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________________ है। ब्रह्मा ने इसे खंड तथा अखंड दोनों बनाया है। है, अखंड काल सदैव चल रहा है। काल की सबसे बड़ी प्रस्तुति ब्रह्मा का वर्ष । 15 निमेष 30 काष्टा 30 निमेष गया है। ब्रह्माकाल ईश्वर का एक खेल माना गया है। प्रकृति में प्रत्येक वस्तु का 'चक्र' खंड में काल को दर्शाया जा सकता छोटी प्रस्तुति (Unit) निमेश है और 15 मुहूर्त 15 अहोरात्र 2 पक्ष 2 मास 3 ऋतु 6 ऋतु 360 वर्ष 12000 देव वर्ष 4000 देव वर्ष 3000 देव वर्ष 48 = = = = = Jain Education International = = = = = = = और चूंकि काल • 1 काष्टा 1 काल 1 मुहूर्त 1 अहोरात्र 1 पक्ष 1 मास 1 ऋतु 1 अयन 2 अयन = 1 वर्ष 1 देव वर्ष 1 चतुर्युग 2000 देव वर्ष = 1000 देव वर्ष = शेष 2000 देव वर्ष = ― आत्मा इसमें अनादि अनंत है। वही उसी अनंत अखंड में समाहित हो जाती हैं। और आत्मा का प्रस्तुतिकरण भी एक जैनेतर में काल के बारे में यह प्रस्तुति थी अन्यथा तो पक्षों को दोहरा रहे थे। 14 चतुर्युग 14 मन्वन्तर जैनधर्म में काल का स्वरूप संसार के अविभाज्य प्रदेश कालाणु हैं और दो प्रदेशों के है। (400, 400, 300, 300, 200, 200, 100, 100) B 1 मन्वंतर = = 365 दिन + 365 = 100 वर्ष ब्रह्मा के ब्रह्मा की आयु = 1 कृत युग 10 17 वर्ष 1 त्रेता युग 100000000000000000 ब्रह्मा वर्ष का ना कोई अंत है ना प्रारम्भ। इसीलिये काल शाश्वत माना ब्रह्मा कभी अपनी लीला विभूति रखता है कभी नित्य विभूति काल रहता है किन्तु शाश्वत जगत में उसकी शक्ति शेष हो जाती है। शाश्वत जगत में सिद्ध रहते हैं शुद्धात्म रूप में। इसीलिये काल का ब्रह्मा के शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उनका शरीर परब्रह्म कहलाता है अत: काल का शासन उन पर नहीं चलता। 1 द्वापर युग 1 कलि युग संधि = काल की सदैव अनुभूति मिलती है और काल सत्यता है। इसे महाकाल भी कहते हैं, भक्षको अथवा मृत्यु रूप तांत्रिक और योगा दोनों में ब्रह्मा की कल्पना पिंडस्वरूप की जाती है। अतः जो कुछ भी ब्रह्माण्ड में घटता है वह ब्रह्मा के पिंड में भी घटता है। इस जगत के चार भाग बतलाये गये हैं = 1000 चतुर्यग 1 दिन ब्रह्मा का 1 रात्रि ब्रह्मा की रात्रि 1 वर्ष ब्रह्मा का For Private & Personal Use Only 1/4 भाग हमारी दुनिया, ये WORLD है। 1/4 भाग ब्रह्मा महान 1/4 भाग मुक्तात्मा जो कभी वापिस नहीं लौटती और 1/4 भाग नित्यात्मा जो बार - बार वापिस लौटती हैं यथा नारद । ब्रह्मा है, वही शाश्वत है। समस्त मुक्तात्मायें मेरी समझ में इतना ही आया कि यह काल विशेषता है। शेष वक्ताओं से हटकर वास्तव शेष सभी वक्ता व्यवहार काल के भिन्न भिन्न छह द्रव्यों में से एक है। जिसका सूक्ष्मतम बीच की दूरी तय करने का समय 'समय' अर्हत् वचन, 14 (23), 2002 www.jainelibrary.org
SR No.526554
Book TitleArhat Vachan 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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