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________________ 3. आचार्य श्री विमलसागर (भिण्ड) स्मृति श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार - 2003 यह पुरस्कार जैन पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले जैन पत्रकार को दिया जायेगा। आचार्य श्री सुमतिसागर स्मृति श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार - 2003 यह पुरस्कार जैन विद्याओं के शोध / अनुसंधान के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु प्रदान किया जाएगा। चयन का आधार समग्र योगदान होगा। 5. मुनि श्री वर्द्धमान सागर स्मृति श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार - 2003 यह पुरस्कार जैन धर्म-दर्शन के किसी क्षेत्र में लिखी गई शोधपूर्ण, मौलिक, अप्रकाशित कृति पर प्रदान किया जाएगा। उपरोक्त सभी पुरस्कारों हेतु चयनित व्यक्ति को रु. 31,000.00 नगद, शाल, श्रीफल एवं प्रशस्ति से सम्मानित किया जायेगा। आवश्यकतानुसार पुरस्कारों की विषय परिधि को परिवर्तित किया जा सकता है। . 6. सराक पुरस्कार - 2003 . इसके अलावा वर्ष 2000 से सराक ट्रस्ट के सौजन्य से सराक पुरस्कार भी प्रारम्भ किया गया था जिसके अन्तर्गत रु. 25,000.00 नगद, शाल, श्रीफल एवं प्रशस्ति से सम्मानित किया जाता रहा। वर्ष 2001 से यह पुरस्कार भी श्रुत संवर्द्धन संस्थान, मेरठ द्वारा प्रदान किया जा रहा है। विगत वर्षों में इस पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति/संस्थाएँ निम्नवत् हैं - 1999. सराकोत्थान उपसमिति, गाजियाबाद 2000. श्री प्रेमचन्द जैन 'तेल वाले', मेरठ 2001 श्री कमलकुमार जैन, साढ़म 2002 श्री विनयकुमार जैन, कृष्णानगर - दिल्ली संस्थान के अध्यक्ष डॉ. नलिन के. शास्त्री, दिल्ली एवं महामंत्री श्री हंसकुमार जैन, मेरठ ने बताया कि उपरोक्त पुरस्कारों हेतु कोई भी विद्वान/सामाजिक कार्यकर्ता/संस्थान प्रस्ताव निर्धारित प्रस्ताव पत्र पर प्रस्ताव 30 सितम्बर 2003 तक निम्न पते पर प्रेषित कर सकते हैं। पुरस्कार हेतु प्रस्ताव निर्धारित प्रस्ताव पत्र पर निम्न पते पर सभी आवश्यक संलग्नकों सहित भेजा जाना चाहिये। डॉ. अनुपम जैन संयोजक - श्रुत संवर्द्धन एवं सराक पुरस्कार समिति 'ज्ञानछाया', डी-14, सुदामानगर, इन्दौर - 452009 (म.प्र.) फोन : 0731-2787790 (नि.) 2545421 (का.) email - anupamjain3@rediffmail.com ज्ञातव्य है कि इसी संस्था द्वारा वर्ष 2000 से उपाध्याय ज्ञानसागर श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार जैन साहित्य, संस्कृति एवं समाजसेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु दिया जा रहा है। इसके अन्तर्गत रु. 1,00,000 = 00 की नगद राशि, प्रशस्ति आदि प्रदान की जाती है। अब तक भारतीय ज्ञानपीठ (2000) एवं राजर्षि डॉ. डी. वीरेन्द्र हेगड़े (2001) को यह पुरस्कार दिया जा चुका है। 130 अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526559
Book TitleArhat Vachan 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size12 MB
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