SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय एवं पद संख्या के अनुसार - 1. आचारांग में अष्ट शुद्धि, तीन गुप्ति एवं पाँच समिति रूप मुनियों के चरण आदि का विस्तृत वर्णन है। इसकी पदसंख्या 18,000 है। सूत्रकृतांग में ज्ञान, विनय, प्रज्ञापन, कल्याणकल्प, छेदोपस्थापना तथा व्यवहार धर्मपरक ज्ञान एवं धार्मिक रीतियों का विवेचन किया गया है। इसके पदों की संख्या 36,000 स्थानांग में एक व अनेक भेदरूप जीव व पुदगलादि का वर्णन है। इसके पदों की संख्या 42,000 है। समवायांग में द्रव्यादि की अपेक्षा एक दूसरे के सहयोग का वर्णन है। इसमें 1,64,000 पद हैं। व्याख्याप्रज्ञप्ति - इस अंग में जीव है या नहीं है, इत्यादि का समाधान किया गया है। इसमें छह हजार प्रश्नों के उत्तर भी दिये गये हैं। इसकी पद संख्या 2,28,000 ज्ञातृधर्मकथांग में जीवादि तत्वों के स्वभाव, रत्नत्रय व दशलक्षण रूप धर्म का स्वरूप तथा भव्य, ज्ञानी सांसारिक महापुरुषों से सम्बन्धित कथाओं का निरूपण एवं संकलन किया गया है। इसमें 5,56,000 पद हैं। उपासकाध्ययनांग में गृहस्थ श्रावकों के चरित्र धर्म का आख्यान प्रस्तुत किया गया है। इसके पदों की संख्या 11,70,000 है। अंत:कृतदशांग में प्रत्येक तीर्थकर के काल में घोर उपसर्ग सहन कर अंत: कृतकेवली होने वाले दस-दस मुनियों के चारित्र का निरूपण है। इसमें 23,28,000 पद हैं। 9. अनुत्तरोपपादिकदशांग में प्रत्येक तीर्थकर के काल में उपसर्ग सहनकर अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले दस -- दस साधुओं की कथा उल्लिखित है। इसके पदों की संख्या 92,44,000 है। 10. प्रश्नव्याकरणांग में त्रिकाल एवं त्रैलोक्य संबंधी अनेक प्रश्नों के उत्तर तथा लोक एवं शास्त्रों में प्रचलित शब्दों के अर्थ दिये गये हैं। इसके पदों की संख्या 93,16,000 11. विपाकसूत्रांग में कर्मबन्ध तथा कर्मफलों का वर्णन किया गया है। इसके पदों की संख्या 18,40,000 है। 12. दृष्टिप्रवादांग में 363 मतों का उल्लेख व उनका खंडन किया गया है। इसके पदों की संख्या 10,68,56,005 है। इस प्रकार बारह अंगों के कुल पदों की संख्या 1,12,83,58,005 है। अंतिम अंग दृष्टिप्रवाद श्रुत के पाँच भेद हैं - परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत एवं चूलिका। पूर्वगतश्रुत भी उत्पाद पूर्व, अग्रायणी, वीर्यानुप्रवाद, अस्तिनास्ति प्रवाद. ज्ञानप्रवाद, सत्य प्रवाद, आत्मप्रवाद, कर्मप्रवाद, प्रत्याख्यानप्रवाद, विद्यानुप्रवाद, कल्याणप्रवाद, प्राणवाय, क्रियाविशाल तथा लोक बिन्दुसार - इन चौदह भेदों में विभाजित है। पूर्वगत श्रुत के इन चौदह भेदों को ही चौदह पूर्व कहा जाता है। चौदह पूर्वो की विषयवस्तु एवं पदसंख्या निम्न प्रकार है - 1. उत्पाद पूर्व में जीव, काल व पुद्गल द्रव्य के उत्पाद, व्यय एवं ध्रौव्य आदि के स्वरूप _का वर्णन है। इसकी पदसंख्या एक करोड़ है। 2. अग्रायणी पूर्व में सात सौ नय व दुर्नयों तथा छह द्रव्य, नौ पदार्थ व पाँच अस्तिकायों का कथन है। इसकी पद संख्या छियान्नवे लाख है। अर्हत् वचन, 14 (4), 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526556
Book TitleArhat Vachan 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy