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है तो बिना किसी दवा के अपने आप क्या
ऐसा करने का मौका दिया जाय। अगर हम अपनी भोजन की आदन
पालन नहीं करते हैं, या अगर हमारा मन, आवेश, भावना या मिनार से
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ता है, तो हमारे शरीर में गंदगी इकट्ठी होने लगती है जो हर को तथा रोगों को पैदा करती है। इस गंदगी को दूर करने में सास से हमें बहा द मिलती है तथा मनुष्य स्वस्थ हो जाता है। अष्टमी - चतुर्दशी व्रतों का मालर
. जब से प्राकृतिक चिकित्सा की और लोगों का रुझान बढ़ने लगा है, तब से अष्टमी- चतुर्दशी के व्रतों का महत्व और अधिक महसूस होने लगता है। इन व्रतों के महत्व को समझने से पहले हम रोग के बारे में प्राकृतिक चिकित्सकों के विचारों की चर्चा करना चाहेंगे।
इन चिकित्सकों का मत है कि बुखार, खाँसी, उल्टी, दस्त आदि किसी रोगी को होते हैं तो वस्तुत: ये रोग नहीं हैं, रोग के लक्षण हैं। रोग के लक्षण कुछ भी हों, बीमारी की जड़ एक ही होती है और वह है हमारे शरीर में विष द्रव्यों (जहर) का इकट्ठा होना। अब प्रश्न यह है कि आखिर शरीर में जहर आता कहाँ से है पाके उत्तर में उनका कहना है कि हम जो कुछ भी हार ग्रहण करते हैं वह एक प्रकार का विषद्रव्य (जहर) भी बनाता हैं जिसे अंग्रेजी मे
टॉक्सिन) कहते हैं! यह टॉक्सिन रक्त में मिल जाता है तथा शरीर में प्राकृतिक निर्मित नौ मल द्वारों द्वारा बाहर फेंक दिया जाता है। विष द्रव्यों का बनना और उन्हें स्वाभाविक रूप से रक्त द्वारा बाहर फेंक देना यह एक प्राकृतिक क्रिया है। यदि शरीर के अन्दर विष - द्रव्य इतने अधिक मात्रा में जमा हो जायें कि रक्त उन्हें पूरी तरह बाहर न फेंक पाये तो वे शरीर के अन्दर ही इकट्ठे होने लगते हैं और विभिन्न रोगों के रूप में परिलक्षित होते हैं।8 विषद्रव्यों के जमाव को Toxemia कहते हैं।
आज के औद्योगिक युग में हम विष द्रव्यों का कई अन्य रूपों में भी सीधा सेवन करने लगे हैं। अशुद्ध हवा, अशुद्ध पानी, खेती में प्रयोग आने वाली विभिन्न रासायनिक खादें, अंग्रेजी दवायें आदि ये सब हमारे शरीर में विष द्रव्य की मात्रा को सामान्य से अधिक कर देते हैं। और जो लोग अंडा, माँस आदि का सेवन करते हैं उनके शरीर में इन विषद्रव्यों की मात्रा और अधिक हो जाती है। अनियमित और अधिक भोजन तो इन्हें बढ़ाता है ही।
आधुनिक चिकित्सक जिन बीमारियों का कारण बैक्टेरिया और वायरस बताते हैं, वस्तत: उनका मुल भी शरीर के अन्दर होने वाले विश द्रव्यों का जमाव (Toxemia) ही है। यूँ तो वातावरण में अनगिनत बैक्टेरिया और वायरस भरे पड़े हैं। इन्हें हम श्वास द्वारा, पानी और भोजन द्वारा ग्रहण भी करते सत हैं। लेकिन ये बैक्टेरिया और वायरस उन्हें ही असर करते है जिनके शरीर में तिकता का जमाव हो। वस्तुत: ये विष द्रव्य ही उन्हें शरीर के अन्दर फैलने, फूलने और अपनी वंश वृद्धि करने का पूरा मौका देते हैं। यदि इन विषद्रव्यों के जमाव को हटा दिया जाय तो बीमारी ठीक हो जाती है।
इन विषद्रव्यों को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय है उपवास करना। उपवास में हम भोजन तो करते नहीं है। अत: नया विष द्रव्य तो हम शरीर में बनने नहीं देते हैं तथा जो पुराना अतिरिक्त विष द्रव्य बाकी रह गया होता है उसे बाहर निकलने का
अर्हत् वचन, 15 (3), 2003
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