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________________ गतिविधियाँ भगवान महावीर विचार - दर्शन संगोष्ठी सम्पन्न । श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद के तत्त्वावधान एवं प.पू. उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज, उपाध्याय श्री नयनसागरजी महाराज, मुनि श्री वैराग्यसागरजी महाराज, क्षु. श्री समर्पणसागरजी महाराज एवं क्षु. श्री सम्यक्त्वसागरजी महाराज के सान्निध्य में श्री दि. जैन समाज, देवबन्द (उ.प्र.) के सौजन्य से दि. 13 - 14 दिसम्बर 01 को भगवान महावीर विचार दर्शन संगोष्ठी आयोजित की गई जिसमें श्री पं. इन्द्रसेन जैन (सहारनपुर), डॉ. रमेशचन्द जैन (बिजनौर), डॉ. नरेन्द्र जैन 'भारती' (सनावद), पं. पूर्णचन्द जैन 'सुमन' (दुर्ग), श्री शराफत हुसैन (महासचिव - लोकदल), श्री सिद्दीकी मेअर आदि मंचासीन महानुभावों की उपस्थिति में संगोष्ठी का उद्घाटन वक्तव्य डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती' ने देते हुए भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित अहिंसा, अपरिग्रह एवं अनेकान्त को समाज में सहअस्तित्व, सौहार्द्र एवं समता के लिये उपयोगी बताया। दो दिन तक चली इस संगोष्ठी को डॉ. रमेशचन्द जैन, डॉ. अशोककुमार जैन, डॉ. फूलचन्द जैन 'प्रेमी', डॉ. सुरेशचन्द्र जैन, डॉ. सुपार्श्वकुमार जैन, प्रो. हीरालाल पांडे 'हीरक', पं. पूर्णचन्द्र जैन 'सुमन', डॉ. विजयकुमार जैन. डॉ. (श्रीमती) राका जैन, डॉ. शीतलचन्द जैन, डॉ. जिनेन्द्र जैन, प्रा. निहालचन्द जैन, डॉ. सनतकुमार जैन, पं. पंकज जैन, कु. इन्दु जैन, डॉ. विमला जैन 'विमल' आदि विचारकों ने सम्बोधित किया। इस अवसर पर उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज ने कहा कि भगवान महावीर मात्र जैनों के नहीं अपितु जन-जन के हैं। जिसकी आस्था एवं कर्म अहिंसामय है वह जैन है। जो दोषों से रहित है, वही देव है। हम सबका समर्पण उन्हीं देव महावीर के प्रति है। मेरी तो यही इच्छा है कि तत्त्व का अभ्यास हो, अध्यात्म की चर्चा हो तथा सम्यग्दर्शन समता की धारा बहे। विद्वान् और अधिक स्वाध्यायशील हों ताकि पुराने विद्वानों जैसी प्रतिष्ठा अर्जित कर सकें। - डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन 'भारती', बुरहानपुर (म.प्र.) भगवान महावीर के 2600 वर्ष पर कार्यशाला परमपूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज के सान्निध्य में केकड़ी- अजमेर (राज.) में 26 मई 2002 से 30 मई 2002 तक भगवान महावीर के 2600 वें जन्मकल्याणक वर्ष पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें प्रत्येक शताब्दी के आधार पर जैन धर्म की स्थिति एवं जैन धर्म के अवदान का ऐतिहासिक मूल्यांकन किया जायेगा। इसमें देश के प्रसिद्ध इतिहासविद, पुरातत्तवविद, जैन धर्म - दर्शन एवं साहित्य के ज्ञाता शताधिक विद्वानों को आमंत्रित किया गया है। समस्त कार्यक्रम का आयोजन श्री 1008 श्री नेमिनाथ दि. जैन जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव समिति, केकड़ी - अजमेर (राज.) द्वारा होगा। - डॉ. विजयकुमार जैन, लखनऊ, संयोजक SUMMER SCHOOL Apllications are invited from eligible candidates for admission to the following summer schools to be held w.e.t. 26.5.02 to 16.06.02 - 1. Prakrit Language & Literature (Elementary), 2. Prakrit Language & Literature (Advanced), 3. Jain Religion & Philosophy, 4. Manuscriptology and research Methodology. Eligible candidates can apply to participate in either one of the above courses. These courses will run concurrently. ।. Dr. Vimal Prakash Jain, Director-B.L.I.I. 20th Kilometer, G.T. Karnal Road, Alipur, New Delhi 97 अर्हत् वचन, 14 (1), 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526553
Book TitleArhat Vachan 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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