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________________ का महत्व बढ़ता गया । स्मरण रहे कि गोम्मटसारादि ग्रंथों में मात्रावाचक मति आदि ज्ञानों का गणितीय उपक्रम वर्द्धमान महावीर की श्रुत परम्परा में बहुत पहिले ही प्रारंभ हो चुका था । किन्तु रूढ़िगत समाज द्वारा इस ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया गया अब हम जीव विज्ञान सम्बंधी यांत्रिकीकरण के बारे में चर्चा करेंगे जो स्मृति में उपसेवित हुई है। स्मृति अपनी अंगुलि या दृश्यमान टेबल सदृश कोई वस्तु नहीं है। वह व्यवहार की एक झलक है, वह जो हमारा कर्म है। हम कोई कविता या गीत पढ़ते या सुनते हैं और कई दिनों या वर्षों पश्चात् हमें किन्हीं बिलकुल भिन्न परिस्थितियों में वह पिछला अनुभव, सुखद अथवा दुखद याद आ जाता है स्मृति इस प्रकार सीखने तथा पुनः स्मरण के बीच स्थित स्मृति का विचार होता है - याद आ जाता है। इस प्रकार स्मृत या स्मरण हो जाता है। होती है। तीन भाव (Phase) रूपों में 1. प्रथम भाव में कोई अनुभव या क्रिया हमारे मस्तिष्क में होती है, 2. द्वितीय माध्य भाव जिसमें प्रथम भाव में होने वाले परिवर्तन समय गुजरते बने रहते हैं। 3. अंतिम भाव में प्रथम भाव द्वारा होने वाला अनुभव या क्रिया प्रभावित होता है। मनोवैज्ञानिकों द्वारा इस अवधारित करने वाले भाव को engram या स्मृति अनुरेखण कहा गया है, जो बजाये जाने वाली रिकार्डिंग मशीन अथवा प्लेटों के मोम का सांचा न समझ लिया जाये। नि:संदेह, मस्तिष्क के निषेक ( Cells) के रूपान्तरण द्वारा अवधारणा की उपलब्धि होती होगी। यह रूपान्तरण क्रिया गहराई से समझ लेना चाहिये । तत्वार्थ सूत्र में इसका चार क्रमित भावों में विवेचन किया गया है : अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा । स्मृतियों की झलकियों के चिन्तन में हम स्पष्टत: यादगारों को देखते हैं। उनके साथ ही हमें कषायों से रंजित राग- अनुराग, सुख, दुख, दर्द, क्रोधादि की संवेदनाएं भी प्रकट हुई अनुभव में आती हैं। अतः अनिवार्य रूप से हमें स्मृति मानो अपनी चेतन या स्वजागृति की प्रतिबिम्ब जैसी भासित होती है। किन्तु मनोवैज्ञानिकों ने प्रायोगिक विश्लेषण द्वारा यह पाया है कि स्मृति का सम्बन्ध चेतना से न होकर बिलकुल स्वतंत्र यांत्रिक परिणमन रूप होता है। चाहे वह मानव में हो अथवा पशुओं में । आधुनिक स्मृति विज्ञान (जैन आगम के परिप्रेक्ष्य में) तंत्रिका - निषेक (neuron) और उसकी क्रिया प्रथमतः मस्तिष्क द्वारा स्मृति किस प्रकार संगृहीत की जाती होगी, इसके लिए मतिज्ञानावरणीय तंत्रिका उपांग निषेकों (nerve cells) की क्रिया के सम्बन्ध में जानकारी करेंगे। तंत्रिका - निषेकों को न्यूरान्स भी कहते हैं। उनका आकार, विस्तार अनेक प्रकार का होता है। सभी के निषेक- काय (cell body or trunk) से शाखायें फूटती हैं। इस प्रकार तंत्रिका - निषेक (neuron) की झलक एक वृक्ष जैसी होती है। विद्युत संकेत उसकी केबिल जैसी शाखाओं पर अनुगमन करते हैं। दो प्रकार की शाखाएं होती है : ड्रेन्ड्राइट्स (Dendrites) या आवक तंत्रिका तंतु शाखाओं में आने वाले विद्युत संकेत होकर निषेक काय (cell body) में पहुँचते हैं। निषेक काय में उत्पन्न संकेत अन्य तंत्रिका - निषेकों (neurons) की ओर ऐसी शाखाओं से अग्रेषित ( अग्रसर ) होते हैं जिन्हें जावक तंत्रिका तन्तु (axon या nerver fibre) कहते हैं। ये तंत्रिका तन्तु तंत्रिका निषेक की बाहर की और ले जाने वाली केबिलों के रूप में होते हैं। इनकी लम्बाई काफी अधिक हो सकती है, जैसे कि ऊंट के मस्तिष्क के तंत्रिका तन्तु। इस प्रकार तंत्रिका - निषेक एक दूसरे से बड़ी-बड़ी दूरियाँ तक जुड़े रहते हैं । जावक तंत्रिका तन्तु (axon) के अन्तिक छोर परिपथ (circuit) में स्थित अगले तंत्रिका - निषेक अर्हत् वचन, 14 (1), 2002 80 Jain Education International - For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.526553
Book TitleArhat Vachan 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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