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________________ आपने अर्हत् वचन के इस विशेषांक के संपादन में जो सविशेष श्रमकर अपनी सूझबूझ का परिचय दिया है, वह सचमुच सराहनीय है। विगत 14 वर्षों में जो शोध सामग्री प्रस्तुत हुई है उसका सम्पूर्ण विवरण आपने इस अंक में दिया है प्रकाशित लेखों एवं लेखकों के परिचय के साथ ही उसके विषयवस्तु का बोध भी आपने इस अंक में विस्तार के साथ प्रस्तुत किया है। इससे पाठकों को तद्विषयक जानकारी सहज ही प्राप्त हो सकेगी। ज्ञानपीठ द्वारा पुरस्कृत लेखक विद्वानों की सूची भी आपने इस अंक में दी है। साथ ही ज्ञानपीठ द्वारा संचालित अन्य कार्यों का विवरण भी अभी अर्हत् वचन में गणित और विज्ञान के शेधपूर्ण लेखों की प्रमुखता रहती है जिससे विद्वानों के सिवाय अन्य जनों को विशेष लाभ नहीं होता। यदि जिनवाणी क अन्य सर्वजनोपयोगी विषयों का भी समावेश कर इसे सर्वजनोपयोगी बनाने पर ध्यान दिया जाये तो पत्रिका का व्यापक प्रचार एवं उपयोग हो सकेगा, ऐसी मेरी मान्यता है। मैं ज्ञानपीठ एवं अर्हतु वचन के उज्जवल भविष्य के प्रति अपनी हार्दिक मंगलकामना समर्पित करता हूँ। ■ नाथूराम डोंगरीय जैन, सुदामानगर, इन्दौर - अर्हत् वचन का वर्ष 15 अंक 12 जनवरी जून 03 प्राप्त हुआ इस संयुक्ांक में आपने विगत 14 वर्षों की अवधि में इस पत्रिका में प्रकाशित सामग्री की वर्गीकृत सूचियाँ देकर इसके पाठकों को एक अत्यन्त उपयोगी सामग्री प्रदान की है। 26.07.03 आपने अत्यन्त कठिन परिश्रम करके इस अंक में न केवल 14 वर्षों की प्रकाशित सामग्री की वर्ष, विषय एवं लेखकवार वर्गीकृत सूचियाँ दी हैं, अपितु लेखकों के पते देकर पाठकों को उनसे अपनी शंका का समाधान करने एवं मार्गदर्शन प्राप्त करने का भी मार्ग प्रशस्त किया है। अर्हत् वचन पुरस्कार से नवाजे गये विद्वानों की वर्षवार लेख के शीर्षक सहित सूचियाँ देकर आपने जहाँ इस पुरस्कार हेतु नये लेखकों का आव्हान किया है, वहीं अन्य पुरस्कारों के विवरण, कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की प्रगति आख्या, संस्था के विभिन्न प्रकल्पों के प्रगति विवरण आदि देकर इसमें गागर में सागर भर दिया है। कृपया इस हेतु आप हमारी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 26.07.03 I am thankful for the Jan.-Jun. 03 issue sent to me. Well, in the context, I am very much inclined to endorse the sentiments expressed by Res. Kakasaheb in the preface that this indeed is the outcome of the personalised attention as well as sustained efforts undertaken by you in documentation of such an exclusive compendium. Congratulation! 26.07.03 26.07.03 14 वर्षों की लेखमालिका एवं कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की गतिविधियों का प्रामाणिक परिचय देकर आपने अच्छा कार्य किया है। संस्था के प्रकाशनों को और गति मिले, मौलिक ग्रन्थ प्रकाशित हो अध्ययन/अध्यापन की व्यवस्था हो, इसी शुभकामना के साथ आपके प्रयासों की हार्दिक सराहना करता हूँ। 140 डॉ. प्रकाशचन्द्र जैन तिलकनगर, गली नं. 3, इन्दौर Jain Education International Kokalhand Jain Jawahar Nagar, Jaipur For Private & Personal Use Only ■ डॉ. रमेशचन्द्र जैन पूर्व अध्यक्ष अ. भा. दि. जैन विद्वत् परिषद, जैन मन्दिर के बास, बिजनौर अर्हतु वचन, 15 (3). 2003 www.jainelibrary.org
SR No.526559
Book TitleArhat Vachan 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size12 MB
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