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________________ करने से मनुष्य की मृत्यु नहीं होती है। यदि कुछ सूर्य ऊर्जा को सीधे ग्रहण कर लिया जाय तो भूख पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। विधिवत उपवास करने से शरीर को निरोगी बनाया जा सकता है तथा इच्छा शक्ति को भी दृढ़ बनाया जा सकता है। अभी लोगों में यह विचार भी पल्लवित होने लगा है कि भूख से कम लोग मरते हैं जबकि ज्यादा खाने से अधिक लोग मरते हैं। उपवास : आत्म शुद्धि की सचोट प्रक्रिया अनेक चिकित्सकों ने लम्बे समय तक उपवास करने के दौरान होने वाली प्रक्रियाओं का गहन अध्ययन किया। 12 उन्होंने जो अनुभव प्राप्त किये उन्हें संक्षेप में निम्न प्रकार से कहा जा सकता है - 1. भोजन न लेने से पाचन तंत्र को पाचन क्रिया से मुक्ति मिलती है जिससे सम्पूर्ण पाचन तंत्र में शुद्धि का कार्य प्रारंभ हो जाता है। 2. सम्पूर्ण शरीर में अब पोषक तत्व (आहार) न मिलने से रचना कार्य रूक जाते हैं और पूरे शरीर में स्व- शुद्धिकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। डा. लिण्डनार के शब्दों में कहें तो पचे हुए आहार का पेशियों में आत्मसात् होना रूक जाता है। जठर और आँतों की अन्तर्वचा, जो हमेशा पचे हुए आहार को चूसती है, वह अब जहर को बाहर फेंकने की शुरूआत कर देती है। 3. शरीर में किसी जगह गाँठ या विषद्रव्यों का जमाव हुआ हो तो उपवास के दौरान ऑटोलिसिस (Autolysis) की प्रक्रिया द्वारा वह विसर्जित होने लगता है। उसमें रहने वाला उपयोगी भाग शरीर के महत्वपूर्ण अंगों (हृदय, मस्तिष्क आदि) को पोषण प्रदान करने के काम आता है, जबकि जहर शरीर से बाहर फिंकने लगता है। गाँठों आदि का विसर्जन होने के बाद कम उपयोगी पेशियाँ विसर्जित होकर महत्व के अंगों के पोषण कार्य में उपयोगी होने लगती है। चिकित्सकों का यह भी कहना है कि 90 दिनों का उपवास कराने के बाद रोगी को रोग मुक्त करने के कई उदाहरण मिलते हैं। 13 उपवास के दौरान शरीर में कई रासायनिक परिवर्तन होते हैं तथा अंगों में भी परिवर्तन होते हैं। 14 उदाहरण के तौर पर 20 जून 1907 को डा. इल्स के उपवास के प्रथम दिन रक्त का परीक्षण करने पर देखा गया कि श्वेतकरण (WBC) 5300 प्रति घन मिलीलीटर, लालकण (RBC) 4900000 प्रति घन मिलीलीटर और होमोग्लोबिन 90% था। दिनांक 2 अगस्त 1907 को उपवास के 44 वें दिन तीसरी बार उनके रक्त की परीक्षा की गई तो श्वेतकण 7328 प्रति घन मिलीलीटर, लाल कण 5870000 प्रति घन मिलीलीटर और होमोग्लोबिन 90% था। इससे स्पष्ट होता है कि 44 दिनों के उपवास के बाद रक्त में महत्वपूर्ण सुधार हुआ। उपवास से रोग मुक्ति रोग दो प्रकार के होते हैं - तीव्र रोग तथा हठीले रोग। तीव्र रोग अपना असर तुरन्त दिखाते हैं एवं अधिक तीव्रता के साथ प्रकट होते हैं जब कि हठीले रोग सालों साल चलते हैं। दोनों प्रकार के रोगों से मुक्त होने के लिए उपवास लाभदायक होते हैं। अलग - अलग तरह के बुखार, दस्त, सर्दी, जुकाम जैसे रोग तीव्र होते हैं; इन रोगों की स्थिति में उपवास जरूरी ही नहीं, बल्कि अनिवार्य माना गया है। हठीले रोगों में भी उपवास अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526559
Book TitleArhat Vachan 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size12 MB
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