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________________ न्यायककी भावन सानिया वर्धमान महावीर स्मृति ग्रन्थ का लोकार्पण ___ 'जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के अहिंसावाद, अनेकान्तवाद, स्याद्वाद एवं अपरिग्रहवाद जैसे कालजयी संदेश आज के भौतिकवादी वातावरण में भी पूरी तरह प्रासंगिक बने हुए हैं। उन्होंने आत्मिक विकास के लिये जो रास्ता बताया, वह व्यक्ति के चरित्र को उन्नत तो करता ही है, साथ ही सम्पूर्ण समाज और राष्ट्र के लिये भी सर्वतोमुखी उन्नति प्रदान करता है। जीवन में अहिंसा, विचारों में अनेकान्त, वाणी में स्वावाद और समाज में अपरिग्रह की भावनायें यदि आ जायें तो हिंसा आदि पापों को कोई स्थान इस देश में नहीं बचेगा तथा आपस में प्रेम, मैत्री और सहयोग की भावना उस चरम शिखर पर होगी, जहाँ हमारे धर्मग्रन्थ सर्वोत्तम लक्ष्य के रूप में व्यक्ति को पहुँचने की प्रेरणा देते हैं। लोकतंत्र का बाह्य रूप भले ही भारतीय न हो, लेकिन उसकी आत्मा भारतीय है। अनेकान्तवाद को लोकतंत्र बाह्यरूप भले ही भारतीय न हो, लेकिन अनेकान्तवाद न हो तो लोकतंत्र नहीं होगा। आज के इस कार्यक्रम में भगवान महावीर के जीवन - दर्शन, परम्परा और प्राकृत भाषा के सम्बन्ध में जिस विशालकाय स्मृति ग्रन्थ का लोकार्पण हुआ है, वह अपने आप में इस 2600 वें जन्म कल्याणक वर्ष की अतिविशिष्ट उपलब्धि है। साथ ही प्राकृत भाषा एवं संस्कृत भाषा के जिन विशिष्ट विद्वानों का यहाँ सम्मान किया गया है, वह सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति का सम्मान है। मैं स्वयं भगवान महावीर के सिद्धान्तों में पूर्ण आस्था रखता SE हूँ और मेरा दृढ़ विश्वास है कि पूज्य आचार्य श्री विद्यानन्दजी महाराज जैसे महान सन्त ही आज के 'वर्धमान महावीर' ग्रंथ का लोकार्पण करते पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्री शिवराज पाटिल वातावरण में राष्ट्र को सही दिशाबोध दे सकते हैं। ये विचार 'वर्धमान महावीर स्मृति ग्रन्थ लोकार्पण' एवं 'आचार्य कुन्दकुन्द', आचार्य उमास्वामी पुरस्कारों' के समर्पण समारोह के सुअवसर पर पूर्व लोकसभाध्यक्ष एवं वर्तमान में विपक्ष के उपनेता माननीय श्री शिवराज पाटिल ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रस्तुत किये। इस समारोह का आयोजन भगवान् महावीर के 2600 वें जन्मकल्याणक वर्ष के सुअवसर पर दिनांक 28 अप्रैल, 2002 रविवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के जवाहरलाल नेहरू सभागार में गरिमापूर्वक किया गया। समारोह में स्वागत - भाषण श्रीमती सरयू दफ्तरी ने दिया तथा समारोह का संयोजन एवं संचालन डॉ. सुदीप जैन ने किया। कृतज्ञता- ज्ञापन भारतीय ज्ञानपीठ के प्रबन्ध न्यासी साहू रमेशचन्द्र जैन ने किया। इस सुअवसर पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. कपिल कपूर, पुरातत्ववेत्ता डॉ. मुनीशचन्द्र जोशी, प्रो. बी.आर. शर्मा, श्री सतीशचन्द्र जैन (S.C.J.) श्री चक्रेश जैन बिजलीवाले, कुन्दकुन्द भारती न्यास के मंत्री श्री सुरेशचन्द्र जैन एवं कुन्दकुन्द भारती न्यास के न्यासीगण तथा अन्य अनेकों महानुभाव उपस्थित थे। अर्हत् वचन, 14(2 - 3), 2002 139 AR .... IDAANE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526554
Book TitleArhat Vachan 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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