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________________ पुरूलिया में डेढ़ हजार साल पुरानी मूर्तियाँ / मंदिरों के अवशेष मिले पश्चिमी बंगाल के पुरूलिया जिला अन्तर्गत अगयानरों अंचल स्थित कुसटाईढ ग्राम में गत 19 अगस्त 01 को की गई खुदाई के क्रम में भगवान महावीर समेत कई मूर्तियाँ, कलश तथा मंदिरों के पौराणिक ध्वंसावशेष प्राप्त हुए हैं। सभी मूर्तियाँ पत्थरों को गढ़कर बनायी गई है। कलश, चाक तथा मंदिर भी पत्थर के बने हुए हैं। मूर्तियों तथा अन्य ध्वंसावशेषों को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त स्थान पर कभी जैनियों की बस्तियाँ तथा मंदिर थे। अनुमान के तौर पर उक्त अवशेष कितना पुराना तथा किस काल का है, इस संबंध में निश्चित रूप से अभी कुछ कहना मुश्किल है। खुदाई के क्रम में भगवान महावीर की 34 इंच की एक सिरविहीन मूर्ति, साढ़े चौंतीस इंच ऊँचा काले रंग का एक अद्भुत कलश, साढ़े तेरह तथा बीस इंच ऊँचे दो अन्य कलश मिले हैं, तीनों कलशों के ऊपर पत्थर के ही पत्ते बने हुए हैं। सभी अवशेष जमीन के नीचे अवस्थित मंदिर के कमरों में थे। खुदाई के क्रम में लोगों ने एक - एक कर उन्हें बाहर निकाल कर रख दिया है। तीन बड़े तथा एक छोटे कमरे में विभक्त उक्त मंदिर चौकस पत्थरों से बना था जिसकी दीवारों की चौड़ाई लगभग ढाई फुट है। पास - पास सटे दोनों कमरों की लम्बाई, चौड़ाई लगभग 8x8 फुट है जबकि बड़ा कमरा 12X12 फुट का है। मंदिर के पश्चिम की ओर उसका ढाई फुट चौड़ा मुख्य दरवाजा है। मंदिर के निर्माण में सीमेंट बालू का उपयोग नहीं हुआ है। प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के भूतपूर्व निदेशक, अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जैन विद्वान डॉ. सागरमलजी जैन ने जैन, बौद्ध और हिन्दू धर्म एवं दर्शन के क्षेत्र में अध्ययन - अध्यापन, शोध कार्य एवं ज्ञान - ध्यान साधना करने के लिये शाजापुर नगर की दुपाड़ा रोड पर प्राच्य विद्यापीठ की स्थापना की है। इसका विशाल एवं सुन्दर भवन बनकर तैयार हो गया है। इस विद्यापीठ को वर्ष 2002 में विक्रम वि.वि., उज्जैन से मान्यता भी प्राप्त हो गई है। प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर से शोधार्थी के रूप में जैन, बौद्ध और हिन्दू धर्म और दर्शन से संबंधित किसी भी विषय पर शोध प्रबन्ध प्रस्तुत कर विक्रम वि.वि., उज्जैन से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की जा सकती है। प्राच्य विद्यापीठ में 7 सुसज्जित अध्ययन - अध्यापन हॉल, किचन व स्टोर्स तथा प्रसाधन की समुचित व्यवस्था है। इस भवन में एक सुसज्जित पुस्तकालय है जिसमें लगभग 10000 के करीब पुस्तकें, पत्रिकाएँ एवं पुरानी पांडुलिपियाँ हैं जिन पर शोध कार्य अपेक्षित डॉ. सागरमल जैन के सद्प्रयास से जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूँ (राज.) (मानित वि.वि.) ने अपने द्वारा संचालित पत्राचार पाठ्यक्रमों के लिये अध्ययन एवं परीक्षा केन्द्र के रूप में इस संस्थान को मान्यता प्रदान की है। अब यहाँ से विद्यार्थी इन विषयों में बी.ए./एम.ए. की डिग्री हेतु भी सम्मिलित हो सकते हैं। इन डिग्रियों का रोजगार की दृष्टि से वही उपयोग है जो अन्य विषयों से सम्बन्धित डिग्रियों का है। वर्तमान में विद्यापीठ के पुस्तकालय का लाभ लेकर 2 छात्र/छात्रा जैन विद्या में एम.ए. पूर्वाद्ध, 9 छात्र/छात्राएँ एम.ए. उत्तरार्द्ध में अध्ययनरत हैं। इसके अतिरिक्त तीन जैन साध्वियों जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं से पी.एच.डी. की उपाधि के लिये अपना शोध प्रबन्ध तैयार कर रही हैं। साथ ही 2 छात्रों ने विक्रम वि.वि. से पी.एच.डी. की डिग्री हेतु पंजीयन कराने के लिये आवेदन किया है। इसी विद्यापीठ में दिनांक 28,29,30 मार्च 2002 को पू. भानुविजयजी महाराज (पाटण - गुजरात) एवं डॉ. सागरमल जैन के मंगल सान्निध्य में तीन दिवसीय मौन ज्ञान ध्यान शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर में स्थानीय धर्मप्रेमियों के अतिरिक्त गुजरात एवं मध्यप्रदेश के विभिन्न नगरों से पधारे लगभग 125 शिविरार्थियों ने सम्मिलित होकर ज्ञान ध्यान साधना का लाभ लिया। 140 अर्हत् वचन, 14 (2-3), 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526554
Book TitleArhat Vachan 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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