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पांडुलिपियों का संरक्षण संस्कृति को विकृति से बचाने के लिये अनिवार्य
- प्रो. गणेश कावड़िया
पूज्य आचार्यश्री अभिनन्दनसागरजी महाराज के सान्निध्य में श्रुत पंचमी का विशेष आयोजन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ एवं दिगम्बर जैन महासमिति मध्यांचल के संयुक्त तत्वावधान में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ द्वारा प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी 'कुन्दकुन्द व्याख्यानमाला' के अन्तर्गत 'संस्कृति
संरक्षण, सामाजिक विकास एवं पांडुलिपियाँ' विषय पर प्रबन्ध अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रो. पी. एन. मिश्र की अध्यक्षता में प्रो. गणेश कावड़िया, अधिष्ठाता - समाज विज्ञान संकाय, देवी अहिल्या वि.वि., इन्दौर का व्याख्यान हुआ। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि हमारे देश की प्राचीन पांडुलिपियों को विदेश ले जाकर वहाँ अध्ययन एवं खोज होती है और वह उसमें से आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक तथ्य निकालकर विश्व के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। जबकि हम अपने ही प्राचीन शास्त्रों में भरे आध्यात्मिक ज्ञान एवं विज्ञान से अनभिज्ञ हैं। प्राचीन पांडुलिपियों का संरक्षण कर हम संस्कृति तथा समाज को नई दिशा प्रदान कर सकते हैं। हमारी संस्कृति में स्वाध्याय तप भी है और कर्म भी है। व्याख्यान का पूर्ण पाठ भी इसी अंक में पृ. 71-75 पर प्रकाशित किया जा रहा है।
व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए प्रो. मिश्र ने कहा कि धर्म आंतरिक एवं बाह्य विकास की तकनीक है और शांति दोनों के संतुलन में है। हमारा प्राचीन साहित्य सुरक्षित होकर हमारे विकास का आधार बने, इस हेतु पांडुलिपि संरक्षण आवश्यक है। मुख्य अतिथि उद्योगपति श्री नेमनाथ जैन ने कहा कि सामाजिक सहयोग के अभाव में यह कार्य असंभव है। विश्व में भारत की पहचान का मुख्य आधार प्राचीन संस्कृति और साहित्य है, इसकी सुरक्षा हमारा कर्तव्य है।
कार्यक्रम का प्रारम्भ पं. रतनलालजी शास्त्री के मंगलाचरण से हुआ। दीप प्रजज्वलन श्री अजितकुमारसिंह कासलीवाल एवं अन्य अतिथियों ने किया। इस अवसर पर महासमिति के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रदीपकुमारसिंह कासलीवाल, प्रो. ए. ए. अब्बासी एवं प्रो. पी. एन. मिश्र ने कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ द्वारा 'जैन जीवन तकनीक' विषय पर प्रारम्भ होने वाले डिप्लोमा कोर्स तथा कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ द्वारा संस्कृति मंत्रालय - भारत सरकार के सहयोग से संचालित पाण्डुलिपि सूचीकरण योजना का शुभारम्भ किया। श्री माणिकचन्द पाटनी, कीर्ति पांड्या, श्रीमती मंजू अजमेरा, श्रीमती इन्द्रा सोगानी, श्री अरविन्द जैन, पं. जयसेन जैन, श्री रमेश कासलीवाल आदि ने अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर प्रो. सरोजकुमार जैन, डॉ. प्रकाशचन्द जैन, प्रो. नवीन सी. जैन, डॉ. रजनीश जैन, पं. हेमन्त काला आदि विद्वान विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम का सशक्त संचालन संस्था के मानद सचिव डॉ. अनुपम जैन ने किया। आभार पूर्व कुलपति और संस्था के मानद निदेशक प्रो. ए. ए. अब्बासी ने व्यक्त किया।
अर्हत् वचन, 15 (3), 2003
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