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________________ 5. दो बंधों को खोल (Decodie ) कर 44-45 वर्षों से अवरूद्ध कार्य को गति देने में सफलता हासिल कर ली है। 6. माइक्रो फिल्म रीडर उपलब्ध नहीं होने से फिल्म पर से कोई कार्य किया नहीं जा सका। इसके जो प्रिंट थे बहुत अच्छे नहीं आये हैं। डॉ. शुभचन्द्रजी मैसूर जैसे कई कन्नड़ के विद्वानों को भी हमनें प्रिन्ट दिखाये, किन्तु उन्होंने पढ़ने में असमर्थता व्यक्त की। उनमें जो पत्र वाच्य हैं, हमने उन कन्नड़ पत्रों को पढ़ने का प्रयत्न किया। 7. अंकचक्रों में केवल तीन अंक चक्र ऐसे थे जो अध्याय के प्रारंभ के तथा एक दूसरे सम्बद्ध थे। ये अंकचक्र 59 वें अध्याय के थे। इस अध्याय के बंध पढ़ने की विशिष्ट कुंजी ज्ञात कर अंकों से कन्नड़ लिपिकरण और देवनागरी लिपिकरण किया। 8. कन्नड़ आदि 14 भाषाओं के साफ्टवेअर संचालित करने के लिये मैं स्वंय कम्प्यूटर आपरेट करता हूँ। 14 लिपियों के अंक चक्र आदि निकाल कर विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत किये हैं। 9. एक बंध खोल (Decode) कर उसका कम्प्यूटर द्वारा कन्नड़ एवं देवनागरी लिपिकरण करके उसमें 34 भाषायें चिन्हित कर ली हैं। 10. सिरिभूवलय में 718 भाषाओं होने के उल्लेखों को ध्यान में रखकर विश्व के 290 देशों एवं विश्व में प्रचलित 600 भाषाओं की सूचना प्राप्त कर ली है। सिरिभूवलय की पाण्डुलिपि अक्टूबर 2001 के अन्त में सिरिभूवलय की पूर्ण पाण्डुलिपि कर ली गई है। इसमें 1252 अंकचक्र, 59 अध्याय हैं। इससे व्यवस्थित कार्य प्रारंभ किया जा सकता है। मार्गदर्शन सिरिभूवलय अनुसंधान परियोजना देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर के कुलपति प्रो. भरत छापरवाल, कुंदकुंद ज्ञानपीठ के अध्यक्ष श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल, निदेशक प्रो. ए. ए. अब्बासी, सचिव डॉ. अनुपम जैन एवं कोषाध्यक्ष श्री अजितकुमारसिंह कासलीवाल के मार्गदर्शन एवं सहयोग से गतिमान है। महत्व, सराहना व सहयोग कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ के अध्यक्ष श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल विगत 13-14 वर्षों से सिरिभूवलय को प्रकाश में लाने के लिये प्रयत्नशील रहे हैं। अप्रैल 2001 से इसका कार्य प्रारंभ हो जाने पर वे इतने वयोवृद्ध होते हुए भी कार्य की प्रगति जानने एवं अपना मार्गदर्शन प्रदान करने ज्ञानपीठ में नियमित आते हैं। ज्ञानपीठ के मानद सचिव डॉ. अनुपम जैन, प्रबन्धक श्री अरविन्दकुमार जैन एवं पुस्तकालयाध्यक्ष श्रीमती सुरेखा मिश्रा द्वारा भी अपने स्रानुकूल इसमें योगदान प्रदान किया जा रहा है। परियोजना के प्रारंभ में श्री दीपचन्द एस. गार्डी ज्ञानपीठ में पधारे, उन्होंने यह महत्वपूर्ण कार्य विधिवत संचालित करने के लिये ज्ञानपीठ को उत्साह एवं प्रेरणा प्रदान की । पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी, आचार्य श्री विद्यानन्दजी, आचार्य श्री सन्मतिसागरजी, आचार्य श्री कनकनंदीजी, आचार्य श्री देवनन्दीजी, आचार्य श्री विरागसागरजी, आचार्य श्री सिद्धान्तसागरजी, उपाध्याय मुनि श्री निजानन्दसागरजी, उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी, कर्मयोगी चारूकीर्ति भट्टारकजी श्रवणबेलगोला, भट्टारक श्री भुवनकीर्ति भट्टारक श्री चारुकीर्ति मूडबिद्री, भट्टारक श्री अर्हत् वचन, 14 (23), 2002 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.526554
Book TitleArhat Vachan 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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