डा कहते हैं वह तो मुर्गी का रजःस्राव होता है, जो गन्दगी से लिप्त होता है। साधारण व्यक्ति शाकाहारी और अशाकाहारी अण्डे में पहचान नहीं कर सकता। तथाकथित शाकाहारी अण्डों के सेवन से भी वे सभी हानियाँ हैं जो अन्य अण्डों के सेवन से होती है। __ अण्डा और विभिन्न धर्म वैदिक धर्म श्रीमद्भगवद्गीता में भोजन की तीन श्रेणियाँ बताई गई हैं। अ) सात्विक भोजन - फल, सब्जी, अनाज, दालें, मेवे, दूध- मक्खन आदि जो आयु, दुद्धि, बल बढ़ाते हैं और सुख - शान्ति, दयाभाव, अहिंसा व एकरसता प्रदान करते हैं और हर प्रकार की अशुद्धियों से शरीर, दिल व मस्तिष्क को बचाते हैं। (आ) राजसिक भोजन - इसमें गर्म, तीखे, कड़वे, खट्टे, मिर्च-मसाले आदि जलन उत्पन्न करने वाले तथा रूखे पदार्थ सम्मिलित हैं। इस प्रकार का भोजन उत्तेजक होता है और दू:ख, रोग व चिन्ता उत्पन्न करने वाला होता है। (स) तामसिक भोजन - जैसे बासी, रसहीन, अर्द्धपके, दुर्गंध वाले, सड़े, अपवित्र, नशीले पदार्थ, मांस-अण्डे आदि जो मनुष्य को कुसंस्कारों की ओर ले जाने वाले, बुद्धि भ्रष्ट करने वाले, रोग व आलस्य आदि दुर्गुण देने वाले होते हैं। भारतीय ऋषि - मुनि - कपिल, व्यास, पाणिनि, पतंजलि, शंकराचार्य, आर्यभट, महावीर स्वामी, महात्मा बुद्ध, गुरु नानकदेव, महात्मा गांधी आदि सभी शाकाहारी थे और सभी ने अण्डा, मांस, मदिरा का विरोध किया है क्योंकि शुद्ध बुद्धि और आध्यात्मिकता अण्डा-मांस आहार से सम्भव नहीं है। ' अथर्ववेद में मांस खाने व गर्भ (अण्डों में पलने वाले भावी पक्षी) को नष्ट करने की मनाही की गई है। 'अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526559
Book TitleArhat Vachan 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size12 MB
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