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अर्हत् वचन आज ही प्राप्त हुआ, धन्यवाद । संयुक्तांक की विशेष सामग्री तथा बाह्य व आन्तरिक सज्जा देख हृदय गद-गद हो गया। आद्योपान्त पढ़कर आपकी दक्षता तथा श्रम साधना पर अन्तस से शुमकामनाएँ तथा बधाई।
14 वर्ष के सम्पूर्ण आलेखों का विविधता के साथ विवरण, वह भी वर्षानुसार, विषयानुसार तथा लेखकानुसार देना, पुरस्कृत लेखों की अलग से सूची देना, श्रम साध्य तो है ही, प्रशंसनीय भी है शोध सम्बन्धित कोई विषय अछूता नहीं रहा यह आदर्श शोध पत्रिका का विशेष गुण तो है ही, सुधी सम्पादक की सूझ-बूझ का परिणाम है।
ऐतिहासिक एवं पुरातत्व सम्बन्धी लेख वास्तव में शोधपरक हैं। विज्ञान के सभी विभागों, शाकाहार, आयुर्वेद एवं स्वास्थ्य, शिक्षा एवं मनोविज्ञान, संगीत एवं चित्रकला, साहित्य, कर्म सिद्धान्त, सामान्य विज्ञान आदि से संबंधित सभी सारगर्भित लेख हैं जो ज्ञानवर्द्धक तथा मनरंजक हैं। सभी लेख उच्च स्तरीय मौलिक शोध लेख है। इसके लिये निर्णायक मंडल भी साधुवादता का पात्र है। विज्ञान के यथार्थ की कसौटी पर श्रम का श्रुत के विषय को कलात्मक सौन्दर्य के रूप में आलोकित किया है, यह सत्यम् शिवम् सुन्दरम् की साकार कृति प्रशंसनीय, पठनीय तथा संग्रहणीय है। ■ विमला जैन 'विमल विहार', 1/344, सुहागनगर, फिरोजाबाद
27.07.03
जनवरी - जून 2003 का संयुक्तांक पूर्व प्रकाशित सामग्री की वर्गीकृत सूचियों के विशेषांक रूप में मिला । शोधार्थियों के लिये यह अंक बहुत महत्वपूर्ण है। इसका सन्दर्भ महत्व अधिक है। व्यवस्था करें कि इच्छुक व्यक्ति यदि इनमें से कुछ प्रकाशित लेखों की फोटोकापी मंगाना चाहें तो उन्हें सशुल्क अथवा निःशुल्क, जैसा आपका निर्णय हो, भेज सकें। सम्भवतया 'अर्हतु वचन' के अनेक पाठकों के पास भी इसके अंक सुरक्षित न रहे हो।
14 वर्षों से निरन्तर 'अर्हत् वचन' पत्रिका स्तरीय शोधपूर्ण लेख प्रकाशित कर रही है, यह बहुत प्रसन्नता की बात है। भारत में जैन समाज की निःसन्देह यह सर्वश्रेष्ठ पत्रिका है, जो विविध विषयों पर हिन्दी एवं अंग्रेजी में प्रामाणिक लेख प्रकाशित करती है। आपका संपादन परिश्रम विशेष उल्लेखनीय है। पत्रिका की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना सहित. ■ सतीशकुमार जैन महासचिव अहिंसा इन्टरनेशनल, नई दिल्ली
28.07.03
पत्रिका एवं संस्थान के अनुकरणीय कार्य
अर्हत् वचन पत्रिका देवी अहिल्या वि.वि. से मान्यता प्राप्त कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर के वर्ष 15,
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अंक 12 जनवरी जून 2003 में गत 14 वर्षों की पूर्व प्रकाशित सामग्री की वर्गीकृत सूचियाँ, विशेषांक के रूप में मेरे समक्ष है। इसके सभी पूर्व अंकों को भी में पढ़ चुका हूँ। पढ़कर सम्पादकजी (डॉ. अनुपमजी) की आधुनिक सम्पादन कला, प्रतिभा, विद्वत्ता एवं महत्वपूर्ण आलेखों के चयन तथा वर्तमान में पूर्व प्रकाशित सामग्री से पत्रिका की गरिमा का परिचय मिलता है संपादक डॉ. अनुपमजी को देश के विशिष्ट विद्वानों का सहयोग प्राप्त है। पत्रिका की सफलता का यह कारण भी है।
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विशेष उल्लेखनीय यह है कि कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ संस्थान के अध्यक्ष आदरणीय श्री देवकुमारसिंहजी कासलीवाल की हरेक प्रकार की सहायता संस्थान एवं पत्रिका को उपलब्ध है। इसके पहले से ही पुरातत्व की खोज के प्रति आपकी विशेष रूचि और सतत प्रयास करहा है मुझे भी आपने प्राचीन शास्त्रों की खोज, जिन मन्दिरों की प्रतिमाओं (प्रशस्ति सहित) और शास्त्रों की सूची हेतु नागौर, ग्वालियर आदि स्थानों पर भेजा था। बड़े विद्यार्थियों से इसका कार्य भी कराया था। विद्वानों की नियुक्तियाँ की थी अभी सिरिमूवलय' की प्रति मंगवाकर उसे पढ़ने की विधि खोजकर लिखने का काम भी चल रहा है। शास्त्रों की पांडुलिपियों के सूचीकरण का कार्य सफलतापूर्वक प्रारम्भ हो चुका है।
समाज के अंग्रेजी संस्कृत विद्यालयों एवं संस्कृत महाविद्यालयों की वार्षिक परीक्षा हेतु परीक्षा संस्थान सुचारू संचालित हो रहा है। पुरस्कार योजना, संगोष्ठियाँ आदि अनेक गतिविधियाँ यहाँ चल रही हैं। अध्यक्ष महोदय श्री देवकुमारसिंहजी एवं श्री अजितकुमारसिंहजी कासलीवाल (कोषाध्यक्ष ) प्राय: प्रतिदिन संस्थान में उपस्थित होकर मार्गदर्शन करते रहते हैं।
5.8.03
अर्हत् वचन, 15 (3). 2003
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■ नाथूलाल शास्त्री, इन्दौर
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